पृथ्वी के परिमण्डल | Earth's circle
पृथ्वी, सौरमण्डल का प्रमुख यह है जिस पर जीवन है। इसीलिए इसे अनोखा मह कहते हैं। पर भूमि, जल और वायु पाये जाने से यहाँ जीवन का विकास संभव हुआ। पृथ्वी के भूमि वाले भाग का स्थल मण्डल, जल वाले भाग को जलमण्डल और वायु के आवरण को वायुमंडल कहते है। पृथ्वी का यह क्षेत्र जहां उपरोक्त तीनों परिमंडल एक-दूसरे से मिलते हैं जैवमंडल कहलाता है। पृथ्वी के 29 प्रतिशत भाग में भूमि (थल) है तथा 71 प्रतिशत भाग में जल पाया जाता है अर्थात इस प्रकार पृथ्वी पर जल भूमि से लगभग तीन गुना से भी अधिक है। पृथ्वी का केवल एक तिहाई भाग स्थल है तथा दो तिहाई हिस्सा जल से ढका है। स्थल विशाल भूखंडों में विभाजित है जिन्हें महाद्वीप कहते हैं। इन विशाल महाद्वीपों को खारे जल का विस्तार घेरे है जिन्हें महासागर कहते हैं।
स्थलमंडल
स्थलमंडल में पृथ्वी की ऊपरी सतह के वे सभी छोटे-बड़े भूखंड सम्मिलित है जो कठोर और नरम शैलों (चट्टानों) से बने है। छोटे भूखंड जिनके चारों और जल हो 'द्वीप' कहलाता है तथा जैसा ऊपर बताया विशाल भूखंडों को महाद्वीप कहते है। आप महाद्वीपों के नाम जान चुके हो। पृथ्वी का सम्पूर्ण धरातल एक समान नहीं है। इसके कुछ भाग समतल है तो कुछ भाग उबड़-खाबड़ एवं ऊँचे-नीचे है। ऊँचाई तथा आकार के अनुसार स्थल भाग की इन्ही आकृतियों को पर्वत, पठार, मैदान के नाम से जाना जाता है। यह आकृतियाँ सभी महाद्वीपों में पायी जाती है। चूँकि समुद्र की ऊपरी सतह सब जगह समान है इसलिए स्थल पर ऊचाईयाँ समुद्र की सतह से नापी जाती है।
"पृथ्वी का वह समस्त भू-भाग जो कठोर और नरम शैलों से बना है, स्थलमंडल कहलाता है।"
पर्वत
अपने आस पास के क्षेत्र से बहुत ऊँचे भाग होते है और इनके ढाल तीव्र होते है। पहाड़ों मे ऊँची-ऊँची चोटीयाँ और गहरी खाइयों होती है। पर्वतों के समूह को पर्वत श्रेणियां कहते है। ये पर्वत श्रेणिया हजारो किलोमीटर में फैली है।
भारत के उत्तर में हिमालय पर्वत श्रेणी फैली हुई है। यह संसार की सबसे ऊंची पर्वत श्रेणी है। मध्यप्रदेश में विध्याचल और सतपुड़ा पर्वत श्रेणियों है।
पठार
सामान्य रूप से ऊँचे उठे हुए वे भू-भाग हैं जिनकी ऊपरी सतह लगभग समतल अथवा हल्की ऊँची-नीची होती है, पठार कहलाते है। यह आसपास के क्षेत्री से एकदम उठे हुए होते है। प्रठार के इन तेज ढलान वाले किनारे को कगार कहते हैं। हमारे देश में दक्कन का पठार प्रसिद्ध है।
मैदान
हमारी पृथ्वी के वे निचले भाग जो समतल और सपाट हैं मैदान कहलाते हैं। अधिकतर मैदान नदियों द्वारा बलकर लाई गई मिट्टी, ककड़, बालू पत्थर आदि से बने हैं। हमारे देश में गंगा-यमुना से बना। उत्तर का विशाल मैदान प्रमुख हैं।
चीन में व्हांगहो व यांगटीसीक्यांग नदियों से बना मैदान और उत्तरी अमेरिका के मिसीसिपी- मिसौरी नदियों से बने मैदान बड़े उपजाऊ है। यही कारण है कि इन मैदानों में बड़ी संख्या में लोग बसते हैं।
(2) जलमंडल
पृथ्वी का वह समस्त भाग जो जल से ढका है जलमंडल कहलाता है।
हम सौभाग्यशाली है क्योंकि पृथ्वी पर विशाल जल भंडार है। जैसा कि आप जानते हो कि पृथ्वी के दो तिहाई भाग पर जल है। यह जल, महासागर, सागर, झीलों और नदियों आदि में एकत्र है। ये सब मिलकर जलमण्डल का निर्माण करते है। आप महासागरों के नाम जान चुके है। प्रशान्त महासागर सबसे बड़ा और गहरा महासागर है। जलमण्डल से हमें वर्षा तथा हिम मिलता है जो हमारे तरह-तरह के उपयोग में आता है। यह मीठा जल है। जबकि सागरों का जल खारा होता है।
(3) वायुमण्डल
