काव्य गुण - ओज-गुण, प्रसाद-गुण, माधुर्य-गुण || Kavya gun - Oj gun, Prasad Gun, Madhurya Gun
काव्य गुण– जिस प्रकार किसी मनुष्य के बाह्य रूप, उसकी चाल-ढाल तथा व्यवहार को देखकर उसके गुणों का अनुमान लगाया जा सकता है, उसी प्रकार कविता के बाह्य स्वरूप को देखकर 'काव्य गुणों' की प्रतीति होती है।
जैसे- मनुष्य में विनम्रता, उदारता, दया आदि गुण देखे जाते हैं, उसी प्रकार काव्य में 'माधुर्य', 'प्रसाद' और 'ओज गुण' देखे जाते हैं।
आइए इन गुणों के बारे में क्रमशः जानते हैं।
1. ओज गुण– जहाँ कविता को पढ़कर ओज, जोश और उत्साह का भाव जाग्रत हो, 'वीर-रस' का संचार हो वहाँ 'ओज गुण' होता है। 'ओज गुण' की कविता में 'ट' वर्ग की प्रमुखता होती है।
उदाहरण-
एक क्षण भी न सोचो कि तुम होगे नष्ट,
कि तुम अनश्वर हो! तुम्हारा भाग्य है सुस्पष्ट।
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2. प्रसाद गुण– जिस गुण विशेष के कारण सहृदय के चित्त में कोई कविता तत्काल अपेक्षित प्रभाव उत्पन्न करे और भाव स्पष्ट हो जाए वहाँ 'प्रसाद गुण' होता है।
उदाहरण-
जसुमति मन अभिलास करै
कब मेरौ लाल घुटुरुवनि रेंगे कब धरनी पग द्वैक धरै।
कब द्वै दाँत दूध के देखों कब तोतरे मुख वचन झरै।
उपर्युक्त उदाहरण में माता यशोदा की अभिलाषा का चित्रण है। जहाँ प्रसाद गुण उत्पन्न होता है।
3. माधुर्य गुण - जिस गुण विशेष के कारण सहृदय का चित्त आनंद से द्रवित हो जाए, उसमें कठोरता अथवा विरक्ति पैदा न हो, उसे माधुर्य गुण कहते हैं। यह गुण प्रायः शृंगार, करुण और शांत रसों में रहता है। इस गुण सम्पृक्त रचना में 'ट' वर्ग के शब्द, पंचम वर्णों के संयोग से बने दीर्घ शब्द व लंबे पद नहीं होते।
उदाहरण-
'बीती विभावरी जाग री।
अंबर-पनघट में डुबो रही
तारा-घट ऊषा नागरी।"
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आशा है, उपरोक्त जानकारी आपके लिए उपयोगी होगी।
धन्यवाद।
R F Temre
rfcompetition.com
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(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
pragyaab.com
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