यह तन काँचा कुम्भ है – कबीर दास
अमृतवाणी
यह तन काँचा कुम्भ है, लिये फिरै थे साथ।
टपका लागा फुटि गया, कछू न आया हाथ।
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शब्दार्थ
तन- शरीर, काँचा- कच्चा, कुम्भ- घड़ा, फिरै- घूमना, टपका- बूँद या चोट, लागा- लग गया, फुटि- फूट जाना, कछू- कुछ भी।
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सन्दर्भ
प्रस्तुत दोहा 'अमृतवाणी' नामक शीर्षक से लिया गया है। इसकी रचना 'कबीर दास' ने की है।
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प्रसंग
प्रस्तुत दोहे में मानव शरीर पर अहंकार न करने की सलाह दी गई है।
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व्याख्या
कबीर दास जी कहते हैं कि यह शरीर तो कच्चे घड़े के समान है। मनुष्य इसे अपने साथ लिए घूम रहा था। मनुष्य के इस शरीर पर समय की एक बूँद (चोट) लगी और वह फूट गया। अर्थात् वृद्ध हो जाने के कारण अथवा अन्य कारण से मनुष्य की मृत्यु हो गई। मानव शरीर नष्ट हो गया और कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ। मानव का जीवन व्यर्थ चला गया। अतः हमें अपने शरीर पर अहंकार नहीं करना चाहिए।
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काव्य-सौन्दर्य
प्रस्तुत दोहे से सम्बन्धित महत्वपूर्ण तथ्य निम्नलिखित हैं–
1. नश्वर शरीर पर व्यक्ति को अहंकार नहीं करना चाहिए।
2. सरल, सुबोध और व्यवहारिक भाषा का प्रयोग किया गया है।
3. अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया गया है।
4. प्रस्तुत दोहा शान्त रस का उदाहरण है।
5. दोहा छंद का प्रयोग किया गया है।
6. प्रस्तुत दोहे के माध्यम से जीवन के कटु सत्य को उजागर किया गया है।
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I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
pragyaab.com
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