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इतिहास जानने के स्रोत | sources of history
'संस्कृत' भाषा में इति +ह + आस से मिलकर इतिहास शब्द बना है। जिसका अर्थ होता है जो ऐसा (घटा) था। अर्थात् भूतकाल में घटित घटनाओं या उससे सम्बन्धित व्यक्तियों का विवरण इतिहास है। मानव अपने अतीत के सम्बन्ध में जिज्ञासु रहा है। अपने निवास स्थलों के समीप निर्मित भवनों दुर्गों, मंदिरों, तालाबों एवं बावड़ियों आदि पुरातात्विक सामग्री के अवशेषों से वह अपनी प्राचीनता का अनुमान लगाता है। इतिहास के अध्ययन से हमें मानव के क्रमिक विकास की जानकारी मिलती है।
इतिहासकार प्राचीन काल की जानकारी के लिए कुछ निश्चित साधनों की मदद लेते हैं। ये साधन उस काल के औजार, जीवाश्म, पात्र, भोजपत्र, आभूषण, इमारतें, सिक्के, अभिलेख, चित्र, यात्रियों द्वारा लिखे यात्रा विवरण तथा तत्कालीन साहित्य आदि हैं। इन साधनों को इतिहास जानने के स्रोत कहते हैं। जिन्हें मुख्य रूप से दो वर्गों में बांटा जाता है।
1. पुरातात्विक स्रोत,
2. साहित्यिक स्रोत।
शिलालेख - पत्थरों पर खोदकर लिखी गई बातों को शिलालेख कहते हैं।
भोजपत्र - एक विशेष प्रकार के वृक्ष की छाल, जिस पर प्राचीन ग्रंथ आदि लिखे जाते थे।
ताड़पत्र - ताड़वृक्ष के पत्तों पर रंग या स्याही से लिखी गई बातों वाले को ताड़पत्र कहते हैं।
ताम्रपत्र - तांबे के पत्तरों पर खोद कर लिखी गई बातों वाले तांबे के पत्तरों को ताम्रपत्र कहते हैं।
जीवाश्म - प्राचीन जीव, मनुष्य, जानवरों की हड्डियाँ जो पाषाण के रूप में परिवर्तित होना प्रारंभ हो जाती है।
अधिकांश शिलालेख संस्कृत, प्राकृत पाली एवं तमिल भाषा में है तथा ब्राह्मी लिपि में लिखे गये है। इसलिए इन्हें सभी लोगों के लिए पढ़ना कठिन होता है। लेकिन कुछ लिपिशास्त्री और पुरातत्ववेत्ता इन्हें पढ़ लेते हैं।
पुरातत्ववेत्ता: वे व्यक्ति जो पुरानी वस्तुओं, स्थलों की खोज करते हैं, और उनके बारे में सही तथ्यों का पता लगाते हैं।
मानव को जब लिपि का ज्ञान नहीं था तब उस समय वे चित्रों के माध्यम से अपनी बातें शिलाओं पर चित्रित करते थे। इन चित्रों को 'शैल चित्र' कहते हैं। मध्यप्रदेश में भोपाल के पास भीमबेटका के शैल चित्र इस बात के जीवंत प्रमाण है। शैलचित्र भारत के विभिन्न भागो में मिलते हैं। भीमबेटका विश्व का सबसे बड़ा शैल चित्र स्थल है। इसकी खोज पद्मश्री डॉ. वि.श्री. वाकणकर के द्वारा की गई थी। इस स्थल को विश्व धरोहर सूची में सम्मिलित किया गया है।
भारत के लगभग तीन-चौथाई शैलचित्र मध्यप्रदेश में विन्ध्याचल और सतपुड़ा की पहाड़ियों में पाये गये हैं।
भवन तथा अन्य स्रोत मानव के गणितीय ज्ञान व स्थापत्य कला के विकास की कहानी से परिचय कराते हैं। साहित्यिक स्रोत तत्कालीन समय की विभिन्न बातों पर प्रकाश डालते हैं। प्राचीन समय के ग्रंथ जैसे - वेद, पुराण, रामायण, महाभारत, संगम साहित्य और त्रिपिटिक आदि उस समय के समाज, नगरों, रीति रिवाजों, संस्कृति के बारे में प्रकाश डालते हैं। प्राचीनकाल के भवन, महल, मंदिर, मस्जिद, चर्च, किले, बावड़ी आदि हमें उस समय की कला संस्कृति, समृद्धि, धार्मिक, सामाजिक, राजनैतिक स्थिति की जानकारी देते हैं। यूनानी यात्री मेगस्थनीज, चीनी यात्री ह्वेनसांग, फाह्यान तथा इत्सिंग और अन्य देशों के यात्रियों ने हमारे देश की यात्रा की तथा उनके द्वारा लिखे गये यात्रा विवरण से हमें उस समय की सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक स्थिति के बारे में जानकारी मिलती है। समय के प्रवाह के साथ-साथ व्यापार वाणिज्य ने अपनी जगह बनाई। व्यापारी एक स्थान से दूसरे स्थान पर गये, आपसी मेल-मिलाप हुआ। लेन-देन बढ़ा। संस्कृति का परिवर्तन क्रम शुरू हुआ। भाषा एवं लिपि एक स्थान से दूसरे स्थान पर गई तथा विभिन्न भाषाओं के मिश्रण से नई भाषाओं ने जन्म लिया। जीवन के क्षेत्रों में परिवर्तन शुरू होकर जीवन मूल्यों में परिवर्तन का दौर शुरू हुआ। हमें अपने देश की प्राचीन धरोहरों की रक्षा करना चाहिये क्योंकि उन्हीं के आधार पर हमें अपने अतीत की जानकारी मिलती है। प्राचीन धरोहरे राष्ट्र की गौरवशाली संस्कृति की परिचायक होती है।
I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
pragyaab.com
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