भाषा क्या है? | भाषा की परिभाषाएँ और विशेषताएँ
भाषा की परिभाषा
'भाषा' शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के 'भाष' धातु से हुई है। भाष का शाब्दिक अर्थ 'बोलना' होता है। अर्थात् इसका सामान्य अर्थ होता है, "अपने विचारों अथवा भावों को प्रकट करना।" सामान्य अर्थ में भाषा विचारों अथवा भावों को आदान-प्रदान करने का माध्यम है। कई बार विचारों अथवा भावों को संकेतों अथवा इशारों के द्वारा भी व्यक्त करते हैं। उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति गूंगा है, तो भूख लगने पर वह भोजन मांगने के लिए, जुबान का प्रयोग करने के स्थान पर वह अपनी ऊँगलियों को मुँह की ओर ले जाकर अथवा पेट पर हाथ फिराकर संकेत देगा। ये संकेत उसकी भाषा होगी। कई बार बच्चों को आँखें दिखाकर शान्त करा दिया जाता है। ये संकेत भी एक प्रकार की भाषा हैं। पशु-पक्षी भी मनुष्यों के संकेतों, हाव-भाव, व्यवहार आदि से बहुत कुछ समझ जाते हैं। ठीक इसी प्रकार मनुष्य भी पशु-पक्षियों की बोली को समझ जाते हैं। अतः स्पष्ट है कि मौन संकेतों की भी एक भाषा होती है।
"हमारे विचारों के आदान-प्रदान अथवा विचार विनिमय करने के साधन को भाषा कहा जाता है।" भाषा संकेतों के रूप में भी हो सकती है। उदाहरण के लिए लाल-बत्ती, लाल कपड़ा, हरी झण्डी आदि रेल ड्राइवरों को दिये जाने वाले भाषायी संकेत हैं। भाषा एक विज्ञान है। यह एक सामाजिक क्रिया है। वक्ता व श्रोता के मध्य विचार-विनिमय करने का साधन है। इस प्रकार भाषा मानव मुख से निकली हुई सार्थक ध्वनियों का समूह है। केवल भावों अथवा संकेतों को भाषा कहना उचित नहीं होगा।
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विद्वानों द्वारा दी गई भाषा की परिभाषाएँ
विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गई भाषा की परिभाषाएँ इस प्रकार हैं–
1. विद्वान मंगल देव शास्त्री के अनुसार, "भाषा मनुष्यों की उस चेष्टा अथवा व्यापार को कहा जाता है, जिससे मनुष्य अपने उच्चारणपयोगी शरीर के अवयवों से वर्णात्मक अथवा व्यक्त शब्दों द्वारा अपने विचारों को व्यक्त करता है।"
2. विद्वान डॉ. बाबूराम सक्सेना के अनुसार, "भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम है और एक ऐसी शक्ति है, जो मनुष्य के विचारों, अनुभवों और संदर्भों को व्यक्त करती है। इसके साथ उन्होंने यह भी कहा है कि जिन ध्वनि चिह्नों द्वारा मनुष्य परस्पर विचार-विनिमय करता है, उनकी समष्टि को ही भाषा कहा जाता है।"
3. विद्वान डॉ. श्याम सुन्दर दास के अनुसार, "मनुष्य और मनुष्य के मध्य वस्तुओं के विषय में अपनी इच्छा और मति का आदान-प्रदान करने के लिए ध्वनि संकेतों का जो व्यवहार होता है, उसे भाषा कहा जाता है।"
4. विद्वान डॉ. भोलानाथ तिवारी के अनुसार, "भाषा उच्चारण अवयवों से उच्चरित मूलतः यादृच्छिक ध्वनि प्रतीकों की वह व्यवस्था है, जिसके द्वारा समाज के लोग आपस में विचारों का आदान-प्रदान भी करते हैं।"
विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गई इन परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि भाषा का प्रमुख कार्य है, मानवीय कार्यों को समझने में सहायता प्रदान करना। मानव-मुख से निकले हुए सार्थक ध्वनि संकेतों के समष्टिगत रुप को भाषा कहा जाता है। इसमें उच्चारण अवयवों का विशेष महत्व होता है। विविध संकेतों अथवा मानवीय भावों को भाषा का पूर्ण रूप नहीं कहा जा सकता।
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भाषा की प्रकृति
भाषा के गुणधर्म अथवा स्वभाव को उसकी प्रकृति कहते हैं। प्रत्येक भाषा की अपनी प्रकृति होती है। उसके आन्तरिक गुण व दोष होते हैं। भाषा पूर्वजों की सम्पत्ति होती है। यह सामाजिक गुण है। देश काल और समय के अनुसार भाषा अनेक रूपों में संसार के विभिन्न भागों में प्रचलित है।
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भाषा की विशेषताएँ
भाषा की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं–
1. भाषा अर्जित सम्पत्ति है।
2. यह विचार सम्प्रेषण और भाव सम्प्रेषण का माध्यम है।
3. भाषा परिवर्तनशील हो सकती है।
4. भाषा विस्तृत क्षेत्र के अंतर्गत अर्थात् सर्वव्यापक होती है।
5. भाषा परम्परागत होती है।
6. इसका प्रवाह नैसर्गिक होता है।
7. यह भौगोलिक रुप से स्थानीकृत होती है।
8. भाषा सार्थक ध्वनि संकेतों का समष्टिगत रुप है।
9. यह किसी भी देश के जन-जीवन और उसकी संस्कृति की प्रमुख पहचान होती है।
10. भाषा जटिलता से स्थूलता की ओर और स्थूलता से सूक्ष्मता की ओर जाती है।
11. इसका अपना संरचनात्मक ढाँचा होता है।
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4. देखो मालिन, मुझे न तोड़ो– शिवमंगल सिंह 'सुमन'
5. शब्द सम्हारे बोलिये– कबीरदास
I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
pragyaab.com
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