
रसों का वर्णन - वीर, भयानक, अद्भुत, शांत, करुण || Ras - Veer, Bhayanak, Adbhut, Shant, Karun
अ. वीर रस– जिस काव्यांश को पढ़कर ओज, जोश और उत्साह का भाव जाग्रत हो, व्यक्ति जोश से भर जाये वहाँ वीर रस की निष्पत्ति होती है।
उदाहरण–
जागो फिर एक बार
सिंही की गोद से
छीनता रे शिशु कौन?
मौन भी क्या रहती वह रहते प्राण?
रे अजान।
उक्त उदाहरण किया गया वर्णन उत्साह पूर्ण है और राष्ट्रीयता से ओतप्रोत है। इसको पढ़कर हमारे चित्त में 'उत्साह' स्थायी भाव आता है, इसलिए इस काव्यांश में 'वीर रस' दृष्टव्य है।
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ब. भयानक रस- जहाँ काव्य में भयानक दृश्यों, व्यक्तियों या वस्तुओं का वर्णन हो, वहाँ भयानक रस की निष्पत्ति होती है। इसका स्थायी भाव 'भय' है।
उदाहरण-
जरह नगर भा लोग बिहाला।
झपट लपट बहु कोटि कराला ।।
तातु-मातु हा सुनिअ पुकारा।
यहि अवसर को हमहिं उबारा ।।
स. अद्भुत रस - जहाँ काव्य में अलौकिक या विचित्र वस्तुओं व्यक्तियों अथवा दृश्यों का वर्णन हो वहाँ अद्भुत रस की निष्पत्ति होती है। इसका स्थायी भाव 'विस्मय' है।
उदाहरण-
केसव कहि न जाइ, का कहिए
देखत तव रचना विचित्र अति, समुझि मनहिं मन रहिए।
सून्य भीति पर चित्र, रंग नहि, तनु बिनु लिखा चितैरे।
धोये मिटै न, मरै भीति, दुख पाइय इहि तनु हेरे।
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द. शांत रस- संसार की असारता का अनुभव होने पर हृदय में तत्वज्ञान या वैराग्य भावना के जाग्रत होने पर शांत रस निष्पन्न होता है। इसका स्थायी भाव 'निर्वेद' है।
उदाहरण-
जा दिन मन पंछी उड़ि जैहें
ता दिन तेरे तन- तरुवर के सबै पात झरि जैहे।
या देही को गरब न करियै, स्यार काग-गिध खैहै।
उपर्युक्त उदाहरण में जीवन की असारता एवं जगती की क्षणभंगुरता के कारण उत्पन्न वैराग्य का वर्णन है।
इ. करुण रस- किसी प्रिय व्यक्ति की मृत्यु की संभावना के कारण उत्पन्न शोक के वर्णन में करुण रस की निष्पत्ति होती है। इसका स्थायी भाव शोक है।
उदाहरण-
कौरवों का श्राद्ध करने के लिए,
याकि रोने को चिता के सामने
शेष अब है रह गया कोई नहीं
एक वृद्धा एक अंधे के सिवा।
उपर्युक्त उदाहरण में युद्ध के पश्चात् कौरवों का सर्वनाश हो जाने पर धृतराष्ट्र और गांधारी के शोक का वर्णन है।
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