वैदिक सभ्यता (आर्य सभ्यता) क्या थी? | ऋग्वैदिक काल और उत्तर वैदिक काल
वैदिक सभ्यता
भारतवर्ष में सिन्धु सभ्यता का पतन होने के पश्चात् एक नवीन सभ्यता का प्रादुर्भाव हुआ। इस सभ्यता को वैदिक सभ्यता कहा गया। इस सभ्यता को आर्य सभ्यता भी कहा जाता है। यह सभ्यता भारत की प्राचीन सभ्यता है। सामान्यतः यह धारणा है कि आर्यों ने सिन्धु सभ्यता के नगरों को ध्वस्त कर दिया और एक नवीन संस्कृति की नींव रखी। अभी तक इसके विषय में कोई ठोस प्रमाण प्राप्त नहीं हुए हैं। अतः इसे केवल कल्पना ही माना जाता है।
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वेद और वैदिक संस्कृति
वेदों से हमें वैदिक सभ्यता के विषय में जानकारी प्राप्त होती है। 'वेद' का शाब्दिक अर्थ 'ज्ञान' होता है। वेदों की रचना वैदिक काल में हुई थी। सबसे प्राचीन वेद ऋग्वेद है। अतः यह सबसे महत्वपूर्ण है। वैदिक संस्कृति के निर्माता आर्य थे। सर्वप्रथम सन् 1853 ईस्वी में प्रोफ़ेसर मैक्समूलर ने 'आर्य' शब्द का प्रयोग एक श्रेष्ठ जाति के लिए किया था। आर्यों की भाषा संस्कृत थी। 'आर्य' शब्द के निम्नलिखित अर्थ होते हैं–
1. श्रेष्ठ
2. उत्तम
3. अभिजात
4. कुलीन
5. उत्कृष्ट।
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वैदिक संस्कृति का वर्गीकरण
वैदिक संस्कृति को दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है–
1. ऋग्वैदिक काल– इस काल की अवधि 1500 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व के मध्य है।
2. उत्तर वैदिक काल– इस काल की अवधि 1000 ईसा पूर्व से 600 ईसा पूर्व के मध्य है।
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ऋग्वैदिक काल
'ऋग्वैदिक संहिता' से ऋग्वैदिक काल के विषय में जानकारी प्राप्त होती है। यह इस काल के विषय में जानकारी प्राप्त करने का एकमात्र साहित्यिक स्रोत है। ऋग्वैदिक काल की सभ्यता मूल रूप से ग्रामीण थी। इस सभ्यता के निवासी आर्य थे। अपने प्रारम्भिक जीवन में ये लोग पशुपालन करते थे। यही इनका मुख्य कार्य था। ये लोग कृषि को उतना अधिक महत्व नहीं देते थे। कृषि इनके लिए गौण कार्य था। 1400 ईसा पूर्व के बोगज़कोई (एशिया माइनर) के अभिलेख में ऋग्वैदिक काल के देवताओं का उल्लेख मिलता है। ऋग्वैदिक काल के प्रमुख देवता इन्द्र, वरुण, मित्र और नासत्य थे। बोगज़कोई के अभिलेख में ऋग्वैदिक देवताओं का उल्लेख होने से यह अनुमान लगाया गया है कि वैदिक आर्य ईरान से होकर भारत आए थे। इस तथ्य के अन्य साक्ष्य भी प्राप्त हुए हैं। जैसे ऋग्वेद की अनेक महत्वपूर्ण बातें ईरानी भाषा के प्राचीनतम ग्रन्थ अवेस्ता से मिलती-जुलती हैं।
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आर्यों के मूल निवास के सन्दर्भ में विद्वानों के मत
प्रमुख विद्वान एवं आर्यों के मूल निवास के सन्दर्भ में उनके द्वारा दिए गये मत निम्नलिखित हैं–
1. प्रोफ़ेसर मैक्समूलर– मध्य एशिया (बैक्ट्रिया)
2. डॉ. अविनाश चन्द्र दास– सप्त सैंधव प्रदेश
3. बाल गंगाधर तिलक– उत्तरी ध्रुव
4. नेहरिंग एवं प्रोफ़ेसर गार्डन चाइल्ड– दक्षिणी रूस
5. दयानन्द सरस्वती– तिब्बत
6. गाइल्स महोदय– हंगरी अथवा डेन्यूब नदी घाटी
7. गंगानाथ झा– ब्रह्मर्षि देश
8. प्रोफ़ेसर पेंका– जर्मनी के मैदानी भाग
अधिकांश इतिहासकार एवं विद्वान प्रोफ़ेसर मैक्समूलर के विचारों से सहमत हैं। अतः आर्य मूल रूप से मध्य एशिया के निवासी थे।
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उत्तर वैदिक काल
वैदिक संस्कृति में ऋग्वैदिक काल के पश्चात् उत्तर वैदिक काल का प्रादुर्भाव हुआ। इस काल में आर्य संस्कृति का प्रसार एवं उत्कर्ष हुआ। इस काल में धर्म, दर्शन, नीति, आचार-विचार, मत-विश्वास आदि की रूपरेखाएँ स्पष्ट हो गईं। इस काल के विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिए अनेक साहित्यिक स्रोत उपलब्ध हैं। जैसे– यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, ब्राह्मण ग्रन्थ, उपनिषद, आरण्यक आदि। उत्तर वैदिक काल को लौह प्रौद्योगिकी युग की शुरुआत से जोड़ा जाता है। इसके सन्दर्भ में अनेक साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। उत्तर वैदिक काल के अध्ययन के लिए 'चित्रित धूसर मृदभाण्ड' महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्रोत है। इस सभ्यता के लोगों का प्रमुख केन्द्र मध्य देश था। इस संस्कृति का प्रसार सरस्वती नदी से लेकर गंगा नदी के दोआब तक था।
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I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
pragyaab.com
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