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मध्यकालीन भारत में वास्तुकला- इंडो इस्लामिक (भारतीय-अरबी) शैली | Architecture in Medieval India- Indo Islamic Style

712 ईसवी में सिंध पर अरब विजय के साथ ही भारत वर्ष की पश्चमी समाओं में मुसलमान शासकों का आगमन आरंभ हुआ। 12वीं शताब्दी ईसवी तक दिल्ली पर एक इस्लामिक शासक ने अधिकार कर लिया। इसने भारतीय इतिहास में मध्यकाल का श्रीगणेश किया। आगामी वर्षों में भारतीय वास्तुकला में व्यापक परिवर्तन हुए। नए शासकों की रूचियों और वरीयताओं को प्रतिबिंबित करने वाली तथा सुलेखन और जड़ाऊ काम वाले अलंकरण जैसे नवीन तत्व अस्तित्व में आए।

With the Arab conquest of Sindh in 712 AD, the arrival of Muslim rulers started in the western parts of India. Delhi was occupied by an Islamic ruler by the 12th century AD. It marked the beginning of the medieval period in Indian history. In the ensuing years, Indian architecture underwent extensive changes. New elements such as ornamentation with calligraphy and inlaid work came into existence, reflecting the interests and preferences of the new rulers.

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किन्तु कुछ स्थानीय वास्तुकारों ने अपनी स्थानीय परंपरा को भी बनाए रखा। इस प्रकार आगे चलकर भारतीय हिन्दू शैली और फारसी शैली का संगम हुआ। इस नयी शैली को 'इंडो-इस्लामिक शैली' या 'भारतीय-अरबी शैली' के नाम से जाना जाता है।

But some local architects also maintained their local tradition. Thus later there was a confluence of Indian Hindu style and Persian style. This new style is known as 'Indo-Islamic style' or 'Indo-Arabic style'.

इंडो-इस्लामिक शैली- इंडो-इस्लामिक शैली की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

Indo-Islamic Style- Following are the salient features of Indo-Islamic Style-

1. मेहराबों और गुंबदों के प्रयोग ने इस अवधि में प्रमुखता प्राप्त की। इस वास्तुकला शैली को 'मेहराबदार शैली' के नाम से जाना जाता है। इस शैली ने पारंपरिक वास्तुकला शैली 'लिंटल-शहतीर शैली' का स्थान ग्रहण कर लिया।

1. The use of arches and domes gained prominence in this period. This architectural style is known as 'arched style'. This style replaced the traditional architectural style 'Lintel-purlin style'.

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2. इस्लामिक शासकों ने मस्जिदों और मेहराबों के चारों ओर मीनारों का निर्माण करवाया।

2. Islamic rulers built minarets around mosques and arches.

3. इन शासकों के निर्माणों में जोड़ने वाले एजेंट के रूप में गारे का प्रयोग किया जाता था।

3. Mure was used as a binding agent in the constructions of these rulers.

4. इस अवधि की वास्तुकला में मानव एवं पशु आकृति का प्रयोग बहुत कम किया गया है।

4. Human and animal figures are rarely used in the architecture of this period.

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5. इस अवधि में हिन्दु वास्तुकला जहाँ बहुत संकीर्ण हो गयी थी। वहीं इंडो इस्लामिक शैली ने इसमें विशालता, वृहदता और व्यापकता का समावेश किया।

5. During this period the Hindu architecture had become very narrow. At the same time, the Indo-Islamic style incorporated vastness and broadness in it.

6. जहाँ पिछली वास्तुकला की संरचनाओं के अलंकरण के लिये मूर्तियों का प्रयोग किया जाता था, वहीं इंडो-इस्लामिक वास्तुकला में अलंकरण के लिए सुलेखन का प्रयोग किया जाता था।

6. Where sculptures were used to adorn structures of earlier architecture, calligraphy was used for ornamentation in Indo-Islamic architecture.

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7. अलंकरण के लिये अरबेस्क विधि का भी प्रयोग किया जाता था। अरबेस्क से तात्पर्य ज्यामितीय वानस्पतिक अलंकरण के उपयोग से है। इसकी एक प्रमुख विशेषता सतत् तना होता है। यह पत्तेदार मुख्य तना, श्रृंखला का निर्माण करते हुए नियमित अंतराल पर विभाजित हो जाता है। द्वितीयक तना पुनः विभाजित हो जाता है या मुख्य तने से जोड़ने के लिये वापस मोड़ा जाता है। इससे एक सजावटी पैटर्न का निर्माण होता है।

7. The arabesque method was also used for ornamentation. Arabesque refers to the use of geometric botanical ornamentation. One of its main features is the continuous stem. This leafy main stem splits at regular intervals forming a chain. The secondary stem splits again or is bent back to attach to the main stem. This creates a decorator pattern.

