निबन्ध क्या है? | निबन्ध का इतिहास || प्रमुख निबन्धकार एवं उनकी रचनाएँ
निबन्ध की परिभाषा
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार, "यदि गद्य कवियों या लेखकों की कसौटी है, तो निबन्ध गद्य की कसौटी है।" एक अन्य परिभाषा के अनुसार, निबन्ध उस गद्य रचना को कहते हैं, जिसमें किसी विषय का वर्णन एवं प्रतिपादन उचित ढंग से किया गया हो।
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निबन्ध का इतिहास
निबन्ध हिन्दी की एक महत्वपूर्ण विधा है। इसके इतिहास को निम्नलिखित चार भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है–
1. भारतेन्दु युग
2. द्विवेदी युग
3. शुक्ल युग
4. शुक्लोत्तर युग।
भारतेन्दु युग
इस युग का प्रारम्भ सन् 1850 ईस्वी से होता है। यह युग 1900 ईस्वी तक चलता रहा। निबन्ध साहित्य का प्रारम्भ इसी युग से हुआ था। इस युग के प्रवर्तक हिन्दी के प्रसिद्ध लेखक 'भारतेन्दु हरिश्चन्द्र' थे। इस युग की पत्र-पत्रिकाओं में निबन्ध का प्रारम्भिक रूप देखा जा सकता है। इस युग में अधिकांशतः छोटे-छोटे निबन्ध लिखे गए थे, जैसे– आँख, भौंह, बातचीत आदि। समाज सुधार, राष्ट्रीयता और देशभक्ति का भाव इस युग के निबन्धों की प्रमुख विशेषता रही है। इन निबन्धों के माध्यम से अन्धविश्वासों और रूढ़ियों के विरुद्ध आवाज उठाई गई है। निबन्धों में व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग किया गया है।
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1. यह तन काँचा कुम्भ है – कबीर दास
2. नाम अजामिल-से खल कोटि – गोस्वामी तुलसीदास
3. एहि घाटतें थोरिक दूरि अहै– गोस्वामी तुलसीदास
4. रावरे दोषु न पायन को – गोस्वामी तुलसीदास
5. प्रभुरुख पाइ कै, बोलाइ बालक घरनिहि – गोस्वामी तुलसीदास
भारतेन्दु युग के प्रमुख निबन्धकार एवं उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं–
1. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र– ईश्वर बड़ा विलक्षण है, एक अद्भुत अपूर्व स्वप्न।
2. बालकृष्ण भट्ट– चन्द्रोदय, बातचीत, चढ़ती उमर।
3. बाल मुकुन्द गुप्त– शिवशम्भु का चिट्ठा।
4. प्रताप नारायण मिश्र– वृद्ध, दाँत, परीक्षा, पेट।
द्विवेदी युग
इस युग का प्रारम्भ 1900 ईस्वी से हुआ था। यह युग 1920 ईस्वी तक चलता रहा। इस युग के सबसे प्रभावशाली लेखक और सम्पादक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी हैं। उन्होंने 'सरस्वती' नामक पत्रिका को सम्पादित किया था। उन्होंने मनोरंजक और विचारात्मक निबन्धों का लेखन किया था। द्विवेदी युग के निबन्धों में विषयवस्तु की गम्भीरता है। परिमार्जित भाषा और हास्य व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग किया गया है। इस युग के निबन्ध समाज सुधार की भावना से ओतप्रोत हैं।
द्विवेदी युग के प्रमुख निबन्धकार एवं उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं–
1. आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी– विचार वीथी, साहित्य की महत्ता।
2. बाबू श्यामसुन्दर दास– भारतीय साहित्य की विशेषताएँ, समाज और साहित्य।
3. सरदार पूर्णसिंह– कन्यादान, सच्ची वीरता, मजदूरी और प्रेम, आचरण की सभ्यता।
4. चन्द्रधर शर्मा गुलेरी– मारेसि मोहि कुठाँव, कछुआ धर्म।
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5. यह संसार क्षणभंगुर है – जैनेन्द्र कुमार
शुक्ल युग
इस युग का प्रारम्भ 1920 ईस्वी से हुआ था। यह युग 1940 ईस्वी तक चलता रहा। इस युग के प्रवर्तक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हैं। इन्होंने भाव व मनोविकारों से सम्बन्धित तथा आलोचनात्मक निबन्धों की रचनाएँ की। शुक्ल युग को निबन्ध का 'स्वर्ण काल' कहा जाता है। इस युग में गम्भीर, विचारात्मक एवं उदात्त भाव प्रधान निबन्धों की रचनाएँ की गयी। विषय प्रधान निबन्धों का लेखन प्रमुख रूप से किया गया। निबन्धों में प्रौढ़ और गम्भीर शैली का प्रयोग किया गया है। विषय वस्तु में पर्याप्त विविधता है। शुक्ल युग में मनोविकारात्मक निबंधों की भी रचनाएँ की गयी।
