
रस क्या है? || रस के स्थायी भाव || शान्त एवं वात्सल्य रस || Ras kya hai?
रस क्या है?
रस शब्द की व्युत्पत्ति 'रस्यते इति रसः', अर्थात जिससे रस की अनुभूति की जाए। कविता आदि को पढ़ने, सुनने तथा नाटक पढ़ने, सुनने और देखने से जो आनन्दानुभूति होती है वह रस कहलाती है।
मनुष्य के अन्तःकरण में असंख्य भाव तरंगित होते रहते हैं। ये उचित अवसर आते ही उभर आते हैं। यदि कोई हँसी की बात कहे या विचित्र वेशभूषा दिखाई दे तो हमें हँसी आ जाती है। अपशब्द सुनते ही हमारी क्रोधाग्नि भड़क उठती है। अद्भुत क्रिया-कलाप की स्थिति हमें विस्मय में डाल देती है। कहने का आशय यह है कि, समयानुकूल मन में भाव उत्पन्न होते रहते हैं। ये मन के विकार भाव ही रस निष्पत्ति के कारक हैं।
आचार्यों ने प्रत्येक रस के लिये एक-एक स्थायी भाव माना है।
रस – स्थायी भाव
श्रृंगार – रति
हास्य – हास
करुण – शोक
वीर – उत्साह
रौद्र – क्रोध
भयानक – भय
वीभत्स – जुगुप्सा (घृणा)
अद्भुत – विस्मय
शान्त – शम, निर्वेद
वात्सल्य – वत्सल, स्नेह
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शान्त रस
यहाँ निर्वेद स्थायी भाव को समझिए–
साधना मेरी अधूरी, मैं विरह में जल न पाई।
व्यर्थ बीती आयु सारी, मैं सजन की हो न पाई॥
प्रस्तुत काव्यांश में निर्वेद की व्यंजना है।
जब मानव मन सांसारिक विषय-वासनाओं से ऊबने लगता है तब उसमें विरक्ति भाव जाग्रत होने लगते हैं। मन इष्ट वस्तु के वियोगादि से अपने को धिक्कारने लगता है। फिर मन में दीनता, चिन्ता और पश्चाताप के विचार आने से निर्वेद या वैराग्य भाव जाग्रत हो जाते हैं। यह वैराग्य भाव ही शांत रस के अन्तर्गत आता है।
संसार की असारता का अनुभव होने पर हृदय में तत्वज्ञान या वैराग्य भावना जाग्रत होने पर शान्त रस निष्पन्न होता है।
'ऐसी मूढ़ता या मन की परिहरि
राम भक्ति सुरसरिता,
आस करत ओसकन की।'
उक्त पंक्तियों में प्रयुक्त शान्त रस और उसका स्थायी भाव निर्वेद को देखिए।
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वात्सल्य रस
शिशुओं की क्रीड़ाओं से आह्लादित जननी जनक के हृदय में आनन्द भावना की निष्पत्ति वात्सल्य रस कहलाती है। वात्सल्य रस का स्थायी भाव वत्सल है।
उदाहरण–
"बालकृष्ण-सी देख-देख जीती सूरत अनमोली।
पहले दिन बंसी वाले करती सुनी तोतली बोली ॥
बंधी हुई दोनो मुट्ठी से वैभव लल्ला लाया।
जग की आँख दबा चुंबन में वह चुपचाप चुराया।'
इस काव्यांश में एक मातृ हृदय की सलोनी झाँकी सरलता से देखी जा सकती है। माता का पुत्र के प्रति स्नेह भाव कितना सहज और स्वाभाविक है। काव्य से निष्पन्न यह वत्सल भाव आनन्दित वातावरण बना रहा है।
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