8. सजावटी पैटर्न से लेकर समरूपता की भावना आत्मसात् करने तक इस अवधि की वास्तुकला शैली में बड़े पैमाने पर ज्यामिति के सिद्धांतों का प्रयोग किया गया।

8. The architectural styles of this period used the principles of geometry extensively, from decorative patterns to imbibing a sense of symmetry.

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9. भवनों में जाली का जटिल काम किया गया। यह इस्लाम धर्म में प्रकाश के महत्व का प्रतीक है।

9. Complex work of lattice was done in the buildings. It symbolizes the importance of light in Islam.

10. इस अवधि की वास्तुकला की एक प्रमुख विशेषता आंगन में फूलों, फव्वारों और छोटी नालियों के रूप में परिसर में पानी का प्रयोग था। तत्कालीन समय में परिसर में पानी का प्रयोग तीन प्रयोजनों से किया जाता था-
1. धार्मिक प्रयोजन
2. सजावटी प्रयोजन
3. परिसर में शीतलन के लिये।

10. A prominent feature of the architecture of this period was the use of water in the premises in the form of flowers, fountains and small drains in the courtyard. In those days water was used in the campus for three purposes-
1. Religious Purpose
2. Decorative Purpose
3. For cooling in the premises.

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11. इस्लामिक शासकों ने बागों की चार बाग शैली का प्रचलन किया। इस शैली के अंतर्गत एक वर्गाकार खण्ड में चार समान बाग बनाये जाते थे।

11. The Islamic rulers practiced the Char Bagh style of gardens. Under this style, four equal gardens were made in a square section.

12. इस अवधि की वास्तुकला शैली में प्रस्तर की दीवारों में सजावट के लिए कीमती रंगीन पत्थरों और रत्नों को जड़ने के लिए पित्रा-दूरा तकनीक का प्रयोग किया जाता था।

12. The architectural style of this period used the Pitra-dura technique for inlaying precious colored stones and gems for decoration of the stone walls.

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13. इस वास्तुकला की एक अनूठी विशेषता भवनों में foreshortening तकनीक का प्रयोग है। इस तकनीक का प्रयोग इस प्रकार किया जाता था कि शिलालेख दूर होते हुए भी पास प्रतीत होते थे।

13. A unique feature of this architecture is the use of foreshortening techniques in the buildings. This technique was used in such a way that the inscriptions appeared close even though they were far away.

लिंटल-शहतीर शैली और मेहराबदार शैली (इण्डो इस्लामिक शैली के रूप में विकसित) के मध्य अंतर-

Difference between lintel-purlin style and vaulted style (developed as Indo-Islamic style)-

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1. लिंटल शहतीर शैली की प्रमुख विशेषता लिंटल का प्रयोग था। जबकि मेहराबदार शैली में मेहराबों और गुंबदों का प्रयोग किया जाता था।

1. The main feature of the lintel beam style was the use of lintels. Whereas arches and domes were used in the vaulted style.

2. लिंटल शहतीर शैली में मंदिरों के शीर्ष के रूप में शिखरों का प्रयोग किया जाता था। ये शिखर सामान्यतः वक्राकार एवं शंक्वाकार होते थे। इसके विपरीत मेहराबदार शैली में मस्जिदों के शीर्ष के रूप में गुंबद का प्रयोग किया जाता था। ये गुंबद सामान्यतः अर्ध्द-गोलाकार होते थे।

2. Shikharas were used as the tops of the temples in the lintel beam style. These peaks were generally curved and conical. In contrast, the dome was used as the top of the mosques in the arched style. These domes were usually semi-circular.

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3. लिंटल-शहतीर शैली में मंदिरों में मीनारों का प्रयोग नहीं किया जाता था। मेहराबदार शैली में मस्जिदों के चारों कोनों पर मीनार प्रयोग किया जाता था।

3. Minarets were not used in temples in the lintel-purlin style. In the arched style, minarets were used at the four corners of the mosques.

4. लिंटल-शहतीर शैली में मंदिरों के निर्माण का प्राथमिक घटक प्रस्तर था। जबकि मेहराबदार शैली में निर्माण कार्य के लिये ईंटों, चूना प्लास्टर और गारे का प्रयोग किया जाता था।

4. The primary component of the construction of temples in the lintel-purlin style was the stone. Whereas bricks, lime plaster and mortar were used for the construction work in the vaulted style.

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आशा है, उपरोक्त जानकारी आपके लिए उपयोगी होगी।
धन्यवाद।
R F Temre
rfcompetition.com

I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
pragyaab.com

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