शुक्ल युग के प्रमुख निबन्धकार एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं–
1. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल– चिन्तामणि भाग 1 भाग 2 में संग्रहित– भय, उत्साह, क्रोध, श्रद्धा-भक्ति।
2. बाबू गुलाबराय– सिद्धान्त और अध्ययन, ठलुआ क्लब।
3. शान्तिप्रिय द्विवेदी– कवि और काव्य, वृन्त और विकास।
4. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी– मेरे प्रिय निबन्ध, प्रदीप पन्चपात्र।
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शुक्लोत्तर युग
इस युग का प्रारम्भ 1920 ईस्वी से हुआ था। यह युग अब तक जारी है। इस युग में निबन्धों का विकास अपनी चरम सीमा पर पहुँच चुका था। इस युग में विषय वैविध्य अपेक्षाकृत अधिक दृष्टिगत होता है। इस युग के निबन्ध लेखक की अपनी निजी विशेषताएँ हैं। इस युग में भावनात्मक और आत्मपरक निबन्धों की रचनाएँ की गयी। विचारात्मक, भावनात्मक और समीक्षात्मक शैलियों का प्रयोग किया गया। इस युग के निबन्धों में विषय वस्तु की विविधता है।
शुक्लोत्तर युग के प्रमुख निबन्धकार एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं–
1. हजारी प्रसाद द्विवेदी– विचार और वितर्क, अशोक के फूल।
2. डॉ. नगेन्द्र– विचार और अनुभूति, आलोचक की आस्था, विचार और विश्लेषण।
3. विद्यानिवास मिश्र– तुम चन्दन हम पानी, चितवन की छाँह।
4. नन्ददुलारे बाजपेयी– नया साहित्य, आधुनिक साहित्य।
5. अमृतराय– सहचिन्तन।
6. रामविलास शर्मा– प्रगति और परम्परा, प्रगतिशील साहित्य।
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4. प्रयोगवाद– विशेषताएँ एवं महत्वपूर्ण कवि
5. नई कविता– विशेषताएँ एवं प्रमुख कवि
ललित निबन्ध
ललित निबन्ध आत्माभिव्यंजक, सांस्कृतिक, पारम्परिक और लोक-विश्रुत तथ्यों और तर्कों को आत्मसात किए हुए होते हैं। अनिवार्यतः उनमें कथा का चुटीलापन, अनौपचारिक संवादों का टकापन और माटी का सोंधा बघार होता है जो निबन्धकार को सांस्कृतिक पुरुष की संज्ञा दिलाने में समर्थ है। ललित निबन्ध मानव मूल्यों की गाथा को गूँथने का संकल्प, परम्परा और प्रगति के साथ करता है। ललित निबन्धों में पद्य जैसा प्रवाह और भावनात्मकता होती है।
हिन्दी के प्रमुख ललित निबन्धकार निम्नलिखित हैं–
1. आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
2. विद्यानिवास मिश्र
3. डॉ. रघुवीर सिंह
4. कुबेर नाथ राय
5. रामनारायण उपाध्याय।
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1. छावते कुटीर कहूँ रम्य जमुना कै तीर– जगन्नाथ दास 'रत्नाकर'
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3. हिंदी का इतिहास– भारतेन्दु युग (विशेषताएँ एवं प्रमुख कवि)
4. हिन्दी का इतिहास– द्विवेदी युग (विशेषताएँ एवं कवि)
5. मैथिलीशरण गुप्त– कवि परिचय
हिन्दी के अन्य प्रमुख निबन्धकार निम्नलिखित हैं–
1. शरद जोशी
2. हरिशंकर परसाई
3. ज्ञान चतुर्वेदी
4. रवीन्द्रनाथ त्यागी।
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1. आए हौ सिखावन कौं जोग मथुरा तैं तोपै– जगन्नाथ दास 'रत्नाकर'
2. जो पूर्व में हमको अशिक्षित या असभ्य बता रहे– मैथिलीशरण गुप्त
3. जो जल बाढ़ै नाव में– कबीरदास
4. देखो मालिन, मुझे न तोड़ो– शिवमंगल सिंह 'सुमन'
5. शब्द सम्हारे बोलिये– कबीरदास
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1. बीती विभावरी जाग री― जयशंकर प्रसाद
2. मैया मैं नाहीं दधि खायो― सूरदास
3. मैया कबहिं बढ़ैगी चोटी― सूरदास
4. बानी जगरानी की उदारता बखानी जाइ― केशवदास
5. मैया, मोहिं दाऊ बहुत खिझायो― सूरदास
I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
pragyaab.com
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