
मध्यप्रदेश के शिक्षक किन 5 कारणों से परेशान हैं?
मध्यप्रदेश के शिक्षक ― वे 5 प्रमुख कारण जिनसे उनका पेशा चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है ?
मध्यप्रदेश में शिक्षक बनना एक सम्मानजनक है किंतु वर्तमान में अत्यंत चुनौतीपूर्ण कार्य बनता जा रहा है। शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने की दिशा में अनेक योजनाएँ लागू की जा रही हैं, लेकिन ज़मीनी सच्चाई कुछ और कहती है। आइए जानते हैं वे पाँच प्रमुख कारण जो मध्यप्रदेश के शिक्षक मानसिक, सामाजिक और प्रशासनिक स्तर पर परेशान हैं―
1. शिक्षकों पर गैर-शैक्षणिक कार्यों का बढ़ता बोझ
शिक्षकों से अपेक्षा की जाती है कि वे केवल शैक्षणिक कार्य करें, विद्यार्थियों को पढ़ाएँ, लेकिन वास्तव में में उन्हें कई तरह के अतिरिक्त कार्य यथा– मध्याह्न भोजन, BLO कार्य, सर्वेक्षण जैसे अनेक कार्यों में लगाया जाता है। इसके अलावा वर्ष भर तरह-तरह की योजनाओं का प्रचार प्रसार करने हेतु विद्यालय स्तर पर कार्यक्रम कराने हेतु आदेशित किया जाता है जिससे शिक्षण कार्य बड़े पैमाने पर प्रभावित होता है। हालांकि शासन द्वारा कहा जाता है कि शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्य से दूर रखा जाए किंतु उसे वास्तविकता में परिणित नहीं किया जाता है। उपर से बच्चों में बेहतर गुणवत्ता लाने का दबाव होता है ऐसे गैर-शैक्षणिक कार्यों का बोझ से शिक्षक मानसिक तनाव से ग्रस्त होते जा रहे हैं।
2. स्थानांतरण और पदस्थापन की अनिश्चितता
बिना पारदर्शिता के तबादलों और प्रमोशनों की प्रक्रिया शिक्षकों में असंतोष फैलाती है। अनेक बार शिक्षक वर्षों तक अपने गृह जिले से दूर पदस्थ रहते हैं, जिससे पारिवारिक जीवन भी प्रभावित होता है। ऐसी स्थिति में शिक्षक शैक्षणिक कार्य भी पूरी ताकत लगाकर नहीं कर पाते हैं।
3. तकनीकी प्रशिक्षण और पोर्टल की जटिलताएँ
नई शिक्षा नीति के तहत अनेक तरह के पोर्टल यथा Samagra, CM Rise, M-ShikshaMitra आदि लागू किए गए हैं। इनमें शिक्षकों की तकनीकी ज्ञान की कमी एवं प्रशिक्षण अभाव के कारण अधिकांश शिक्षकों को दूसरों पर निर्भर होना पड़ता है। ऐसे कई तरह के आनलाइन कार्यों को लेकर शिक्षक परेशान रहते हैं।
4. विद्यार्थियों की उपस्थिति एवं परिणाम का दबाव
शासन द्वारा शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए लगातार आंकड़ों में सुधार लाने हेतु शिक्षकों पर दबाव बनाया जाता है। कई बार विद्यार्थी स्कूल ही नहीं आते, शिक्षकों पर उन्हें विद्यालय तक लाने, फिर पढ़ाने और बेहतर परिणाम देने का दबाव रहता है। वास्तविकता में देखा जाए तो कई बच्चे ऐसे होते हैं जिनके अभिभावकों को बार-बार समझाने के बाद भी वे बच्चों की शिक्षा में रुचि नहीं दिखाते हैं। ऐसी स्थिति में अनुपस्थित रहने वाले विद्यार्थियों को विद्यालय लाना बड़ा कठिन कार्य हो जाता है। दूसरी ओर जो बच्चे प्रतिदिवस विद्यालय आते हैं उनकी पढ़ाई भी अवरूद्घ होने लगती है।
5. सम्मान, प्रोत्साहन और प्रेरणा का कमजोर स्तर
एक समय था जब 'गुरु' को ईश्वर तुल्य माना जाता था। आज की भौतिकवादी और आंकड़ा-केंद्रित व्यवस्था के चलते शिक्षक का सामाजिक सम्मान घटता जा रहा है। वर्तमान में शिक्षक ज्ञान प्रदाता के स्थान पर अब एक मात्र कर्मचारी बनकर रह गया है। अच्छे कार्य करने वाले शिक्षकों को जिस स्तर का प्रोत्साहन और सम्मान मिलना चाहिए वह नहीं मिल पाता है। इसके अलावा शासन के द्वारा शिक्षकों के उपर कितने सारे लोगों को निगरानी रखने हेतु तैनात कर दिया गया है। एक शिक्षक के लिए यह सबसे गहरा मानसिक आघात है।
शिक्षा राष्ट्र निर्माण का आधार है, और शिक्षक उसकी रीढ़। यदि शिक्षक का ही सम्मान नहीं रहा तो उसके द्वारा दी जाने वाली शिक्षा का क्या मूल्य रह जायेगा। दूसरी ओर यदि शिक्षक ही तनावग्रस्त रहेगा तो भविष्य कैसे उज्ज्वल बनेगा? समय आ गया है जब नीति-निर्माताओं को शिक्षकों की ज़मीनी समस्याओं को गंभीरता से समझकर समाधान देने की आवश्यकता है।
आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।
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Thank you.
R. F. Tembhre
(Teacher)
pragyaab.com
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