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गुप्त काल में मंदिर वास्तुकला के विकास के चरण | Stages of Development of Temple Architecture in the Gupta Period

मंदिर वास्तुकला- वर्गाकार गर्भगृह एवं खंबों से युक्त द्वारमण्डप के विकास के साथ गुप्त काल में मंदिरों की वास्तुकला का प्रादुर्भाव हुआ। प्रारंभिक चरणों में मंदिरों के छतों को सपाट एवं एक ही प्रकार के पत्थरों को काट कर बनाया जाता था। कालांतर में मंदिरों के छतों (शिखरों) को तक्षित (गढ़े हुए) बनाया जाना लगा। मंदिरों के विकासक्रम को निम्नलिखित चरणों में विभक्त किया जा सकता है-
1. प्रथम चरण
2. द्वितीय चरण
3. तृतीय चरण
4. चतुर्थ चरण
5. पंचम चरण

Temple Architecture- Temple architecture emerged during the Gupta period with the development of a square sanctum and a pillared gate. In the early stages, the roofs of temples were made flat and cut out of the same type of stone. Later on, the roofs (shikharas) of the temples began to be made takshit (sculpted). The development of temples can be divided into the following phases-
1. First Phase
2. Second Phase
3. Third Phase
4. Fourth Phase
5. Fifth Phase

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प्रथम चरण- इस चरण में विकसित मंदिरों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. मंदिरों की छतें सपाट होती थीं।
2. मंदिरों का आकार वर्गाकार होता था।
3. द्वारमण्डप उथले स्तंभों पर निर्मित किया जाता था।
4. ये मंदिर कम ऊँचाई के मंचों (जगती) पर निर्मित किये जाते थे।
उदाहरण- मध्यप्रदेश में साँची का मंदिर संख्या, 17

First Phase- Following are the main features of the temples developed in this phase-
1. The roofs of temples were flat.
2. The shape of the temples was square.
3. The door-pavilion was built on shallow pillars.
4. These temples were built on platforms (jagati) of low height.
Example-Sanchi Temple No.17 in Madhya Pradesh

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द्वितीय चरण- इस चरण में भी मंदिरों की प्रमुख विशेषताएँ पूर्व चरण की तरह ही बनी रहीं। इन मंदिरों में मंच या जगती अधिक ऊंचे या उथले हुए बनाये जाने लगे। कहीं-कहीं दो मंजिला मंदिरों के उदाहरण भी मिले हैं। इन मंदिरों की एक प्रमुख विशेषता यह है कि गर्भ गृह के चारों ओर एक ढका हुआ रास्ता बनाया जाने लगा। इसे प्रदक्षिणा-पथ के रूप में प्रयोग किया जाने लगा था।
उदाहरण- मध्यप्रदेश में नचना कुहार का पार्वती मंदिर।

Second Phase- In this phase also the main features of the temples remained the same as in the earlier phase. In these temples the platform or the jagati were made higher or shallower. In some places, examples of two-storeyed temples have also been found. A prominent feature of these temples is that a covered passage was built around the sanctum sanctorum. It was started to be used as circumambulatory path.
Example-Parvati Temple of Nachna Kuhar in Madhya Pradesh.

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तृतीय चरण- मंदिर निर्माण के इस चरण में शिखरों का निर्माण किया जाने लगा। यद्यपि, ये शिखर वर्गाकार एवं वक्ररेखीय होते थे। इनकी ऊँचाई कम होती थी। इन मंदिरों के निर्माण के लिये पंचायतन शैली का प्रयोग किया जाता था।
पंचायतन शैली में प्रमुख देवता के मंदिर के साथ अन्य चार गौण देव मंदिर भी होते थे। प्रमुख देवता के मंदिर का आकार वर्गाकार होता था। इसके सामने एक लंबा मंडप होता था, जिससे इसका आकार आयताकार हो जाता था। गौण देव मंदिर प्रमुख मंदिर (मंडप) के प्रत्येक ओर एक-दूसरे के सम्मुख बनाये जाते थे। इससे सम्पूर्ण मंदिर की भू-आकृति क्रूस के आकार की हो जाती थी।
उदाहरण- उत्तर प्रदेश में देवगढ़ का दशावतार मंदिर, कर्नाटक में एहोल का दुर्गा मंदिर आदि।

Third Phase- Shikharas started being built in this phase of temple construction. However, these peaks were square and curvilinear. Their height was less. Panchayatan style was used for the construction of these temples.
The Panchayatana style had the temple of the main deity along with the other four minor deity temples. The main deity's temple had a square shape. There was a long pavilion in front of it, which made it rectangular in shape. The minor deva temples were built on each side of the main temple (mandapa) facing each other. Due to this, the topography of the entire temple became in the shape of a cross.
Example- Dashavatara temple of Devgad in Uttar Pradesh, Durga temple of Aihole in Karnataka etc.

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चतुर्थ चरण- इस चरण के मंदिर लगभग तृतीय चरण के मंदिरों के समान ही थे। इनमें एक मात्र अंतर यह था कि प्रमुख मंदिर अधिक आयताकार हो गया।
उदाहरण- महाराष्ट्र का तेर मंदिर।

Fourth Phase- The temples of this phase were almost the same as the temples of III phase. The only difference was that the main temple became more rectangular.
Example-Ter Mandir of Maharashtra.

पंचम चरण- इस चरण में बाहर की ओर निकले उथले आयताकार किनारों वाले वृत्ताकार मंदिरों का निर्माण किया जाने लगा। शेष विशेषताएँ पूर्व चरण की ही जारी रहीं।
उदाहरण- राजगीर का मनियार मठ।

Fifth Phase- In this phase circular temples with shallow rectangular edges protruding outwards were constructed. Rest of the features continued in the previous phase.
Example- Maniyar Monastery of Rajgir.

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धन्यवाद।
R F Temre
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