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वैदिक काल के देवी एवं देवता– इन्द्र, अग्नि, वरूण, सवितृ, सोम, धौस, सरस्वती, पूषन, रूद्र, अरण्यानी

वैदिक काल में धर्म

ऋग्वैदिक काल के आर्य लोग धार्मिक प्रवृत्ति के थे। ये लोग बहुत से देवताओं की उपासना करते थे, अर्थात् ये लोग बहुदेववाद में विश्वास रखते थे। साथ ही ये लोग एकेश्वरवाद में भी विश्वास रखते थे। ऋग्वैदिक काल में धार्मिक कर्मकाण्डों का मूल उद्देश्य भौतिक सुखों (पुत्र एवं पशु) प्राप्त करना होता था। इस काल के महत्वपूर्ण ग्रन्थ 'ऋग्वेद' में अनेक देवताओं का उल्लेख मिलता है, किन्तु इसमें देवियों के अस्तित्व का अभाव मिलता है।

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देवी एवं देवताओं की श्रेणियाँ

प्रकृति के प्रतिनिधि के रूप में आर्यों के देवी एवं देवताओं की तीन श्रेणियाँ थीं–
1. आकाश के देवता– सूर्य, वरुण, धौस, मित्र, विष्णु, पूषन, आदित्य, सविता, अश्विन, उषा आदि।
2. अन्तरिक्ष के देवता– रूद्र, इन्द्र, वायु, मरुत, यम, पर्जन्य, प्रजापति आदि।
3. पृथ्वी के देवता– अग्नि, पृथ्वी, सोम, सरस्वती, बृहस्पति आदि।

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प्रमुख देवी एवं देवता

ऋग्वेद में कुछ देवताओं को सूक्त समर्पित किए गए हैं और उनकी स्तुति की गई है। ऋग्वैदिक काल में आर्य लोग मूर्ति पूजा नहीं करते थे। इस काल में आर्यों द्वारा की जाने वाली उपासना की विधि प्रार्थना और यज्ञ थी। इस काल के प्रायः सभी देवी एवं देवता प्राकृतिक शक्तियों के प्रतीक थे। इनमें से कुछ प्रमुख देवी एवं देवता निम्नलिखित हैं–

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भगवान इन्द्र

ये आर्यों के सबसे महत्वपूर्ण देवता थे। ऋग्वेद में भगवान इन्द्र को 'पुरन्दर' भी कहा गया है। ऋग्वेद के 250 सूक्त इन्हें समर्पित हैं। इन्द्र को आर्यों का युद्ध नेता तथा वर्षा, आंधी और तूफान का देवता कहा गया है।

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भगवान अग्नि

ये आर्यों के दूसरे सबसे महत्वपूर्ण देवता थे। इनका कार्य मनुष्य और देवताओं के मध्य मध्यस्थता स्थापित करना था। ऋग्वेद के 200 सूत्र भगवान अग्नि को समर्पित हैं।

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भगवान वरूण

ये आर्यों के तीसरे महत्वपूर्ण देवता थे। इन्हें 'ऋतस्यगोपा' भी कहा जाता है। ये जलनिधि का प्रतिनिधित्व करते हैं। ऋग्वेद के 30 सूक्त भगवान वरूण को समर्पित हैं।

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भगवान सवितृ

ये आकाश के देवताओं में से एक हैं। वैदिक आर्यों द्वारा इनकी उपासना की जाती थी। इन्हें 'सविता' भी कहा जाता है। 'गायत्री मन्त्र' भगवान सवितृ को समर्पित है। इस मन्त्र की रचना महर्षि विश्वामित्र ने की थी। इस मन्त्र का उल्लेख ऋग्वेद के तीसरे मण्डल में मिलता है।

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भगवान सोम

सोम पृथ्वी के देवताओं में से एक हैं। वैदिक आर्य पेय पदार्थ के देवता के रूप में इनकी पूजा करते थे। इनका उल्लेख ऋग्वेद के नौवें मण्डल में मिलता है।

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भगवान धौस

ये ऋग्वैदिक काल के सबसे प्राचीन देवता हैं। ये आकाश के देवताओं में से एक हैं।

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देवी सरस्वती

देवी सरस्वती पृथ्वी के देवी और देवताओं में से एक हैं। ऋग्वैदिक काल के आरम्भिक समय में आर्य लोग इनकी पूजा 'नदी की देवी' के रूप में करते थे। आगे चलकर देवी सरस्वती की पूजा 'विद्या की देवी' के रूप में की जाने लगी। यही परम्परा वर्तमान में भी जारी है।

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भगवान पूषन

ये आकाश के देवताओं में से एक हैं। ऋग्वैदिक काल में भगवान पूषन पशुओं के देवता थे। उत्तर वैदिक काल में वे शूद्रों के देवता हो गए।

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भगवान रूद्र

ये अन्तरिक्ष के देवताओं में से एक हैं। इन्हें अनैतिक आचरण से सम्बद्ध माना जाता है। ऋग्वैदिक काल में चिकित्सा के संरक्षक के रूप में इनकी उपासना की जाती थी। इतिहासकार हॉलर ने इनकी तुलना यूनानी देवता 'अपोलो' से की है। भगवान रूद्र को कभी-कभी 'शिव' तथा 'कल्याणकार' भी कहा जाता था।

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देवी अरण्यानी

ऋग्वैदिक काल में आर्यों के द्वारा देवी अरण्यानी की उपासना की जाती थी। इस काल में उन्हें 'जंगल की देवी' माना जाता था।

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I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
pragyaab.com

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