मृदा अपरदन– दुष्प्रभाव एवं बचाव | Soil Erosion– Effects and Prevention
मृदा अपरदन (Soil Erosion)
मृदा कणों का विभिन्न बाह्य कारकों एवं मानवीय क्रियाकलापों द्वारा पृथक होकर बह जाना, 'मृदा अपरदन' कहलाता है। मृदा अपरदन जल, वायु, गुरुत्वीय विस्थापन आदि बाह्य कारकों के द्वारा होता है। मृदा अपरदन को 'रेंगती हुई मृत्यु' के नाम से भी जाना जाता है। मध्यप्रदेश (भारत) के संदर्भ में चंबल नदी अपवाह क्षेत्र सबसे अधिक मृदा अपरदन से प्रभावित क्षेत्र है। इस अपवाह तंत्र के अंतर्गत भिंड, श्योपुर, मुरैना, ग्वालियर आदि जिले आते हैं। इन क्षेत्रों में अवनालिका अपरदन की वजह से 'उतखात भूमि' का निर्माण हुआ है।
The separation of soil particles by various external factors and human activities is called 'soil erosion'. Soil erosion is caused by external factors like water, wind, gravitational displacement etc. Soil erosion is also known as 'creeping death'. In the context of Madhya Pradesh (India), the Chambal river drainage area is the area most affected by soil erosion. Districts like Bhind, Sheopur, Morena, Gwalior etc. come under this drainage system. 'Utkhat land' has been created due to duct erosion in these areas.
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मृदा अपरदन के दुष्प्रभाव (Effects Of Soil Erosion)
मृदा अपरदन की वजह से फसलों के बीज एवं छोटे पौधे नष्ट हो जाते हैं। इस कारण धीरे-धीरे मृदा का ह्रास हो रहा है। नदी क्षेत्रों में अवनालिका अपरदन हो रहा है। इस कारण इन क्षेत्रों में कृषि करने में व्यवधान उत्पन्न हो रहा है। मृदा अपरदन की वजह से विशाल भूखण्ड टूट जाते हैं। फलस्वरुप उपजाऊ मृदा नष्ट हो जाती है। मृदा की ऊपरी परत में सूक्ष्म कण स्थित होते हैं। ये फसल के लिए बहुत उपयोगी होते हैं। मृदा अपरदन के कारण ये कण धीरे-धीरे नष्ट होते जा रहे हैं। इससे उपजाऊ भूमि बंजर बनते जा रही है। मृदा अपरदन के कारण गहरे खण्ड और बड़ी-बड़ी नालियों का निर्माण हो रहा है। इस कारण धीरे-धीरे मृदा की उपजाऊ शक्ति कम हो रही है।
Due to soil erosion, seeds and small plants of crops are destroyed. Due to this the soil is gradually degrading. Drainage erosion is taking place in river areas. Due to this, there is a problem in agriculture in these areas. Large tracts of land are broken up due to soil erosion. As a result, fertile soil gets destroyed. Fine particles are located in the upper layer of the soil. They are very useful for the crop. These particles are slowly getting destroyed due to soil erosion. Due to this the fertile land is becoming barren. Due to soil erosion, deep stretches and large drains are being formed. Due to this gradually the fertility of the soil is decreasing.
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मृदा अपरदन से बचाव (Protection Against Soil Erosion)
अवनालिकाओं का भराव तथा ढ़लाव के द्वारा वेदिकाओं का निर्माण किया जाता है। इससे मृदा अपरदन की रोकथाम की जा सकती है। मृदा अपरदन को रोकने के लिए बीहड़ क्षेत्रों का समतलन करना चाहिए। इसके अलावा इन क्षेत्रों में मिट्टी को संगठित करने वाले पौधे लगाने चाहिए। अधिक से अधिक वृक्षारोपण करना चाहिए। अत्यधिक पशुचारण पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। इसके अलावा झूम कृषि पर नियंत्रण स्थापित करना चाहिए। इन उपायों को अपनाकर मृदा अपरदन जैसी पर्यावरणीय समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।
Valulets are formed by filling and casting of tubules. Soil erosion can be prevented by this. Rugged areas should be leveled to prevent soil erosion. Apart from this, soil compacting plants should be planted in these areas. More and more trees should be planted. Excessive pastoralism should be banned. Apart from this, control should be established on Jhum cultivation. Environmental problems like soil erosion can be solved by adopting these measures.
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(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
pragyaab.com
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