
प्राकृत संख्याओं (Natural Numbers) 1, 2, 3, 4, 5, ...को "प्राकृतिक" (Prakrit) या प्राकृत नाम क्यों दिया गया है?
1, 2, 3, 4, 5, 6, .......... प्राकृत संख्याओं को प्राकृतिक संख्याएँ क्यों कहते हैं? इन संख्याओं को प्राकृत संख्या खाने का मुख्य आधार क्या-क्या है? यदि हम मंथन करें तो देखते हैं, ऐसी संख्याओं को प्राकृत संख्या कहने के पाँच पहलू नजर आते हैं―
1. स्वाभाविक गणना का आधार गणना हेतु पहली पसंद― कोई भी व्यक्ति वस्तुओं (चीज़ों) को गिनना चाहता है, तो वह व्यक्ति 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, .... से शुरू करता है। अतः ये संख्याएँ प्राकृतिक रूप से गणना के लिए पहली पसंद होती हैं इसलिए इन्हें प्राकृत या प्राकृतिक संख्या कहते हैं।
2. मानव विकास क्रम की पहली संख्याएँ― इतिहास को उठाकर देखा जाये तो हम पाते हैं ये संख्याएँ सबसे पहले उपयोग की जाने वाली संख्याएँ थीं। इनका उपयोग व्यापार, गणना और संसाधनों की गिनती में किया जाता था। इसलिए ये प्राकृत या प्राकृतिक संख्या की श्रेणी में आती हैं।
3. शून्य का आविष्कार बाद में होना― प्रारंभिक गणित में अंक शून्य (0) का आविष्कार नहीं हुआ था। गणना में केवल 1 से शुरू होने वाली संख्याओं का उपयोग होता था, इसलिए इन्हें प्राकृतिक अर्थात प्राकृत संख्या कहा गया।
4. ऋणात्मक एवं अन्य संख्याओं का प्रचलन बाद में होना― जिस तरह शून्य का आविष्कार बाद में हुआ इसी तरह ऋणात्मक संख्याएँ, परिमेय संख्याएँ आदि का प्रयोग एवं प्रचलन बाद में प्रारंभ हुआ। शुरूआती दौर में गणना करने हेतु केवल 1 से शुरू होने वाली संख्याओं का उपयोग किया गया, इसलिए इन्हें प्राकृतिक अर्थात प्राकृत संख्या कहा गया।
5. गणित की बुनियाद / संख्याओं की सबसे सरल एवं प्रारंभिक श्रेणी― गणित की बुनियाद कहा जाये तो मानव सभ्यता के विकास क्रम के प्रारंभिक दौर की संख्याएँ 1, 2, 3,..... थीं, जो सबसे सरल एवं प्राथमिक श्रेणी की हैं। गणित की शुरुआत इन्हीं संख्याओं से हुई अर्थात जब मनुष्य का जीवन प्रकृति पर ही निर्भर था ऐसी स्थिति में गणना के लिए प्रयोग की जाने वाली इन संख्याओं को प्राकृतिक या प्राकृत संख्याएं कहा गया।
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R. F. Tembhre
(Teacher)
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