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आए हौ सिखावन कौं जोग मथुरा तैं तोपै– जगन्नाथ दास 'रत्नाकर'

"उद्धव-प्रसंग"

आए हौ सिखावन कौं जोग मथुरा तैं तोपै
ऊधौ ये बियोग के बचन बतरावौ ना।
कहैं 'रतनाकर' दया करि दरस दीन्यौ
दुख दरिबै कौं, तोपै अधिक बढ़ावौ ना।
टूक-टूक ह्वैहै मन-मुकुर हमारौ हाय
चूकि हूँ कठोर बैन-पाहन चलावौ ना।
एक मनमोहन तौ बसिकै उजार्यौ मोहिं
हिय में अनेक मनमोहन बसावौ ना।

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कबीर कुसंग न कीजिये– कबीरदास

संदर्भ

प्रस्तुत पद्यांश 'उद्धव-प्रसंग' नामक शीर्षक से लिया गया है। इसकी रचना जगन्नाथ दास 'रत्नाकर' ने की है।

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हिंदी पद्य साहित्य का इतिहास– आधुनिक काल

प्रसंग

प्रस्तुत पद्यांश में गोपियाँ उद्धवजी से श्री कृष्ण से वियोग के विषय में बातें न करने का आग्रह करती हैं।

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सुनि सुनि ऊधव की अकह कहानी कान– जगन्नाथ दास 'रत्नाकर'

महत्वपूर्ण शब्द

सिखावन- शिक्षा देने, योग- संयोग एवं योग साधना, तोपै- तो फिर, वियोग- अलग होने, बतरावौ- वार्ता या बातें, दरिबै- नष्ट करने, टूक-टूक- चूर-चूर, ह्वैहै- हो जायेगा, मन-मुकुर- मन रूपी दर्पण, बैन-पाहन- वचन रूपी पत्थर, मनमोहन- मन को मोहित करने वाले भगवान श्रीकृष्ण।

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व्याख्या

प्रस्तुत पद्यांश में गोपियाँ उद्धवजी से कहती है, कि हे उद्धवजी! आप मथुरा से हमें यहाँ पर योग विधि सिखाने आए हैं, तो ये वियोग के वचन हमें मत सुनाइए। हम श्रीकृष्ण से दूर नहीं रह सकते। अतः आप हमें कृष्ण वियोग की बातें मत बताइए। कवि रत्नाकर कहते हैं, कि गोपियाँ पुनः उद्धवजी से प्रार्थना करती हैं और कहती हैं कि हे उद्धवजी! आपने हम पर कृपा करके हमें हमारे ब्रज में दर्शन दिए, तो अब आप हमें ये वियोग की बातें मत सुनाइए। ऐसा करने से हमारा दुःख और अधिक बढ़ जाएगा। आप हम पर अपने वचन रूपी कठोर पत्थर मत चलाइए और हमें वियोग की शिक्षा मत दीजिए। यदि आप ऐसा करेंगे तो हमारा मन रूपी दर्पण टूट कर चूर-चूर हो जाएगा। हमारे मन रूपी दर्पण में तो पहले से ही एक मनमोहन अर्थात् श्रीकृष्ण बस चुके हैं। अब हम चाहकर भी स्वयं के मन से उनको दूर नहीं कर पाएँगें। यदि आप अपने कठोर वचन रूपी पत्थर हमारे मन रूपी दर्पण पर चलाएँगें, तो इस दर्पण के अनेक टुकड़े हो जाएँगें। प्रत्येक टुकड़े में श्रीकृष्ण की छवि ही दिखाई देगी। अर्थात् हमारे मन रूपी दर्पण के प्रत्येक टुकड़े में श्रीकृष्ण ही बस जाएगें।

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भेजे मनभावन के उद्धव के आवन की– जगन्नाथ दास 'रत्नाकर'

काव्य सौंदर्य

इस पद्यांश से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य निम्नलिखित हैं–
1. प्रस्तुत पद में मानव मनोविज्ञान का अद्भुत अंकन किया गया है।
2. इस पद में गोपियों का वाक्-चातुर्य देखने योग्य है।
3. मुहावरों का प्रयोग किया गया है।
4. साहित्यिक ब्रजभाषा एवं व्यंगात्मक शैली अपनायी गयी है।
5. यह पद वियोग श्रंगार रस का अनूठा उदाहरण है।
6. श्लेष, पुनरुक्तिप्रकाश और रूपक अलंकारों का प्रयोग किया गया है।
7. घनाक्षरी छंद का प्रयोग दृष्टव्य है।
8. यह पद माधुर्य गुण का अनोखा उदाहरण है।
9. इस पद में गोपियों के श्रीकृष्ण के प्रति अगाध प्रेम की व्यंजना की गई है।
10. गोपियों की मनःस्थिति का वर्णन किया गया है।

हिन्दी के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।
सखी री लाज बैरन भई– मीराबाई

आशा है, उपरोक्त जानकारी आपके लिए उपयोगी होगी।
धन्यवाद।
R F Temre
rfcompetition.com

I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
pragyaab.com

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