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मैया मैं नाहीं दधि खायो― सूरदास

"सूर के बालकृष्ण"

मैया मैं नाहीं दधि खायो।
ख्याल परे ये सखा सबै मिलि, मेरे मुख लपटायो।
देखि तुही सींके पर भाजन, ऊँचे धर लटकायो।
तुही निरखि नान्हे कर अपने, मैं कैसे करि पायो।
मुख दधि पोंछि कहत नंदनंदन, दोना पीठ दुरायो।
डारि साँट मुसुकाई तबहि, गहि सुत को कंठ लगायो।
बालविनोद मोद मन मोह्यो, भक्ति प्रताप दिखायो।
सूरदास प्रभु जसुमति के सुख, शिव विरँचि बौरायो।

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11. द्विरुक्ति शब्द क्या हैं? द्विरुक्ति शब्दों के प्रकार

संदर्भ― प्रस्तुत पद्य सूर के बालकृष्ण नामक शीर्षक से लिया गया है। इसकी रचना महाकवि सूरदास ने की है।

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प्रसंग― प्रस्तुत पद्य में माँ यशोदा से बालक कृष्ण की शिकायत की जाती है। इस पर बालक कृष्ण अपनी माता को सफाई देते हुए कहते हैं कि, माँ मैंने दही नहीं खाया है।

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महत्वपूर्ण शब्द― दधि- दही, सींके- छींके, भाजन- पात्र या बर्तन, निरखि- देखिए, नान्हें- छोटे-छोटे, कर- हाथ, नंदनंदन- नंद का पुत्र, दुरायो- छिपाना, साँट- डंडी, सुत- पुत्र, कंठ- गला, बालविनोद- बच्चों द्वारा की जाने वाली मनमोहक क्रियाएँ, मोद- हर्ष या आनंद, मोह्यो- मोहित हो जाना, जसुमति- यशोदा।

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व्याख्या― बालक कृष्ण की माँ यशोदा से शिकायत की जाती है कि उन्होंने छिपकर दही खाया है। इस विषय पर बालक कृष्ण अपनी ओर से सफाई देते हुए कहते हैं कि, माँ मैंने दही नहीं खाया है। मुझे अभी याद आया कि मेरे सभी शाखाओं ने मिलकर मेरे मुँह पर दही लगा दिया है। आगे बालक कृष्ण कहते हैं कि माँ तूने तो सींके पर दही का बर्तन रखकर उसे ऊँचाई पर लटका दिया है। अब तू ही देख मेरे छोटे-छोटे हाथ उस दही के बर्तन तक कैसे पहुँच सकते हैं। यह कार्य मैं कैसे कर सकता हूँ। मुँह से दही को पोछते हुए नंदनंदन बालक श्री कृष्ण दही का दोना पीठ के पीछे छिप लेते हैं। यह सब देखकर माँ यशोदा अपनी डंडी को नीचे छोड़ मुस्कुराने लगती हैं और अपने पुत्र को गले से लगा लेती हैं। बालक कृष्ण की मनमोहक क्रियाएँ मन को मोहने वाली हैं और हर्ष प्रदान करने वाली हैं। यहाँ श्री कृष्ण के प्रति भक्ति-भाव स्पष्ट दिखाई देता है। सूरदास जी कहते हैं कि, बालक कृष्ण की माँ यशोदा के इस सुख के सामने भगवान शिव जी उन्मत्त हैं।

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काव्य सौंदर्य― प्रस्तुत पद्य में ब्रज भाषा का प्रयोग किया गया है। बालक कृष्ण की मनोहारी क्रियाओं का सटीकता के साथ अंकन किया गया है। यहाँ प्रयुक्त किया गया प्रमुख अलंकार अनुप्रास है। इसके साथ ही छंद विधान भी किया गया है। यह वात्सल्य रस का उत्कृष्ट उदाहरण है।

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आशा है, उपरोक्त जानकारी आपके लिए उपयोगी होगी।
धन्यवाद।
R F Temre
rfcompetition.com

I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
pragyaab.com

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