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प्रगतिवाद– विशेषताएँ एवं प्रमुख कवि

प्रगतिवाद का परिचय

हिंदी साहित्य के इतिहास में प्रगतिवाद को भौतिक जीवन से उदासीन, आत्मनिर्भर, सूक्ष्म और अंतर्मुखी प्रवृत्तियों के विरुद्ध प्रतिक्रिया के रूप में व्यक्त किया गया है। अन्य शब्दों में कहा जाये, तो प्रगतिवाद लोक के विरुद्ध स्थूल जगत की तार्किक प्रतिक्रिया है। प्रगतिवाद को मार्क्स के द्वंदात्मक भौतिकवाद से प्रेरणा प्राप्त हुई थी। सामाजिक चेतना और भावबोध प्रगतिवादी काव्य की अनूठी विशेषता है। प्रगतिवादी काव्य में सामाजिक विचारधारा के साम्यवादी स्वर को महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है। कुछ विद्वानों का कथन है कि राजनीति के क्षेत्र में जो साम्यवाद है, साहित्य के क्षेत्र में वही प्रगतिवाद है। मार्क्सवादी विचारधारा से प्रेरित प्रगतिवादी कवि आर्थिक विषमता को वर्तमान दुःख और अशांति का कारण बताते थे। आर्थिक विषमता के परिणामस्वरूप समाज दो भागों में बँट चुका था– पूँजीपति वर्ग या शोषक वर्ग तथा शोषित वर्ग या सर्वहारा वर्ग। प्रगतिवाद अर्थ, अवसर तथा संसाधनों के समान वितरण के द्वारा ही समाज की उन्नति में विश्वास रखता है। सामान्य जन की प्राण प्रतिष्ठा, श्रम की गरिमा, सामाजिक लोगों के सुख-दुख आदि को प्रस्तुत करना प्रगतिवादी काव्य का प्रमुख लक्ष्य है। प्रगतिवादी काव्य में शोषित वर्ग के प्रति सहानुभूति का भाव व्यक्त किया गया है। यह काव्य उपयोगितावाद और भौतिक दर्शन से प्रभावित है। इस कारण यह प्रगतिवादी काव्य नैतिकता और भावुकता की अपेक्षा बुद्धि व विवेक पर अधिक विश्वास रखता है।

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रहस्यवाद (विशेषताएँ) तथा छायावाद व रहस्यवाद में अंतर

प्रगतिवादी काव्य-धारा, कला की अपेक्षा जीवन को, व्यक्ति की अपेक्षा समाज को एवं स्वानुभूति की अपेक्षा सर्वानुभूति को प्रधानता देती है। प्रगतिवादी चेतना के बीज छायावाद में ही पल्लवित होने लगे थे, परंतु तीसरे तथा चौथे दशक में प्रगतिशील आंदोलन ने काव्य को सामाजिकता की ओर उन्मुख किया। फलस्वरूप यथार्थ से सम्पृक्ति, जन-जीवन से संलग्नता, माननीय समस्याओं से सीधे साक्षात्कार, शोषितों के प्रति सहानुभूति का भाव आदि प्रगतिवादी काव्य के प्रमुख विषय बन गए। छायावादी युग के काव्य में केवल किसान वर्ग के प्रति सहानुभूति को व्यक्त किया जाता था, जबकि प्रगतिवादी युग के काव्य में मजदूरों के प्रति भी सहानुभूति व्यक्त की गई।

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प्रगतिवाद की विशेषताएँ

प्रगतिवादी काव्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं–
1. शोषक-वर्ग के प्रति विद्रोह एवं शोषित-वर्ग के प्रति सहानुभूति का भाव– प्रगतिवादी कवियों ने शोषित-वर्ग जैसे- किसानों, मजदूरों आदि पर किये जाने वाले अत्याचारों के प्रति विरोध व्यक्त किया है। उन्होंने अपने काव्य में शोषक वर्ग जैसे- पूँजीपतियों आदि के प्रति विद्रोह व्यक्त किया है।
2. आर्थिक एवं सामाजिक समानता की प्रधानता– प्रगतिवादी काव्य में साहित्यकारों ने आर्थिक और सामाजिक समानता पर बल दिया है। उन्होंने निम्न वर्ग एवं उच्च वर्ग के अंतर को समाप्त करने के भाव व्यक्त किए हैं। उन्होंने कविताओं के माध्यम से आर्थिक व सामाजिक समानता के महत्व को प्रतिपादित किया है।
3. नारी के प्रति सम्मान एवं नारी शोषण का विरोध– प्रगतिवादी कवियों ने नारी को सम्मानजनक स्थान प्रदान किया है। उन्होंने अपने काव्यों में नारी को शोषण से मुक्त कराने के भाव व्यक्त किए हैं। उनका मानना है कि समाज तभी उन्नति कर सकता है, जब नारी को सम्मानजनक स्थान प्राप्त होगा।
4. ईश्वर के प्रति अनास्था के भाव– प्रगतिवादी कवियों ने ईश्वर के प्रति अनास्था के भाव व्यक्त किए हैं। वे ईश्वरीय शक्ति की अपेक्षा मानवीय शक्ति को प्रधानता देते हैं। इन कवियों की रचनाएँ यथार्थवादी हैं।
5. सामाजिक यथार्थ का चित्रण– प्रगतिवादी कवियों की रचनाओं में व्यक्तिगत सुख-दुख के भावों की अभिव्यक्ति बहुत कम मिलती है। इन कवियों ने समाज की गरीबी, भुखमरी, अकाल, बेरोजगारी आदि सामाजिक समस्याओं के समाधान हेतु प्रयास किये हैं।
6. काव्य में प्रतीकों का उपयोग– अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने के लिए प्रगतिवादी कवियों ने अपने काव्यों में प्रतीकों का प्रयोग किया है।
7. भाग्य की अपेक्षा कर्म को अधिक महत्व– प्रगतिवादी कवियों ने अपनी रचनाओं में श्रम की महत्ता का प्रतिपादन किया है। उन्होंने भाग्यवाद को पूँजीवादी शोषण का हथियार बताया है।

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प्रगतिवादी कवि एवं उनकी रचनाएँ

प्रगतिवाद के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं–
1. नागार्जुन– युगधारा, प्यासी पथराई आँखें, सतरंगे पंखों वाली।
2. शिवमंगल सिंह सुमन– हिल्लोल, जीवन के गान, विश्वास बढ़ता ही गया, प्रलय सृजन।
3. केदारनाथ अग्रवाल– फूल नहीं रंग बोलते हैं, नींद के बादल, युग की गंगा।
4. रांगेय राघव– मेधावी, पांचाली, राह के दीपक, अजेय खण्डहर।
5. त्रिलोचन– धरती, मिट्टी की बारात, मैं उस जनपद का कवि हूँ।
6. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला– कुकुरमुत्ता।
7. सुमित्रानंदन पंत– युगवाणी, ग्राम्या।

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धन्यवाद।
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