रहस्यवाद (विशेषताएँ) तथा छायावाद व रहस्यवाद में अंतर
रहस्यवाद का परिचय
हिंदी साहित्य के इतिहास में रहस्यवाद के काल का निर्धारण करना बहुत कठिन है। रहस्यवाद सृष्टि की शुरुआत से ही कवियों को प्रिय रहा है। वेदों में ऊषा, मेघ, सरिता आदि के वर्णन में अव्यक्त परमात्मा के स्वरूप को विशेष महत्व प्रदान किया गया है। रहस्यवाद की प्रकृति रहस्यमयी है। इसके कण-कण में परमात्मा के होने का आभास होता है।
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छायावाद– विशेषताएँ एवं प्रमुख कवि
हिंदी के विभिन्न विद्वानों ने रहस्यवाद को परिभाषित किया है। रहस्यवाद की प्रमुख विशेषताएँ और उन्हें देने वाले विद्वान निम्नलिखित हैं–
1. आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार, "चिंतन के क्षेत्र में जो अद्वैतवाद है, भावना के क्षेत्र में वही रहस्यवाद है।" शुक्ल जी ने रहस्यवाद को भारतीय साहित्य की उपलब्धि माना है। उनकी एक अन्य परिभाषा के अनुसार, "जहाँ कवि अनंत परमतत्व और अज्ञात प्रियतम को आलंबन बनाकर अत्यंत चित्रमयी भाषा में प्रेम की कई प्रकार से व्यंजना करते हैं, वहाँ रहस्यवाद होता है।"
2. बाबू गुलाबराय के अनुसार, "प्रकृति में मानवीय भावों का आरोप कर जड़ चेतन के एकीकरण की प्रवृत्ति के लाक्षणिक प्रयोगों को रहस्यवाद कहा जा सकता है।"
3. मुकुटधर पांडेय के अनुसार, "प्रकृति में सूक्ष्म सत्ता का दर्शन ही रहस्यवाद है।"
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मैथिलीशरण गुप्त– कवि परिचय
हिंदी के इतिहास में छायावादी युग के आने से पहले ही कबीर, जायसी, मीरा आदि कवियों ने अपनी रचनाओं में रहस्यवाद को पूर्ण गरिमा के साथ अभिव्यक्त कर दिया था। काव्य में जहाँ भी आत्मा के परमात्मा से मिलकर एकाकार होने की स्थिति अभिव्यक्त होती है, वहाँ रहस्यवाद होता है। आधुनिक युग के काव्य में रहस्यवाद, छायावादी काव्य का एक अंश मात्र है। प्रसाद, पंत, निराला और महादेवी वर्मा की बहुत सी रचनाओं में रहस्यवाद है, किंतु सभी रचनाएँ रहस्यवादी नहीं है। आधुनिक हिंदी कविता में रहस्यवाद का उद्भव और विकास छायावादी युग में हुआ। छायावादी युग के काव्यों के समापन होने के साथ ही रहस्यवादी कविताओं का विकास बंद हो गया। सन् 1928 से 1930 के आसपास रहस्यवादी काव्य अपनी चरम अवस्था पर पहुँच चुका था। आधुनिक युग की छायावादी कविताओं का अध्ययन कर रहस्यवादी प्रवृत्तियों को समझा जा सकता है।
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रहस्यवाद की विशेषताएँ
रहस्यवाद की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं–
1. परमात्मा से विरह और मिलन के भाव की अभिव्यक्ति– रहस्यवाद में आत्मा को परमात्मा की विरहिणी माना गया है। रहस्यवादी रचनाओं में विरह और मिलन के भाव अभिव्यक्त किए गए हैं।
2. जिज्ञासा की प्रवृत्ति– रहस्यवादी रचनाओं में सृष्टि के समस्त क्रियाकलापों और अदृश्य ईश्वरीय सत्ता के प्रति जिज्ञासा के भाव अभिव्यक्त किए गए हैं।
3. प्रतीकों का उपयोग– रहस्यवादी कवियों ने अपनी रचनाओं में प्रतीकों का प्रयोग कर अपने भावों की अभिव्यक्ति की है।
4. अलौकिक सत्ता के प्रति प्रेम– रहस्यवादी युग के काव्यों में अलौकिक सत्ता के प्रति जिज्ञासा, प्रेम और आकर्षण के भाव अभिव्यक्त किए गए हैं।
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रहस्यवाद और छायावाद में अंतर
रहस्यवाद में चिंतन की प्रधानता है, जबकि छायावाद में कल्पना की प्रधानता है। रहस्यवाद में ज्ञान व बुद्धितत्व की प्रधानता है, जबकि छायावाद में भावना की प्रधानता है। रहस्यवाद की प्रकृति दार्शनिक है, जबकि छायावाद के मूल में प्रकृति है।
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भज मन चरण कँवल अविनासी– मीराबाई
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धन्यवाद।
R F Temre
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(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
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