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नगरीय संस्थाएँ― नगर पंचायत, नगरपालिका व नगर निगम, इनके कार्य एवं आय के साधन || Urban institutions – Nagar Panchayat, Municipality and Municipal Corporation

नगरों व शहरों की स्थानीय स्वशासी संस्थाएँ जैसे नगर पंचायत, नगर पालिका व नगर निगम के नाम से जानी जाती हैं। इन्हें शहरी क्षेत्र की स्थानीय संस्थाएँ भी कहा जाता है।

नगर पंचायत (Nagar Panchayat)

नगर पंचायत क्षेत्र व जनसंख्या के आधार पर नगर गाँव से बड़ा परन्तु शहर से छोटा होता है। यह शहरी जनसंख्या की सबसे छोटी इकाई है। प्रत्येक नगर में एक नगर पंचायत होती है। यह एक निर्वाचित संस्था होती है।

नगर पंचायत का गठन (Constitution of Nagar Panchayat)

जिन नगरों की जनसंख्या पाँच हजार से बीस हजार तक होती है, वहाँ नगर पंचायतों का गठन किया जाता है। इन नगरों को छोटे-छोटे भागों में बाँटा जाता है। इन्हें वार्ड कहते हैं। प्रत्येक वार्ड से एक सदस्य उस वार्ड के मतदाताओं द्वारा निर्वाचित किया जाता है, इस चुने हुए सदस्य को पार्षद कहते हैं। प्रत्येक नगर पंचायत में एक अध्यक्ष तथा एक उपाध्यक्ष होता है। इनमें से अध्यक्ष का चुनाव जनता द्वारा सीधे तथा उपाध्यक्ष का चुनाव निर्वाचित पार्षदों द्वारा पार्षदों के बीच से ही किया जाता है। ये बैठकों की अध्यक्षता करते हैं। नगर पंचायत के निर्वाचित सदस्य कुछ विशिष्ट अनुभवी व्यक्तियों को चुनते है, जिन्हें एल्डरमैन कहते हैं। ये व्यक्ति नगर पंचायत को सलाह देने का कार्य करते हैं। किसी प्रस्ताव के पारित किये जाते समय एल्डरमेन मत नहीं दे सकते, केवल सुझाव दे सकते हैं। एक नगर पंचायत में वार्डों की संख्या 15 से 40 तक होती है। नगर पंचायत का मुख्य प्रशासनिक अधिकारी मुख्य नगर पालिका अधिकारी होता है। इसका कार्य नगर पंचायत के निर्णयों का पालन कराना होता है। नगर पंचायत में पार्षद बनने हेतु स्थानीय निवासी 21 वर्ष की आयु तथा मतदान का अधिकार होना आवश्यक है।

नगरपालिका (Municipality)

ऐसे शहर जो नगरों से बड़े होते हैं, वहाँ नगरपालिकाएँ गठित की जाती हैं। इनको नगर परिषद् या नगर बोर्ड भी कहते हैं।

नगरपालिका का गठन (Constitution of Municipality)

जिन नगरों की जनसंख्या बीस हजार से अधिक और एक लाख से कम होती है, वहाँ नगर पालिकाएँ गठित की जाती हैं। नगरों को विभिन्न वार्डों में बाँटा जाता है। एक नगर पालिका में वार्डों की संख्या 15 से 40 तक हो सकती है। प्रत्येक वार्ड से एक सदस्य का निर्वाचन किया जाता है। इसे पार्षद कहते है। नगर पालिका का एक अध्यक्ष व एक उपाध्यक्ष होता है। अध्यक्ष का चुनाव जनता द्वारा सीधे तथा उपाध्यक्ष का चुनाव निर्वाचित पार्षदों द्वारा किया जाता है। ये बैठकों की अध्यक्षता करते हैं। नगर पालिका की बैठकें नियमित होती है। राज्य शासन द्वारा नगरपालिकाओं में मुख्य कार्यपालन अधिकारी नियुक्त किया जाता है। इसका कार्य परिषद के निर्णयों को लागू करवाना होता है। प्रथम नगरपालिका मद्रास के पूर्व प्रेसिडेंसी नगर में 17 वीं शताब्दी में गठित की गई थी। स्वतंत्रता के समय भारत में मात्र तीन नगरपालिकाएँ थीं।
1. मद्रास
2. मुम्बई
3. कोलकाता।

नगर निगम (Municipal Corporation)

