
सखी री लाज बैरन भई– मीराबाई
"मीरा के पद"
सखी री लाज बैरन भई।
श्री लाल गोपाल के संग, काहे नाहिं गई।
कठिन क्रूर अक्रूर आयो, साजि रथ कँह नई।
रथ चढ़ाय गोपाल लैगो, हाथ मीजत रही।
कठिन छाती स्याम बिछुरत, बिरह में तन गई।
दासी मीरा लाल गिरधर, बिखर क्यों न गई।
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संदर्भ
प्रस्तुत पद्यांश 'मीरा के पद' नामक शीर्षक से लिया गया है। इस पद की रचना कवयित्री 'मीराबाई' ने की है।
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प्रसंग
प्रस्तुत पद्यांश में मीराबाई ने श्री कृष्ण से दूर हो जाने के कारण अपनी विरह वेदना व्यक्त किया है। उन्होंने स्वयं के श्री कृष्ण के साथ मथुरा न जाने पर पश्चाताप व्यक्त किया है।
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महत्वपूर्ण शब्द
सखी- सहेली, बैरन- शत्रु या दुश्मन, गोपाल- भगवान श्री कृष्ण, क्रूर- कठोर या दुष्ट, कँह- को, मीजत- मलती, छाती- सीना, बिछुरत- दूर होना, बिरह- वियोग, तई- तप गया, बिखर- समाप्त।
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मीराबाई– कवि परिचय
व्याख्या
मीराबाई अपनी सहेली से कहती हैं कि मेरे मन की लज्जा (शर्म) ही मेरी सबसे बड़ी शत्रु (दुश्मन) है। समाज की परंपराओं से भयभीत होकर एवं लोक-लाज के कारण मैं भगवान श्रीकृष्ण के साथ न जा सकी। मुझे इस विषय पर अत्यंत पश्चताप है कि मैं अपने प्रभु के साथ ही क्यों नहीं चली गई। कठोर हृदय वाला एवं दुष्ट प्रवृत्ति वाला अक्रूर अपने साथ नया रथ सजाकर आया। वह भगवान श्रीकृष्ण को लेने आया था। वह श्रीकृष्ण को रथ पर चढ़ाकर मथुरा ले गया। इस कारण मैं ठगी-सी रह गई और हाथ मलती रह गई। श्रीकृष्ण से बिछुड़ते समय मेरे हृदय में अत्यधिक वेदना थी। भगवान श्रीकृष्ण से वियोग के कारण मेरा शरीर तीव्र ताप से भर गया था। मीराबाई अपना दुःख व्यक्त करते हुए कहती हैं, कि जिस क्षण मेरे प्रभु भगवान श्रीकृष्ण को लेकर अक्रूर मथुरा गये, उसी समय मेरा यह शरीर बिखर क्यों न गया अर्थात् मैं समाप्त क्यों नहीं हो गई।
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काव्य-सौंदर्य
1. मीराबाई ने पश्चाताप के साथ अपनी विरह वेदना को व्यक्त किया है।
2. ब्रजभाषा का प्रयोग किया गया है।
3. यमक एवं अनुप्रास अलंकारों का प्रयोग किया गया है।
4. पद-मैत्री की शोभा दर्शनीय है।
5. शान्त रस का अनूठा अंकन किया गया है।
6. माधुर्य गुण का प्रयोग किया गया है।
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मैया, मोहिं दाऊ बहुत खिझायो― सूरदास
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R F Temre
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R. F. Tembhre
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pragyaab.com
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