महावीर स्वामी ने ज्ञान (कैवल्य) कैसे प्राप्त किया? | How Did Mahavir Swami Attain Knowledge (Kaivalya)?
पारिवारिक जानकारी (Family Information)
महावीर स्वामी का जन्म वैशाली के निकट कुण्डग्राम में 540 ईसा पूर्व को हुआ था। उनके पिता 'सिद्धार्थ' कुण्डग्राम के ज्ञातृक कुल के प्रधान थे। महावीर स्वामी की माँ का नाम 'त्रिशला' था। वह लिच्छवी राजकुमारी थी। महावीर स्वामी की पत्नी का नाम 'यशोदा' था। उनके बड़े भाई का नाम 'नंदिवर्धन' और बहिन का नाम 'सुदर्शना' था। उनकी पुत्री का नाम 'अयोज्या' (अनविद्या) था। उनकी पुत्री को 'प्रियदर्शना' नाम से भी जाना जाता है। प्रियदर्शना का विवाह 'जामालि' से हुआ था। जामालि महावीर स्वामी के प्रथम शिष्य थे।
Mahavir Swami was born in 540 BC at Kundagram near Vaishali. His father 'Siddhartha' was the head of the Gyantrik clan of Kundagram. Mahavir Swami's mother's name was Trishala. She was a Lichchavi princess. The name of the wife of Mahavir Swami was 'Yashoda'. His elder brother's name was 'Nandivardhan' and sister's name was 'Sudarshana'. His daughter's name was 'Ayojya' (Anividya). His daughter is also known by the name 'Priyadarshana'. Priyadarshana was married to 'Jamali'. Jamali was the first disciple of Mahavir Swami.
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ज्ञान प्राप्ति (Knowledge Acquisition)
महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे। उनका वास्तविक नाम 'वर्ध्दमान' था। उन्हें जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। उनका गौत्र 'कश्यप' था। महावीर स्वामी ने 30 वर्ष की आयु में गृह का त्याग कर दिया था। इसके बाद उन्होंने 12 वर्ष तक कठोर तपस्या की। 42 वर्ष की आयु में उन्हें 'कैवल्य' अर्थात् सर्वोच्च ज्ञान प्राप्त हुआ। महावीर स्वामी को कैवल्य की प्राप्ति जुम्भियग्राम के पास ऋजुपालिका नदी के तट पर साल वृक्ष के नीचे प्राप्त हुआ था। कैवल्य प्राप्ति के पश्चात् महावीर स्वामी को निम्नलिखित नामों से जाना गया–
1. केवलिन
2. जिन (विजेता)
3. अर्ह (योग्य)
4. निर्गंथ (बन्धन रहित)।
Mahavir Swami was the 24th Tirthankara of Jainism. His real name was 'Vardhman'. He is considered the real founder of Jainism. His gotra was 'Kashyap'. Mahavir Swami left the house at the age of 30. After this he did rigorous penance for 12 years. At the age of 42, he attained 'Kaivalya' i.e. supreme knowledge. Mahavir Swami received Kaivalya under the Sal tree on the banks of river Rijupalika near Jumbiyagram. After attaining Kaivalya, Mahavir Swami was known by the following names–
1. Kevalin
2. Jin (Winner)
3. Qualified
4. Unfastened.
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समाज कल्याण (Social Welfare)
बौद्ध साहित्य में महावीर स्वामी को निगण्ठ-नाथपुत्त कहा गया है। वर्ध्दमान के माता-पिता 23 वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के अनुयायी थे। आगे चलकर वर्ध्दमान, जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर बन गए और महावीर स्वामी के नाम से जाने गए। उन्होंने चार महाव्रतों में पाँचवें महाव्रत 'ब्रम्हचर्य' को जोड़ा। उन्होंने इस पंच महाव्रत रूपी धर्म को चलाया था। महावीर स्वामी अहिंसा के पुजारी थे। उनका संपूर्ण जीवन त्याग और तपस्या से ओतप्रोत था। हिंसा, पशुबलि, जाति-पाँती के भेदभाव आदि से भरे युग में जन्म लेने के बाद भी महावीर स्वामी ने समाज की कुरीतियों के विरुद्ध आवाज उठाई। उन्होंने एक शिक्षित, समृद्ध और गौरवपूर्ण समाज की कल्पना की। महावीर स्वामी की मृत्यु 72 वर्ष की आयु में 468 ईसा पूर्व में पावा में हुई थी।
Mahavir Swami has been called Nigantha-Nathputta in Buddhist literature. Vardhamana's parents were the followers of 23rd Tirthankara Parshvanath. Later on, Vardhamana became the 24th Tirthankara of Jainism and was known as Mahavir Swami. He added the fifth Mahavrata 'Brahmacharya' to the four Mahavratas. He had run this Pancha Mahavrata form of religion. Mahavir Swami was a priest of non-violence. His whole life was full of sacrifice and penance. Mahavir Swami raised his voice against the evils of the society even after being born in an era full of violence, animal sacrifice, discrimination of caste and creed etc. He envisioned an educated, prosperous and proud society. Mahavir Swami died at the age of 72 in Pava in 468 BC.
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(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
pragyaab.com
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