जैन धर्म के 24 तीर्थंकर कौन-कौन से थे?
जैन धर्म के 24 तीर्थंकर
जैन अनुश्रुतियों और परम्पराओं के अनुसार जैन धर्म में 24 तीर्थंकर हुए। इन तीर्थंकरों के नाम एवं इनसे सम्बन्धित जानकारी इस प्रकार है–
ऋषभदेव
ये जैन धर्म के प्रथम (पहले) तीर्थंकर थे। इन्हें 'आदिनाथ' के नाम से भी जाना जाता है। जैन तीर्थंकर ऋषभदेव का प्रतीक 'वृषभ (बैल)' है। इन्होंने जैन धर्म की स्थापना की थी। इन्होंने छठी शताब्दी ईसा पूर्व के दौरान जैन आन्दोलन का प्रवर्तन किया था। इनका उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है।
अजितनाथ
ये जैन धर्म के द्वितीय (दूसरे) तीर्थंकर थे। इनका प्रतीक 'गज (हाथी)' है।
सम्भवनाथ
ये जैन धर्म के तृतीय (तीसरे) तीर्थंकर थे। इनका प्रतीक 'अश्व (घोड़ा)' है।
अभिनन्दन नाथ
ये जैन धर्म के चतुर्थ (चौथे) तीर्थंकर थे। इनका प्रतीक 'कपि (बन्दर)' है।
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सुमतिनाथ
ये जैन धर्म के पञ्चम (पाँचवें) तीर्थंकर थे। इनका प्रतीक 'क्रौंच (कौआ)' है।
पद्मप्रभु
ये जैन धर्म के षष्ठम (छटवें) तीर्थंकर थे। इनका प्रतीक 'पद्म (कमल का पौधा और फूल)' है।
सुपार्श्वनाथ
ये जैन धर्म के सप्तम (सातवें) तीर्थंकर थे। इनका प्रतीक 'स्वास्तिक' है।
चन्द्रप्रभु
ये जैन धर्म के अष्टम (आठवें) तीर्थंकर थे। इनका प्रतीक 'चन्द्र (चाँद)' है।
सुविधिनाथ
ये जैन धर्म के नवम (नौंवे) तीर्थंकर थे। इनका प्रतीक 'मकर (घड़ियाल)' है।
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शीतलनाथ
ये जैन धर्म के दशम (दशवें) तीर्थंकर थे। इनका प्रतीक 'श्रीवत्स (मंगलकारी चिह्न)' है।
श्रेयांसनाथ
ये जैन धर्म के ग्यारहवें तीर्थंकर थे। इनका प्रतीक 'गैंडा' है।
वसुपूज्य
ये जैन धर्म के बारहवें तीर्थंकर थे। इनका प्रतीक 'महिष (भैंसा)' है।
विमलनाथ
ये जैन धर्म के तेरहवें तीर्थंकर थे। इनका प्रतीक 'वराह (सूँअर)' है।
अनन्तनाथ
ये जैन धर्म के चौदहवें तीर्थंकर थे। इनका प्रतीक 'श्येन (बाज)' है।
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धर्मनाथ
ये जैन धर्म के पन्द्रहवें तीर्थंकर थे। इनका प्रतीक 'वज्र (युद्ध में जीता गया शस्त्र)' है।
शान्तिनाथ
ये जैन धर्म के सोलहवें तीर्थंकर थे। इनका प्रतीक 'मृग (हिरण)' है।
कुन्थुनाथ
ये जैन धर्म के सत्रहवें तीर्थंकर थे। इनका प्रतीक 'अज (बकरी)' है।
अरनाथ
ये जैन धर्म के अठारहवें तीर्थंकर थे। इनका प्रतीक 'मीन (मछली)' है।
मल्लिनाथ
ये जैन धर्म के उन्नीसवें तीर्थंकर थे। इनका प्रतीक 'कलश (घड़ा)' है।
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मुनिसुव्रत
ये जैन धर्म के बीसवें तीर्थंकर थे। इनका प्रतीक 'कूर्म (कछुआ)' है।
नेमिनाथ
ये जैन धर्म के इक्कीसवें तीर्थंकर थे। इनका प्रतीक 'नीलोत्पल (कमल)' है।
अरिष्टिनेमि
ये जैन धर्म के बाइसवें तीर्थंकर थे। इनका प्रतीक 'शंख' है। इनका उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है।
पार्श्वनाथ
ये जैन धर्म के तेइसवें तीर्थंकर थे। इनका प्रतीक 'सर्पफण (साँप का फन)' है। पार्श्वनाथ इक्ष्वाकु वंश के राजा अश्वसेन के पुत्र थे। इनके अनुयायियों को 'निर्ग्रंथ' कहा जाता है। इन्होंने जैन धर्म के चार महाव्रत प्रतिपादित किए थे, जो इस प्रकार हैं– सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह (धन संचय का त्याग) और अस्तेय (चोरी न करना)। पार्श्वनाथ ने स्त्रियों को भी धर्म में प्रवेश करने की अनुमति प्रदान की थी। जैन ग्रन्थों में स्त्री संघ की अध्यक्षा 'पुष्पचूला' का उल्लेख मिलता है। पार्श्वनाथ को झारखण्ड के गिरिडीह जिले में 'सम्मेद पर्वत' पर निर्वाण प्राप्त हुआ था।
वर्धमान महावीर
ये जैन धर्म के चौबीसवें और सबसे महत्वपूर्ण तीर्थंकर थे। इनका प्रतीक 'सिंह (शेर)' है। इन्हें महावीर स्वामी भी कहा जाता है। इन्हें जिन (विजेता), केवलिन, अर्ह (योग्य), निर्ग्रंथ (बन्धन रहित) आदि उपाधियाँ प्रदान की गई थी। इन्होंने पार्श्वनाथ द्वारा दिये गए चार महाव्रतों में पाँचवाँ महाव्रत ब्रह्मचर्य (इन्द्रियों को वश में करना) जोड़ा था।
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I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
pragyaab.com
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