
अलंकार – ब्याज-स्तुति, ब्याज-निन्दा, विशेषोक्ति, पुनरुक्ति प्रकाश, मानवीकरण, यमक, श्लेष || Alankar- Byajstuti, Byajninda
1. ब्याज-स्तुति अलंकार– जब कथन में देखने और सुनने पर निन्दा सी जान पड़े किन्तु वास्तव में प्रशंसा हो, वहाँ ब्याज-स्तुति अलंकार होता है।
उदाहरण-
गंगा क्यों टेड़ी चलती हो, दुष्टों को शिव कर देती हो।
2. ब्याज निन्दा अलंकार– इसके विपरीत जहाँ कथन में स्तुति का आभास हो किन्तु वास्तव में निन्दा हो, वहाँ ब्याज निन्दा अलंकार होता है।
उदाहरण-
राम साधु, तुम साधु सुजाना। राम मातु भलि मैं पहिचाना।
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3. विशेषोक्ति अलंकार– जब कारण के होते हुए भी कार्य नहीं होता, वहाँ विशेषोक्ति अलंकार होता है।
उदाहरण-
मूरख हृदय न चेत, जो गुरु मिलहिं बिरंचि सम।
4. विभावना अलंकार – इसके विपरीत जब कारण न होने पर भी कार्य का होना बताया जाता है, वहाँ विभावना अलंकार होता है।
उदाहरण-
बिनु पद चलै सुनै बिनु काना।
कर बिनु करम करे बिधि नाना।।
5. पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार– काव्य में सौंदर्य के लिए एक ही शब्द की आवृत्ति को पुनरुक्ति प्रकाश कहते हैं।
उदाहरण-
1. छन-छन उठी हिलोर, मगन मन पागल दरसा री
2. अरी सुहागिन, भरी माँग में भूली-भूली री।
उपर्युक्त पंक्तियों में 'छन-छन', 'भूली-भूली' शब्दों की पुनरावृत्ति कथन को सौंदर्य प्रदान करने के लिए की गई है।
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6. मानवीकरण अलंकार– जब कविता में प्रकृति पर मानवीय क्रिया कलापों का आरोप किया जाता है तो वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है।
उदाहरण–
"धीरे-धीरे हिम आच्छादन
हटने लगा धरातल से
लगी वनस्पतियाँ अलसाई
मुख धोती शीतल जल से।
उपर्युक्त पंक्तियों में जागने पर अलसाई वनस्पतियों को शीतल जल से मुख धोते हुए बताया गया है।
इसे इस प्रकार भी परिभाषित करते हैं जब अचेतन प्रकृति में कवि चेतना आरोपित करता है तब वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है।
7. यमक अलंकार– जहाँ शब्दों या वाक्यांशों की आवृत्ति एक या एक से अधिक बार होती है। किन्तु उनके अर्थ भिन्न-भिन्न होते हैं, वहाँ यमक अलंकार होता है।
उदाहरण– देह धरे का गुन यही, देह देह कछु देह,
बहुरि न देही पाइये, अबकी देह सुदेह।।
उक्त पद में 'देह' शब्द की आवृत्ति है। 'देह' शब्द के भिन्न-भिन्न अर्थ है। देह का एक अर्थ है शरीर, दूसरा अर्थ है 'देना'। अतः यहाँ यमक अलंकार है।
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8. श्लेष अलंकार – जहाँ एक ही बार प्रयुक्त हुए शब्द से एक ही स्थान पर दो या दो से अधिक अर्थ निकलते हैं, वहाँ श्लेष अलंकार होता है।
उदाहरण-
"जे रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारो करै, बढ़ै अँधेरो होय।।
उक्त पंक्तियों में यहाँ 'बारे' का अर्थ 'लड़कपन' और 'जलाने' से है, और 'बढ़े' का अर्थ 'बड़ा होने' और 'बुझ जाने से है।
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R F Temre
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R. F. Tembhre
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