आगम ग्रन्थ क्या होते हैं? | जैन धर्म के प्रमुख ग्रन्थ
जैन ग्रन्थों की भाषा
जैन धर्म की शुरूआत छठी शताब्दी ईसा पूर्व के लगभग हुई थी। इसी दौरान जैन धर्म से सम्बन्धित ग्रन्थों की रचनाएँ की गईं। प्रारम्भ में जैन धर्म के ग्रन्थ अर्द्ध-मागधी भाषा में लिखे जाते थे। आगे चलकर इन ग्रन्थों की रचना के लिए प्राकृत भाषा को अपनाया गया। जैन धर्म के इतिहास में शौरसेनी, संस्कृत, कन्नड़ आदि भाषाओं में भी साहित्य लिखे गए। वर्तमान में उपलब्ध जैन साहित्यों की भाषा प्राकृत और संस्कृत है।
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आगम ग्रन्थ
जैन साहित्य को 'आगम' कहते हैं। इनमें 12 अंग, 12 उपांग, 10 प्रकीर्ण, 6 छेदसूत्र, 4 मूलसूत्र, 1 नन्दी सूत्र और 1 अनुयोगद्वार होते हैं। इन आगम ग्रन्थों की रचना श्वेताम्बर सम्प्रदाय के आचार्यों द्वारा की गई थी। इन ग्रन्थों की रचना महावीर स्वामी की मृत्यु के बाद की गई थी।
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जैन धर्म के प्रमुख ग्रन्थ
जैन धर्म से सम्बन्धित प्रमुख ग्रन्थ निम्नलिखित हैं–
1. आचारांगसूत्र– इस ग्रन्थ में जैन भिक्षुओं के आचार-नियम और विधि-निषेधों का उल्लेख है।
2. भगवती सूत्र– इस जैन ग्रन्थ में महावीर के जीवन परिचय का विवरण है।
3. न्यायधम्मकहासुत्त– इस जैन ग्रन्थ में महावीर की शिक्षाओं का उल्लेख है।
4. उवासगदसाओं– इस ग्रन्थ में हूण शासक तोरमाण के विषय में जानकारी दी गई है।
5. भद्रबाहुचरित– इस जैन ग्रन्थ में चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्यकाल की प्रमुख घटनाओं का विवरण है।
6. कल्पसूत्र– इस जैन ग्रन्थ की रचना भद्रबाहु ने की थी। यह ग्रन्थ संस्कृत भाषा में लिखा गया था। इसमें तीर्थंकरों के जीवन चरित्र का विवरण है।
7. भगवती सूत्र– इस ग्रन्थ में महावीर के जीवन की प्रमुख घटनाओं का विवरण है। इस ग्रन्थ में 16 महाजनपदों का विवरण भी मिलता है।
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(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
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R F Temre
pragyaab.com
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