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भारतीय चित्रकलाएँ– परिचय, सिद्धांत, शैलियाँ | Indian Paintings– Introduction, Principles, Styles

चित्रकलाओं का परिचय (Introduction to Paintings)

हमारे भारतवर्ष में कलात्मक उत्कृष्टता की सुदीर्घ परंपरा रही है। चित्रकला उन प्रमुख माध्यमों में से एक है, जिनका प्रयोग इस परंपरा को अभिव्यक्त करने के लिए किया जाता रहा है। पुरातत्त्वविदों को भारत के कुछ भागों से महत्वपूर्ण साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। इन साक्ष्यों से यह ज्ञात होता है, कि भारत में प्राचीन काल से ही चित्रकला का विकास हुआ है। प्राचीन मानव चित्रों के चित्रण में विशेष रूचि लेते थे। भारत के कुछ स्थानों से ऐसे भित्ति चित्र प्राप्त हुए हैं, जिनसे यह ज्ञात होता है कि प्राक् एतिहासिक मानव कला और मनोविनोद की गतिविधियों में लगे हुये थे। प्राचीन काल में चित्रकला मानव के मनोरंजन का प्रमुख साधन थी।

Our India has a long tradition of artistic excellence. Painting is one of the main mediums that have been used to express this tradition. Archaeologists have received important evidence from some parts of India. From these evidences it is known that painting has been developed in India since ancient times. Ancient human beings took special interest in the drawing of pictures. Such murals have been found from some places in India, from which it is known that pre-historic humans were engaged in the activities of art and entertainment. In ancient times, painting was the main means of entertainment for human beings.

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भारतीय चित्रकला के अतीत के चिह्न प्राचीन काल और मध्यकाल से प्राप्त किये जा सकते हैं। आरंभिक काल में पुस्तकें चित्रों से सजायी जाती थीं। आगे चलकर लघु चित्रकला शैली को अपनाया गया। इस शैली का प्रभुत्व मुगल और राजपूत दरबारों में था। यूरोपियों के आगमन के साथ ही चित्रकला एवं उसके उत्कीर्णन ने पश्चिमी रूप धारण कर लिया। अर्थात् पाश्चात्य चित्रकला की शैलियों के कुछ तथ्य भारतीय चित्रकला शैलियों में लिए गए। आधुनिक भारतीय चित्रकारों ने रंगों, डिजाइनों एवं शैलियों का प्रयोग किया। उन्होंने कई उत्कृष्ट चित्रों का चित्रण किया। कई भारतीय चित्रकारों ने वैश्विक स्तर पर पहचान बनाई। उन्होंने अनेक चित्रकलाओं से सम्बद्ध पुरुस्कार प्राप्त किये। साथ ही उन्हें अपनी कल्पनाशीलता के लिए सराहना प्राप्त हुई।

The traces of the past of Indian painting can be traced back to ancient and medieval times. In the early period, books were decorated with pictures. Later on, the miniature painting style was adopted. This style was dominated by the Mughal and Rajput courts. With the arrival of Europeans, painting and its engraving assumed a western form. That is, some facts of the styles of western painting were taken in the Indian painting styles. Modern Indian painters used colours, designs and styles. He painted many outstanding paintings. Many Indian painters made a global mark. He received awards related to many paintings. He was also praised for his imagination.

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चित्रकला के सिद्धांत (Principles of painting)

चित्रकला का प्राचीन इतिहास भीमबेटका, मिर्ज़ापुर और पचमढ़ी के शैल चित्रों से जाना जा सकता है। इसके पश्चात् सिन्धु घाटी सभ्यता के चित्रित मृद्भाण्डों की बारी जाती है। वास्तविक चित्रकला का प्रारंभ गुप्त काल से हुआ था। लगभग तीसरी शताब्दी में वत्स्यायन ने अपनी रचना कामसूत्र में चित्रकला के छः सिद्धांतों/अंगों या षडांग का उल्लेख किया है। ये छः सिद्धांत निम्नलिखित हैं–
1. रूप भेद– रूप का भेद
2. प्रमाण– वस्तु या विषय का अनुपात
3. भाव– रंगों के साथ चमक एवं प्रकाश का निर्माण
4. लावण्य योजनम्– भावनाओं की तल्लीनता
5. सदृश्य विधान– विषय की सदृश्यता का चित्रण
6. वर्णिकाभंग– मॉडलिंग के प्रभाव से साम्यता के लिए रंगों का मिश्रण।

The ancient history of painting can be known from the rock paintings of Bhimbetka, Mirzapur and Pachmarhi. After this, the turn of painted pottery of Indus Valley Civilization goes. The actual painting started from the Gupta period. Around the 3rd century CE, Vatsyayana in his work Kamasutra mentions the six principles/angs or Shadanga of painting. Following are these six principles–
1. Variation of Form– Difference of Form
2. Proof– Proportion of object or subject
3. Bhava– Creation of brightness and light with colors
4. Lavanya Yojana– Immersion of emotions
5. Analogous Legislation– Illustration of analogy of the subject
6. Pigmentation– Mixing of colors for equivalence with modeling effect.

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चित्रकला के संदर्भ (Reference to painting)

ब्राह्मण साहित्य और बौद्ध साहित्य में चित्रकलाओं के लिये अनेक संदर्भ हैं। मिथकों और दंत कथाओं का वस्त्रों पर निरूपण 'लेप्यचित्र' कहलाता है। इसे लेखिय चित्रकला के नाम से भी जाता है। इसमें आरेखन एवं रेखाचित्र होते हैं। पटचित्र, धूलीचित्र आदि चित्रकला के अन्य संदर्भ हैं।

Brahmin literature and Buddhist literature have many references to paintings. The representations of myths and legends on clothes are called 'Lepyachitra'. It is also known as Lekhiya painting. It consists of drawings and drawings. There are other references to painting like Patachitra, Dhulichitra etc.

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चित्रकला की शैलियाँ (Painting styles)

विशाखादत्त द्वारा रचित मुद्राराक्षस नाटक भी पाठकों के लिए विभिन्न चित्रकलाओं अथवा पटों का उल्लेख करता है। इन चित्रकलाओं के माध्यम से चित्रकला की अलग-अलग शैलियों को समझा जा सकता है। साथ ही चित्रकला के सिद्धान्तों का अवलोकन करने में सहायता प्राप्त होती है। चित्रकला की कुछ प्रमुख शैलियाँ इस निम्नलिखित हैं–
1. चौक पिटक– पृथक् फ्रेम लगे हुए चित्र
2. दिग्हल पिटक– चित्रों की लंबी लड़ी
3. यम पिटक– पृथक् चित्रकला।

The play Mudrarakshasa by Vishakhadatta also mentions various paintings or pattas for the readers. Different styles of painting can be understood through these paintings. It also helps in observing the principles of painting. Some of the major styles of painting are as follows–
1. Chowk Pitaka– Pictures with separate frames
2. Dighal Pitaka– a long string of paintings
3. Yama Pitaka– Separate painting.

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आशा है, उपरोक्त जानकारी आपके लिए उपयोगी होगी।
धन्यवाद।
R F Temre
rfcompetition.com

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(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
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R F Temre
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