नगर निगम का गठन (Constitution of Municipal Corporation)― नगर निगम बड़े-बड़े शहरों में स्थापित किये जाते हैं, जिन नगरों की जनसंख्या एक लाख से अधिक होती है, वहाँ नगर निगम का गठन किया जाता है। नगर पंचायत तथा नगर पालिका की भाँति बड़े शहरों के क्षेत्र को छोटे-छोटे भागों में बाँट कर पार्षदों का चुनाव किया जाता है। नगर निगम में चुने हुए सदस्यों की संख्या 50 से 150 तक होती है। नगर निगम के सदस्य भी कुछ अनुभवी, विशिष्ट लोगों को एल्डरमैन के रूप में चुनते हैं। नगर निगम का सदस्य बनने के लिए कम से कम 21 वर्ष की आयु तथा उस क्षेत्र का मतदाता होना आवश्यक होता है। नगर निगम के अध्यक्ष को महापौर अथवा मेयर कहते हैं। एक उपमहापौर की भी व्यवस्था होती है। महापौर का चुनाव जनता द्वारा सीधे तथा उपमहापौर का चुनाव निर्वाचित पार्षदों द्वारा किया जाता है। प्रत्येक नगर निगम में एक प्रमुख प्रशासनिक अधिकारी होता है। इसे निगम आयुक्त कहते है। इस पद पर नियुक्त होने वाला अधिकारी भारतीय प्रशासनिक सेवा या राज्य प्रशासनिक सेवा का वरिष्ठ अधिकारी होता है। इसका कार्य निगम के निर्णयों को लागू कराना है। नगर पालिका एवं नगर निगम में डाक्टर, इंजीनियर तथा शिक्षा विशेषज्ञ भी होते हैं। इनमें नगरीय विकास के लिए कई समितियाँ होती हैं। इन समितियों के अपने अध्यक्ष होते हैं। नगरीय स्वशासी संस्थाओं का कार्यकाल 5 वर्ष होता है। इनमें महिलाओं, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग के लोगों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने हेतु आरक्षण की व्यवस्था भी है।

नगर पंचायत, नगरपालिका, व नगर निगमों के आय के साधन (Means of income of Nagar Panchayat, Municipality, and Municipal Corporations)

नगर पंचायत, नगरपालिका, व नगर निगमों के आय के साधन निम्नलिखित होते हैं।
1. राज्य सरकार से प्राप्त अनुदान व वित्तीय सहायता।
2. व्यापार, व्यवसाय तथा वाहनों पर कर लगाना।
3. मकान, जमीन पर कर लगाना जिसे सम्पत्ति कर कहते हैं।
4. विभिन्न प्रकार की अनियमतताओं पर लगाए गए जुर्माने से प्राप्त राशि।
5. पानी तथा रोशनी की सुविधा हेतु शुल्क लेकर।
6. इन संस्थाओं की स्वयं की सम्पत्ति जैसे दुकान, भवन आदि से प्राप्त किराया।

नगर पंचायत, नगर पालिका व नगर निगमों के कार्य (Works of Nagar Panchayat, Municipality and Municipal Corporations)

इन नगरीय संस्थाओं द्वारा किये जाने वाले कार्यों को दो भागों में बाँटा जा सकता है।
1. अनिवार्य कार्य
2. ऐच्छिक कार्य।

अनिवार्य कार्य (Mandatory Task)

1. भवन निर्माण व भूमि के उपयोग की स्वीकृति देना।
2. गंदे पानी की निकासी हेतु नालियों का निर्माण व सफाई करवाना।
3. बच्चों के खेलकूद व मनोरंजन हेतु स्थान का विकास करना।
4. कमजोर वर्ग, विकलांग, मानसिक रूप से कमजोर व्यक्तियों तथा समाज के अन्य वर्गों की सुरक्षा करना।
5. नगर के सुव्यस्थित विकास की योजना बनाना।
6. सड़कों तथा पुलों का रख-रखाव करना।
7. पर्यावरण की सुरक्षा व नगर की सुन्दरता के लिए पार्कों का निर्माण व वृक्षारोपण करवाना।
8. झोपड़ पट्टियों में जन सुविधाओं का विकास, गरीबी उन्मूलन के लिए कार्य, जन्म-मृत्यु का पंजीयन, श्मशान, कब्रिस्तान के लिए स्थान निर्धारित करना।
9. आवारा पशुओं की रोकथाम करना व अग्निशमन के उपाय करना नगरीय संस्थाओं के अनिवार्य कार्य है।
10. जनता के स्वास्थ्य व शिक्षा की व्यवस्था करना।
11. प्रकाश व पेयजल की व्यवस्था करना।
12. सामाजिक व आर्थिक विकास के लिए योजना बनाना।

ऐच्छिक कार्य (Electives)

1. नई सड़कों, भवनों का निर्माण।
2. शिशु कल्याण कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करना।
3. धर्मशाला, विश्रामगृह, वृद्धाश्रम आदि का निर्माण व प्रबंधन करना।
4. पुस्तकालय, वाचनालय, चिड़ियाघर की व्यवस्था करना।

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(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
pragyaab.com

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