मौर्य कालीन कला - स्थापत्य कला | Mauryan Art - Architecture
श्रमण परंपरा के अंग बौद्ध धर्म एवं जैन धर्म के आगमन के साथ ही गंगा नदी घाटी के सामाजिक एवं धार्मिक परिदृश्य में परिवर्तन होने लगा। चूँकि दोनों ही धर्म वैदिक युग से चली आ रही 'वर्ण प्रथा' और 'जाति प्रथा' का विरोध करते थे। इसलिए इन्हें क्षत्रिय राजाओं का राजकीय संरक्षण प्राप्त हुआ जो ब्राह्मणवादी वर्चस्व से सजग हो चुके थे। मौर्य साम्राज्य स्थापित होने के साथ ही राज्य का संरक्षण प्राप्त कला एवं व्यक्तिगत कला की स्थापत्य कला एवं मूर्तिकला में स्पष्ट सीमांकन देखा गया। इस प्रकार तत्कालीन समय की कला एवं स्थापत्य कला को दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है-
With the advent of Buddhism and Jainism, part of the Shramana tradition, the social and religious landscape of the Ganges river valley has changed. Since both the religions were opposed to the 'Varna system' and 'Caste system' coming from the Vedic era. Therefore, they got the royal patronage of the Kshatriya kings who had become aware of the Brahminical supremacy. With the establishment of the Maurya Empire, a clear demarcation was seen in the architecture and sculpture of the state patronized art and individual art. Thus the art and architecture of that time can be classified into two parts-
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1. दरबारी कला (दरबारी पहल)- इसके अंतर्गत मौर्य साम्राज्य के महल, स्तंभ और स्तूप सम्मिलित हैं।
1. Darbari Art (Court Initiative)- It includes Palaces, Pillars and Stupas of the Maurya Empire.
2. लोकप्रिय कला (व्यक्तिगत पहल)- इसके अंतर्गत मौर्य काल की गुफाएँ, मूर्तियाँ एवं मृद्भाण्ड सम्मिलित हैं।
2. Popular Art (Individual Initiative)- Includes caves, statues and pottery from Mauryan period.
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R F Temre
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(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
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R F Temre
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