आप जानते हो कि हमारे चारों और वायु का आवरण है। यह आवरण धरातल से लगभग 1600 किलोमीटर की ऊँचाई तक फैला है। वायुमंडल में वायु धरातल के निकट अधिक मात्रा में तथा ऊँचाई बढ़ने पर धीरे-धीरे कम होती जाती है। इस कारण पहाड़ों पर सांस लेने में कठिनाई होती है। पर्वतारोही अपने साथ ऑक्सीजन गैस के सिलेण्डर ले जाते हैं। इस प्रकार वायुमंडल पृथ्वी के लिए एक कंबल का कार्य करता है और हमें सूर्य की तेज किरणों से बचाता है। वायुमंडल में अनेक गैसे जैसे ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, कार्बन डाइआक्साइड आदि पाई जाती है।
पृथ्वी के चारों ओर वायु का आवरण जो विभिन्न गैसों के मिश्रण से बना है।वायुमंडल कहलाता है।
वायुमंडल में नाइट्रोजन गैस सबसे अधिक मात्रा में अर्थात 78. 1 प्रतिशत पाई जाती हैं। आक्सीजन गैस सभी जीवधारियो के जीवन के विकास के लिए प्राणवायु के रूप में कार्य करती है। यह वायुमंडल में 21 प्रतिशत पाई जाती है। इसी प्रकार कार्बन डाईआक्साइड पेड़-पौधों की वृद्धि में सहायक है। वायुमंडल में गैसो की मात्रा को नीचे की तालिका में दिया गया है।
गैस – प्रतिशत
नाइट्रोजन - 78.1
आक्सीजन - 20.9
आरगन - 0.09
कार्बन-डाईआक्साइड - 0.03
जलवाष्प तथा अन्य गैसे - 0.02
जैवमंडल
पृथ्वी के तीनों परिमंडल स्थल मंडल वायुमंडल और जलमंडल मिलकर इस प्रकार का वातावरण तैयार करते हैं जिसे प्राकृतिक वातावरण या पर्यावरण कह सकते हैं इसी प्रकृति पर्यावरण के समस्त जंतु एवं पेड़ पौधों में जीवित रहते हैं। जैवमंडल के जीवो को दो श्रेणियों में विभाजित कर सकते हैं-
1. प्राणी जगत
2. वनस्पति जगत
जीवों का वह मंडल जो स्थल, जल और वायु मंडल में पाया जाता है, जैवमंडल कहलाता है।
प्राणी जगत में जीवों की लगभग दस लाख जातियां पायी जाती है। इसमें अति सूक्ष्म जीवाणु से कर विशालकाय हाथी एवं व्हेल मछली तक सम्मिलित है। प्राणी जगत में जीव जन्तु एक स्थान से दूसरे विज्ञान को भ्रमण करते हैं। वनस्पति जगत में तीन लाख जातियां पाई जाती हैं, जिनमें अति सूक्ष्म फफूंदी लेकर विशालकाय पेड़ तक सम्मिलित है। वनस्पति जगत के जीव एक ही स्थान पर विकसित होते हैं। जैवमंडल अंग्रेजी के बायोस्फीयर शब्द से बना है। बायो का अर्थ जीवन है, इसलिए इसे जैवमंडल या जीवन क्षेत्र कहते हैं। यहाँ भूमि, वायु और जल एक दूसरे के संपर्क में आते हैं। पृथ्वीका सम्पूर्ण जीवन इसी में सीमित है। यह समुद्र तल से केवल कुछ ही किलोमीटर नीचे तथा ऊपर तक होता है। इस परिमंडल मे जीव-जंतु, पेड़-पौधे और सूक्ष्म जीवाणु पाए जाते हैं। यानी जैवमंडल में जीवों का आकार सूक्ष्म जीवाणु से लेकर विशालकाय हाथी तक है।
पृथ्वों के सभी परिमंडल एक दूसरे पर निर्भर है इसलिए प्रत्येक परिमंडल एक-दूसरे को प्रभावित प्रकृति करता है। मानव विभिन्न परिमंडलों को प्रभावित करने वाला महत्वपूर्ण सदस्य है। जैसे बहती हुई जनसंख्या को अधिक स्थान चाहिए। वनों को साफ करके स्थान प्राप्त किया जाता है, परन्तु पेड़ों के काटने से पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा इससे मृदा अपरदन बढ़ेगा, जिस आक्सीजन को हम पेड़ों से प्राप्त करते हैं उसमें भी कमी आएगी। इस प्रकार प्राकृतिक पर्यावरण से जैवमंडल का गहरा संबंध है। उनमें आपसी निर्भरता है। इस निर्भरता को निरन्तर बनाए रखने की जो व्यवस्था है उसे पारिस्थितिक तंत्र कहते हैं। इस प्राकृतिक सन्तुलन को बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि हम भी प्रकृति द्वारा दिए गए पदार्थों का मानव कल्याण में सदुपयोग कर उसके दुरुपयोग को रोकने का प्रयास करें।
I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
pragyaab.com
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