
कबीर कुसंग न कीजिये– कबीरदास
"अमृतवाणी"
कबीर कुसंग न कीजिये, पाथर जल न तिराय।
कदली सीप भुजंग मुख, एक बूँद तिर भाय।
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संदर्भ
प्रस्तुत पद 'अमृतवाणी' नामक शीर्षक से लिया गया है। इसकी रचना 'कबीरदास जी' ने की है।
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प्रसंग
प्रस्तुत पद में कबीर ने बुरे लोगों की संगति से बचने की सलाह दी है।
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महत्वपूर्ण शब्द
कुसंग- बुरा साथ, पाथर- पत्थर, तिराय- तैरता है, कदली- केला, भुजंग- साँप, तिर- तीन, भाय- भाव
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व्याख्या
कबीरदास जी कहते हैं कि हमें कुसंग नहीं करना चाहिए और अच्छे लोगों की संगति करना चाहिए। इस प्रकार की सलाह देते हुए वे कहते हैं, कि हमें कुसंग से बचना चाहिए क्योंकि जल के ऊपर पत्थर नहीं तैरता। उदाहरण देते हुए कवि कहते हैं कि स्वाति नक्षत्र की एक बूँद केला, सेब और साँप के मुँह में गिरकर तीन भावों को ग्रहण कर लेती है। जब वह केले के मुँह में गिरती है, तो कपूर बन जाती है। जब वह सीप के मुँह में गिरती है, तो मोती बन जाती है। जब साँप के मुँह में गिरती है, तो ज़हर (विष) बन जाती है। अर्थात् मनुष्य जिस प्रकार की संगति में रहेगा, वह वैसा ही बन जाएगा।
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काव्य-सौन्दर्य
इस पद से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य निम्नलिखित हैं–
1. प्रस्तुत पद में सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग किया गया है।
2. अनुप्रास एवं दृष्टांत अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग किया गया है।
3. यह पद दोहा छंद का अनूठा उदाहरण है।
4. सत्संगति का महत्व बताया गया है।
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आचार्य केशवदास– कवि परिचय
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R F Temre
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R. F. Tembhre
(Teacher)
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