चीनी आर्थिक विकास का मॉडल- बीजिंग सहमति | Model of Chinese Economic Development - Beijing Consensus
सन् 1980 के दशक के मध्य के बाद चीन के आर्थिक उदय को विश्व में आज किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है। विश्व में बहस का मुद्दा रहा है कि इस आर्थिक उत्थान के पीछे क्या किसी सोचे-समझे विकास का मॉडल रहा है। इस विषय पर अंत में वर्ष 2004 में जोशुआ कूपर रेमो ने 'बीजिंग सहमति' का प्रस्ताव रखा। इसे चीन के आर्थिक विकास का मॉडल भी कहा जाता है।
China's economic rise since the mid-1980s needs no introduction to the world today. It has been a matter of debate in the world whether any well thought out development model has been behind this economic growth. Finally in 2004, Joshua Cooper Remo proposed the 'Beijing Consent' on this topic. It is also called the model of economic development of China.
इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िये।
1. मूल्य ह्रास क्या है?
2. व्यष्टि एवं समष्टि अर्थशास्त्र में अंतर
3. केंद्रीय बैंक और वाणिज्यिक बैंक के कार्य
4. मांग एवं पूर्ति वक्र का एक साथ शिफ्ट होना
5. चेक के प्रकार
इस सहमति अथवा मॉडल के में उन सभी आर्थिक नीतियों को सम्मिलित किया गया था जिसका अनुसरण वर्ष 1976 में माओ जेडोंग की मृत्यु के पश्चात् डेंग जीआओपिंग ने किया था। इसे विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिए वॉशिंगटन सहमति के विकल्प के रूप में देखा गया। यह एक प्रति वॉशिंगटन सहमति विचार है। आगे चलकर इस मॉडल की विविध व्याख्याएँ की गई। इसे सार रूप में निम्न लिखित तीन स्तंभों पर आधारित माना गया-
(i) राज्य में शांतिपूर्ण वितरणात्मक आर्थिक वृद्धि के साथ क्रमिक सुधार का किया जाना।
(ii) अनवरत प्रयोग तथा अन्वेषण किया जाना।
(iii) स्वभाग्यनिर्णय के साथ-साथ चुनिंदा विदेशी विचारों को अपनाना।
This consensus or model included all the economic policies that were followed in 1976 after the death of Mao Zedong Deng Xiaoping did. It was seen as an alternative to the Washington Consensus for developing economies. This is a counter Washington consensus view. Later on, various interpretations of this model were given. It was considered in essence based on the following three pillars-
(i) To carry out gradual reforms in the state with peaceful distributive economic growth.
(ii) Continuous experimentation and exploration.
(iii) Adoption of selected foreign ideas along with self-determination.
इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िये।
1. भारतीय रिजर्व बैंक और इसके कार्य
2. मुद्रास्फीति का अर्थ, परिभाषा एवं महत्वपूर्ण तथ्य
3. अर्थशास्त्र की समझ- आर्थिक गतिविधियाँ, व्यष्टि और समष्टि, अर्थमिति
4. अर्थव्यवस्था एवं इसके प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्र
5. आर्थिक प्रणालियाँ- बाजार अर्थव्यवस्था, गैर-बाजार अर्थव्यवस्था और मिश्रित अर्थव्यवस्था
6. आर्थिक सुधार से संबद्ध- वॉशिंगटन सहमति
पश्चिम के देशों की विकसित अर्थव्यवस्थाओं के वर्ष 2008 के अमेरिकी 'सब-प्राईम' संकट के उपरांत के महान रिसेशन की चपेट में आने के पश्चात् यह मॉडल एक विशेष आकर्षण का केन्द्र बन गया। इस दौरान चीन की अर्थव्यवस्था गतिमान बनी रही। विशेषज्ञों ने इसे पश्चिम के देशों की स्वछंद-बाजार दृष्टिकोण के एक विकल्प के रूप में भी देखा। इसका आधार ‘वॉशिंगटन सहमति' था। तत्कालीन समय में या विवाद का मुद्दा बना कि विकासशील देशों को क्या इस चीनी मॉडल को अपनाना चाहिए या नहीं। विशेषज्ञों के अनुसार चीन के लिए यह नुस्खा कारगर साबित हुआ। यह मॉडल दूसरे देशों में भी कार्य करेगा इसमें संदेह है क्योंकि चीन का आर्थिक निष्पादन भी विजातीय रहा है। इसके अतिरिक्त चीन के आर्थिक उदय को 'बाजार की मृत्यु' तथा 'राज्य नेतृत्व वृद्धि का उदय' की भी संज्ञा दी गयी थी। लेकिन इस प्रकार के निष्कर्ष तक पहुँच पाना एक तरह से जल्दीबाजी होगी। ध्यान रहे कि चीन की सर्वोत्तम आर्थिक निष्पादन की अवधि वहाँ बाजार के अधिपत्य का काल रहा है।
After the Great Recession of the American 'sub-prime' of 2008, the developed economies of the West, this model has become a special became the center of attraction. During this time China's economy continued to grow. Experts also saw it as an alternative to the free-market approach of Western countries. Its basis was 'Washington Consent'. At that time, it became a matter of controversy whether developing countries should adopt this Chinese model or not. According to experts, this recipe proved to be effective for China. It is doubtful whether this model will work in other countries as China's economic performance has also been heterogeneous. In addition, China's economic rise was also referred to as 'the death of the market' and 'the rise of state leadership growth'. But it would be kind of hasty to reach such a conclusion. Note that the period of China's best economic performance has been the period of market hegemony.
कृषि विज्ञान से संबंधित इन 👇 प्रकरणों को पढ़े
1. भारत में पशुपालन- गायों की प्रमुख नस्लें
2. भारत के मसाले एवं उनकी खेती
3. राज्यवार भारतीय फसलें
4. गेहूँ की प्रमुख प्रजातियाँ एवं लक्षण
विकासशील देशों में इस मॉडल के प्रति वर्ष 2010 तक दिलचस्पी में वृद्धि होती रही। किन्तु हाल के समय में जब चीन की आर्थिक वृद्धि दर में कमी का दौर प्रारंभ हुआ तब विशेषज्ञों ने इसे अपनाने के प्रति सावधानी बरतने की सलाह दी। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि विश्व के अनेक देशों जैसे- सं.रा. अमेरिका, यू.के एवं अन्य पश्चिमी देशों के हाल का संरक्षणवादी रुख इसी मॉडल की ओर रुझान होने का प्रतिफल है।
In developing countries, interest in this model continued to grow until 2010 every year. But in recent times, when China's economic growth rate began to decline, experts advised caution to adopt it. Some experts believe that many countries of the world such as the United Nations. The recent protectionist stance of the US, UK and other Western countries is a result of the trend towards this model.
कृषि विज्ञान से संबंधित इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़े।
1. पादपों में पोषण- प्रकाश संश्लेषण
2. जैविक कृषि– कृषि की एक प्रमुख विधि
3. भारत में कृषि
4. एक्वाकल्चर (जलीय जीव पालन) एवं इनके उपयोग
5. रेशमकीट पालन एवं रेशम उत्पादन
6.मछली पालन मछलियों के प्रकार एवं उनके उत्पाद
आशा है, उपरोक्त जानकारी परीक्षार्थियों / विद्यार्थियों के लिए ज्ञानवर्धक एवं परीक्षापयोगी होगी।
धन्यवाद।
R F Temre
rfcompetition.com
I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
pragyaab.com
Comments