सुनि सुनि ऊधव की अकह कहानी कान– जगन्नाथ दास 'रत्नाकर'
"उद्धव-प्रसंग"
सुनि सुनि ऊधव की अकह कहानी कान
कोऊ थहरानी कोऊ थानहि थिरानी हैं।
कहैं 'रतनाकर' रिसानी, बररानी कोऊ
कोऊ बिलखानी, बिकलानी, बिथकानी हैं।
कोऊ सेद-सानी, कोऊ भरि दृग-पानी रहीं
कोऊ घूमि-घूमि परीं भूमि मुरझानी हैं।
कोऊ स्याम-स्याम कह बहकि बिललानी कोऊ
कोमल करेजौ थामि सहमि सुखानी हैं।
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कबीर संगति साधु की– कबीर दास
संदर्भ
प्रस्तुत पद्यांश 'उद्धव-प्रसंग' नामक शीर्षक से लिया गया है। इसके रचनाकार जगन्नाथ दास 'रत्नाकर' हैं।
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प्रसंग
उद्धव ने जब विरहिणी गोपियों को श्री कृष्ण के प्रति प्रेम त्यागकर योग साधना के माध्यम से ब्रह्म प्राप्ति का उपदेश दिया, तो वे सभी व्याकुल हो उठीं। प्रस्तुत पद्यांश में गोपियों की इस व्याकुलता का वर्णन किया गया है।
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सखी री लाज बैरन भई– मीराबाई
महत्वपूर्ण शब्द
अकह- जो कही न जाय या अकथनीय, कोऊ- कोई, थहरानी- काँप गयीं, थानहिं- स्थान पर ही, थिरानी- स्थिर रह गयीं, रिसानी- क्रोधित होना, बररानी- बड़बड़ाने लगी, बिलखानी- बिलख उठीं, बिकलानी- व्याकुल हो उठीं, बिथकानी- थकी-थकी हो गयीं, सेद-सानी- पसीने में भीग गयीं, दृग पानी- आँखों में पानी या आँसू, घूमि-घूमि- चक्कर खाकर, मुरझानी- मूर्च्छित, बिललानी- छटपटाने लगी या बावली सी, कोमल- नरम, करेजौ- हृदय, सुखानी- सूखी-सूखी सी।
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मीराबाई– कवि परिचय
व्याख्या
प्रस्तुत पद्यांश में उद्धव ब्रज की गोपियों को श्री कृष्ण के प्रति प्रेम को त्यागकर योग साधना के माध्यम से परब्रह्म की प्राप्ति का उपदेश देते हैं। इस उपदेश को सुनकर कुछ गोपियाँ काँप उठती हैं, तो कुछ अपने स्थान पर ही जड़वत स्थिर हो जाती हैं। कवि रत्नाकर जी कहते हैं, कि कुछ गोपियों को उद्धव के प्रति भयंकर क्रोध आता है, तो कुछ गोपियाँ क्रोध के कारण बड़बड़ाने लगती हैं। उद्धव के वचन सुनकर कुछ गोपियाँ बिलखने लगीं, तो कुछ व्याकुल हो उठीं, तो कुछ थकी-थकी सी दिखाई देने लगीं। कुछ गोपियों का शरीर पसीने के कारण भीग गया, तो कुछ की आँखों में पानी आ गया। अर्थात् वे उद्धव के कठोर वचनों को सुनकर रो रही थीं। कुछ गोपियाँ चक्कर खाकर भूमि पर गिर पड़ी और मूर्छित हो गईं, तो कुछ बावली सी होकर 'श्याम-श्याम' रटने लगीं। कुछ गोपियाँ सहम कर सूखी-सूखी सी अपना कोमल हृदय थाम कर रह गईं।
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आचार्य केशवदास– कवि परिचय
काव्य-सौंदर्य
प्रस्तुत पद्यांश से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य निम्नलिखित हैं–
1. गोपियों की व्याकुलता का अत्यंत मार्मिक चित्रण किया गया है। उनकी अतिशय व्यथा एवं उद्धव द्वारा दिए गए उपदेश के मर्मान्तक प्रभाव का हृदयस्पर्शी वर्णन किया गया है।
2. गोपियों की विरह वेदना का सजीव चित्रण किया गया है।
3. अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश, विरोधाभास, एवं लोकोक्ति अलंकारों की छटा देखी जा सकती है।
4. पद-मैत्री का सुंदरता के साथ वर्णन किया गया है।
5. शुद्ध-साहित्यिक ब्रजभाषा का प्रयोग किया गया है।
6. प्रस्तुत पद्यांश घनाक्षरी छंद का अनूठा उदाहरण है।
7. श्रृंगार रस एवं माधुर्य गुण का प्रयोग किया गया है।
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बाल्हा मैं बैरागिण हूँगी हो– मीराबाई
आशा है, उपरोक्त जानकारी आपके लिए उपयोगी होगी।
धन्यवाद।
R F Temre
rfcompetition.com
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(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
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