कक्षा 8 विषय हिंदी पाठ 4 (अपराजिता) परीक्षापयोगी प्रश्न सटीक (उत्तर सहित)
परीक्षा उपयोगी महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर—
प्रश्न (1) संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए।
(क) मैडम, मैं चाहती हूँ कि कोई मुझे सामान्य-सा सहारा भी न दे। आप तो देखती हैं, मेरी माँ को मेरी कार चलानी पड़ती है। मैंने इसीलिए एक ऐसी कार का नक्शा बनाकर दिया है, जिससे मैं अपने पैरों के निर्जीव अस्तित्व को भी सजीव बना दूँगी।
सन्दर्भ — प्रस्तुत पद्यांश हमारी भाषा—भारती के पाठ्य—पुस्तक' ' के पाठ 'अपराजिता' से लिया गया है। इस पाठ की लेखिका 'शिवानी' जी है।
प्रसंग — लेखिका द्वारा छोटी—सी अपंग लड़की के साहस का वर्णन किया गया है।
व्याख्या — वह छोटी—सी लड़की लेखिका से कहने लगी है कि मैडम (श्रीमती जी) मेरी इच्छा है कि कोई भी व्यक्ति मेरी थोड़ी भी मदद करने के लिए तैयार न हो। मैं नहीं चाहती कि कोई भी आदमी रंचमात्र भी मुझे सहारा दे। वह बालिका स्पष्ट करती है कि उसकी माँ को उसके लिए कार चलानी पड़ती है। इस तरह किसी पर आश्रित रहने को दूर करने के लिए उस बालिका ने एक इस तरह की कार का नक्शा बनाया है, जिसे वह स्वयं चला सके और अपने निर्जीव पैरों को सजीव बना सके अर्थात् वह स्वयं उस कार को अपने उन पैरों से चला सकेगी, जो निश्चेष्ट हैं और उनमें किसी भी तरह की चेतना नहीं है। इसका नतीजा यह होगा कि उनमें फिर से सजीवता आ जायेगी।
प्रश्न (2) रिक्त स्थान भरिए।
(क) अपराजिता संस्मरण की लेखिका शिवानी है।
(ख) डॉ चंद्रा की माता जी का नाम श्रीमती टी. सुब्रह्मण्यम है।
(ग) डॉ चंद्रा ने एम.एस-सी. में प्रथम स्थान प्राप्त किया था।
(घ) अपराजिता का विलोम शब्द पराजिता है।
प्रश्न (3) डॉ. चन्द्रा को सामान्य ज्वर के बाद कौन-सी बीमारी हो गई थी?
उत्तर— डॉ. चन्द्रा को सामान्य ज्वर के बाद पक्षाघात की बीमारी हो गई जिससे गरदन के नीचे उनका सर्वांग अचल हो गया।
प्रश्न (4) 'वीर जननी' का पुरस्कार किसे मिला?
उत्तर— 'वीर जननी' का पुरस्कार अद्भुत साहसी जननी श्रीमती टी. सुब्रह्मण्यम को मिला। श्रीमती सुब्रह्मण्यम ने लगातार पच्चीस वर्ष तक सहिष्णुता के साथ अपनी पुत्री के साथ-साथ कठिन साधना की।
प्रश्न (5) लेखिका ने जब चन्द्रा को कार से उतरते देखा तो वे आश्चर्यचकित क्यों रह गईं?
उत्तर— लेखिका ने जब चन्द्रा को कार से उतरते देखा तो वे अचम्भित रह गईं। कार का द्वार खुला। एक प्रौढ़ा ने उतरकर पिछली सीट से ह्वील चेयर निकालकर सामने रख दी। कार में से एक युवती ने धीरे—धीरे अपने निर्जीव धड़ को बड़ी सावधानी से नीचे उतारा और बैसाखियों का सहारा लिया और ह्वीलचेयर तक पहुँची तथा उसमें बैठ गई। अपनी ह्वील चेयर को बड़ी तटस्थता से चलाती हुई कोठी के अन्दर चली गई। डॉ. चन्द्रा को नित्य नियत समय पर अपने कार्य करते देख चकित होती जब वह मशीन की तरह बटन खटखटाती अपना काम किये चली आती थी।
डॉ. चन्द्रा अपनी अपंगता से बिल्कुल भी बेचैन नहीं लगती थीं। उनकी आँखों में अदम्य उत्साह और उत्कट जिजीविषा थी। उनमें महत्त्वाकांक्षाएँ भरपूर थीं। अतः उन्हें देखकर लेखिका अचम्भित रह गई।
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(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
pragyaab.com
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