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जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय एवं काव्यगत विशेषताएँ

जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय

जयशंकर प्रसाद का जन्म सन् 1889 में उत्तर प्रदेश के वाराणसी में हुआ था। उनके पिता का नाम सुंघनी साहू था। सुंघनी साहू विद्वानों और कलाकारों का बहुत सम्मान करते थे और साहित्य प्रेमी थे। पिता के इन गुणों को जयशंकर प्रसाद ने ग्रहण किया। प्रसादजी का बचपन दुःखों में व्यतीत हुआ। बचपन में ही उनके माता-पिता की मृत्यु हो गई थी। उन्होंने केवल आठवीं कक्षा तक पढ़ाई की थी। जब वे 17 वर्ष के थे, उनके बड़े भाई का भी निधन हो गया। इस कारण प्रसादजी को पारिवारिक समस्याओं का सामना भी करना पड़ा। उन्होंने अपने घर पर ही हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, संस्कृत आदि भाषाओं की शिक्षा ग्रहण की। आगे चलकर प्रसादजी उच्च कोटि के कवि, नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार और निबंधकार बन गए। प्रसादजी को संस्कृत अध्ययन में विशेष रूचि थी। उन्होंने वेद व उपनिषद के अलावा इतिहास और दर्शनशास्त्र का भी अध्ययन किया। उन्होंने अपने जीवन में बहुत संघर्ष किया और अनेक कठिनाइयों का सामना किया। माता-पिता, भाई, पत्नी आदि परिवार के सदस्यों की मृत्यु होने के बाद जयशंकर प्रसाद बहुत दुःखी हो गए। इस कारण उनका स्वास्थ्य खराब होता गया। परिणामस्वरूप सन् 1937 में 48 वर्ष की आयु में जयशंकर प्रसाद का निधन हो गया। उन्होंने हिंदी साहित्य के विकास में अपना योगदान दिया। उनका महाकाव्य 'कामायनी' युगांतरी रचना है।

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महत्वपूर्ण रचनाएँ

जयशंकर प्रसाद की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं–
1. कामायनी (महाकाव्य)
2. कानन-कुसुम (काव्य)
3. प्रेम-पथिक (काव्य)
4. झरना (काव्य)
5. लहर (काव्य)
6. आँसू (काव्य)
7. महाराणा का महत्व (काव्य)
8. राज्यश्री (नाटक)
9. अजातशत्रु (नाटक)
10. चंद्रगुप्त (नाटक)
11. स्कंदगुप्त (नाटक)
12. ध्रुवस्वामिनी (नाटक)
13. कंकाल (उपन्यास)
14. तितली (उपन्यास)
15. इरावती (उपन्यास)
16. आकाशदीप (कहानी)
17. आँधी (कहानी)
18. इंद्रजाल (कहानी)
19. प्रतिध्वनि (कहानी)
20. छाया (कहानी)
21. काव्य और कला (निबंध)
22. अन्य निबंध (निबंध)
23. चित्रा धार
24. करूणालय।

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भावपक्ष

जयशंकर प्रसाद भारतीय संस्कृति का बहुत सम्मान करते थे। भारतीय संस्कृति के समस्त आदर्श रूपों का उन्होंने अपने काव्य में सुंदरता के साथ चित्रण किया है। प्रसादजी लोककल्याण और विश्वबंधुत्व की भावना से ओतप्रोत थे। वे एक आशावादी कवि और लेखक थे। प्रसादजी ने प्रेम और सौंदर्य से संबंधित काव्यों की रचनाएँ की हैं। इन काव्यों का मूल तत्व प्रेम है। यह प्रेम त्याग और बलिदान की भावना को प्रकट करता है। प्रसादजी ने सौंदर्य की मधुर झाँकियों को अपने काव्य में प्रस्तुत किया है। इन काव्यों के अलावा उन्होंने प्रकृतिसम्बद्ध रचनाएँ भी की हैं। प्रसादजी प्रकृतिक सौंदर्य के कुशल चित्रकार थे। उन्होंने अपने काव्य में प्रकृति के अनेक रूपों का अंकन किया है। प्रकृति के मानवीकरण और प्रतीकात्मक रूप को उनके काव्य में सहजता से देखा जा सकता है। प्रसाद जी ने रहस्यवादी रचनाएँ भी की हैं। उनके द्वारा रचित 'कामायनी' महाकाव्य रहस्यवादी काव्य का उत्कृष्ट उदाहरण है। इस महाकाव्य में प्रसादजी ने अपनी रहस्य भावना को प्रगट किया है। इनके अलावा उन्होंने अपने कुछ काव्यों में नारी के विविध रूपों का चित्रण किया है। उन्होंने नारी को प्रेम, दया, ममता, माया, करूणा, मधुरिमा, विश्वास आदि की प्रतिमूर्ति बताया है। वे पुरुष की अपेक्षा नारी को अधिक महत्व प्रदान करते थे। अतः स्पष्ट है कि प्रसाद जी सौंदर्य, प्रेम, प्रकृति, रहस्य आदि के महान चित्रकार (कवि और लेखक) थे। इन विषयों के अलावा उन्होंने स्वाधीनता और राष्ट्रीयता से संबंधित रचनाएँ भी की थी। उन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए गाये जाने वाले गीतों की रचनाएँ भी की थी।

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कलापक्ष

जयशंकर प्रसाद की भाषा में सहज प्रवाह और काव्य सौंदर्य है। उन्होंने तत्सम शब्दों का प्रयोग किया है। प्रसाद जी ने प्रारंभ में ब्रजभाषा में काव्य रचना की थी। आगे चलकर उन्होंने खड़ी बोली का प्रयोग कर रचनाएँ की। प्रसाद जी की भाषा प्रौढ़, प्रांजल और प्रसाद गुणों से संपन्न है। उन्होंने मुक्तक और प्रबंध दोनों शैलियों का प्रयोग कर काव्य रचना की है। उनकी शैली में भावात्मकता और चित्रात्मकता को सहजता से देखा जा सकता है। प्रसाद जी ने प्रारंभ में सवैया और कवित्त छंदों का प्रयोग कर काव्य-रचना की। आगे चलकर उन्होंने अतुकांत छन्दों का प्रयोग किया। उन्होंने कुछ नए छंदों का भी निर्माण किया था। प्रसाद जी ने बहुत से अलंकारों का भी प्रयोग किया था। उनके प्रमुख अलंकार रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा, मानवीकरण आदि हैं। उन्होंने गीतों में गेयता, सरसता, अनुभूति की गहनता, प्रभावोत्पादकता आदि को सहजता से प्रस्तुत किया है। उनके काव्य में रस पूर्णता, छंद विविधता और कथा-क्रम का पूर्ण रूप से निर्वाह किया गया है।

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साहित्य में स्थान

जयशंकर प्रसाद विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। उन्हें छायावादी युग का प्रवर्तक माना जाता है। उन्होंने अपने काव्य में सूक्ष्म अनुभूतियों, भावनाओं, मनोविकारों और विचारों का मर्मस्पर्शी अंकन किया है। उनका रहस्यवाद हिंदी साहित्य के रहस्यवादी काव्यों के लिए मिसाल है। प्रसाद जी ने इतिहास, दर्शनशास्त्र, कला आदि का संयोग कर काव्य को सुंदरता के साथ प्रस्तुत किया है। उनका महाकाव्य 'कामायनी' हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि है। हिंदी साहित्य के कवियों में जयशंकर प्रसाद का महत्वपूर्ण स्थान है।

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आशा है, उपरोक्त जानकारी आपके लिए उपयोगी होगी।
धन्यवाद।
R F Temre
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