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सिंधु घाटी सभ्यता– परिचय, खोज, नामकरण, काल निर्धारण एवं भौगोलिक विस्तार

  • BY:
     RF competition
  • Posted on:
    July 31, 2022

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सिंधु सभ्यता का परिचय

सिंधु सभ्यता वर्षों पुरानी सभ्यता है। बीसवीं सदी के द्वितीय दशक तक इस सभ्यता के विषय में कोई जानकारी नहीं थी। लोग इस सभ्यता से अपरिचित थे। इतिहासकारों की धारणा थी कि सिकन्दर के आक्रमण से पहले भारत में कोई सभ्यता नहीं थी। बीसवीं सदी के तृतीय दशक में दो पुरातत्वशास्त्रियों– दयाराम साहनी और राखलदास बनर्जी ने सिंधु सभ्यता का पता लगाया। उन्होंने हड़प्पा और मोहनजोदड़ो का पता लगाया। ये दोनों सिंधु घाटी सभ्यता के प्राचीन स्थल हैं। इनसे अनेक पुरावस्तुएँ प्राप्त हुई हैं। इससे सिद्ध हो गया कि सिकंदर के आक्रमण से पूर्व भी भारत में सभ्यता थी। यह सभ्यता अपनी समकालीन सभ्यताओं में सबसे विकसित थी। इस सभ्यता से प्राप्त अवशेषों के आधार पर इस पूरी सभ्यता को 'सिंधु घाटी सभ्यता' कहा गया। इसके अतिरिक्त इसे 'हड़प्पा सभ्यता' भी कहा जाता है, क्योंकि इसका मुख्य स्थल हड़प्पा है।

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सिंधु सभ्यता की खोज

सबसे पहले सन् 1826 ईस्वी में चार्ल्स मैसन ने सिंधु सभ्यता का पता लगाया। इसका वर्णन उनके द्वारा 1842 ई. में प्रकाशित पुस्तक में मिलता है। आगे चलकर सन् 1921 ईस्वी में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के तत्कालीन अध्यक्ष सर जॉन मार्शल के नेतृत्व में पुरातत्वविद् दयाराम साहनी ने उत्खनन के द्वारा सिंधु सभ्यता के प्रमुख स्थल 'हड़प्पा' का पता लगाया। चूँकि सबसे पहले इस स्थल की खोज की गई। अतः इस स्थल से सम्बन्धित सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता कहा गया। एक वर्ष बाद सन् 1922 ई. में राखल दास बनर्जी ने मोहनजोदड़ो का पता लगाया। यह सिंधु सभ्यता का महत्वपूर्ण स्थल है।

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सिंधु सभ्यता का नामकरण

सिंधु सभ्यता का भौगोलिक क्षेत्र विस्तृत था। प्रारम्भ में हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाई से इस सभ्यता के प्रमाण प्राप्त हुए। इस सभ्यता के कुछ स्थल सिंधु और उसकी सहायक नदियों के क्षेत्र में आते हैं। अतः इस सभ्यता को 'सिंधु घाटी सभ्यता' नाम दिया गया। आगे चलकर रोपड़, लोथल, कालीबंगा, बनावली, रंगपुर आदि क्षेत्रों से भी इस सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए। ये क्षेत्र सिंधु और उसकी सहायक नदियों के क्षेत्र से बाहर थे। अतः इस सभ्यता के केंद्रीय स्थल हड़प्पा के नाम पर इस सभ्यता को 'हड़प्पा सभ्यता' भी कहा गया।

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सिंधु सभ्यता का काल निर्धारण

नवीन विश्लेषण पद्धति (रेडियो कार्बन- 14) के द्वारा सिंधु सभ्यता का काल निर्धारण 2500 ईसा पूर्व से 1750 ईसा पूर्व माना गया है। यह सभ्यता लगभग 400 से 500 वर्षों तक विद्यमान रही। 2200 ईसा पूर्व से 2000 ईसा पूर्व के बीच तक सिंधु सभ्यता अपनी परिपक्व अवस्था में थी। नवीन शोधों के अनुसार यह सभ्यता लगभग 8000 वर्ष प्राचीन है। इस सभ्यता के काल निर्धारण के महत्वपूर्ण स्रोत मानव कंकाल हैं। सर्वाधिक मानव कंकाल मोहनजोदड़ो से मिले हैं। इन कंकालों के परीक्षण से निर्धारित हुआ है कि सिंधु सभ्यता में चार प्रजातियों के लोग निवास करते थे। ये प्रजातियाँ भूमध्यसागरीय, प्रोटो-ऑस्ट्रेलॉयड, अल्पाइन और मंगोलॉयड हैं। सबसे अधिक भूमध्यसागरीय प्रजाति के लोग सिंधु सभ्यता में निवास करते थे।

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सिंधु सभ्यता का भौगोलिक विस्तार

सिंधु सभ्यता कांस्ययुगीन सभ्यता थी। इसकी उत्पत्ति ताम्रपाषाण काल में भारत के पश्चिमी क्षेत्र में हुई थी। इस सभ्यता का विस्तार भारत के अलावा पाकिस्तान और अफगानिस्तान के कुछ क्षेत्रों में भी था। इस सभ्यता का भौगोलिक विस्तार उत्तर में मांडा (जम्मू-कश्मीर) से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी के मुहाने तथा दैमाबाद (महाराष्ट्र) तक था। साथ ही इस सभ्यता का विस्तार पूर्व में आलमगीरपुर (मेरठ, उत्तर प्रदेश) से लेकर पश्चिम में सुत्कागेंडोर (बलूचिस्तान) तक था। सिंधु सभ्यता उत्तर से दक्षिण तक लगभग 1100 किलोमीटर के क्षेत्र में और पूर्व से पश्चिम तक लगभग 1600 किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुई थी। उत्खनन के द्वारा अभी तक इस सभ्यता के लगभग 2800 स्थल ज्ञात किए गए हैं। इस सभ्यता का आकार त्रिभुजाकार था। इसका क्षेत्रफल लगभग 13 लाख वर्ग किलोमीटर था।

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आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।
(I hope the above information will be useful and important. )
Thank you.

R. F. Tembhre
(Teacher)
pragyaab.com

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