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भारत की जलवायु | India's climate

भारत मानसून जलवायु वाला देश है। यहां के लोगों का जीवन और उनके कार्य मानसून से प्रभावित होते है। क्या है यह मानसून? मानसून शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के 'मौसिम' शब्द से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ है 'मौसम'। इसका प्रयोग अरब के नाविकों द्वारा अरब सागर में 6 माह उत्तर-पूर्व से चलने वाली हवाओं के लिए करते थे। जो आज भी प्रचलित है। इस प्रकार 'मानसून' शब्द से आशय है ऐसी पवनें जो एक निश्चित अवधि में एक निश्चित दिशा में चलती हैं। मानसूनी पवनों के कारण ही भारत की जलवायु को मानसूनी जलवायु कहा जाता है।

मानसून पवनों की उत्पत्ति को समझने के लिए हमें निम्नलिखित बातों को समझना आवश्यक है-
1. ताप का प्रमुख स्रोत सूर्य है। ताप के कारण ही वायु गर्म और ठंडी होती है। वायु में भार होता है जिसे वायुदाब कहते हैं।
2. गर्म वायु हल्की और ठंडी वायु भारी होती है।
3. हल्की वायु से निम्न दाब तथा भारी वायु से अधिक दाब निर्मित होता है।
4. जब वायुदाब में परिवर्तन होता है तो वायु चलने की दिशा में भी परिवर्तन होता है।
5. ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर चलने वाली हवा को वायु तथा धरातल के समानान्तर चलने वाली हवा को पवन कहते है।
6. पवन हमेशा अधिक दाब से निम्न दाब की ओर चलती है।

मानसून की उत्पत्ति

हमारा देश उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित है। जब सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध में चमकता है तो हमारे देश में ग्रीष्म ऋतु होती है और तापमान में वृद्धि होने लगती है। सम्पूर्ण उत्तर भारत और पाकिस्तान पर अधिक तापमान होता है। अधिक ताप के कारण उत्तरी भारत में निम्न वायुदाब उत्पन्न होता है। इसी समय दक्षिण में स्थित हिन्द महासागर में तापमान कम होने के कारण अधिक दाब रहता है। अधिक वायु दाब से निम्न दाब की ओर पवन चलने लगती है। चूंकि ये पवनें समुद्र (हिन्द महासागर) से स्थल भाग (भारतीय उप महाद्वीप) की ओर चलती है। इसलिए ये वाष्प भरी होती है। इन वाष्प भरी आर्द्र वायु से ही पूरे देश में वर्षा होती है। ये मकालीन मानसून पवनें होती है।

जब सूर्य दक्षिणी गोलार्द्ध में चमकता है तो उत्तरी भारत तथा पाकिस्तान ठंडा हो जाता है। भारत में जाड़े की ऋतु होती है और हिन्द महासागर गर्म होने लगता है। हिन्द महासागर के गर्म होने से वहाँ निम्न वायु दाब स्थापित हो जाता है। इसी समय उत्तरी भारत शीत ऋतु के प्रभाव में रहता है और वहां अधिक वायुदाब होता है। इसी के साथ पवन की दिशा में भी परिवर्तन हो जाता है। पवने स्थल (भारतीय उप महाद्वीप) से समुद्र (हिन्द महासागर) की ओर चलने लगती है। स्थल से चलने के कारण ये शुष्क और ठंडी होती है। इसे शीतकालीन पवने भी कहते है।
इस प्रकार ऋतु परिवर्तन के अनुसार पवनों की दिशा में परिवर्तन होना मानसून की उत्पत्ति कहलाती हैं।

भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक-
भारत की जलवायु को निम्नलिखित कारक प्रमुख रूप से प्रभावित करते हैं-
(1) भारत की भौगोलिक स्थिति
(2) धरातलीय स्वरूप
(3) प्रचलित पवनें।

(i) भारत की भौगोलिक स्थिति-

भारत 8°4 से 37°6 उत्तरी अक्षांशों के बीच स्थित है। कर्क रेखा इसे लगभग दो बराबर भागों में विभाजित करती है। भारत के दक्षिण में हिन्द महासागर फैला है। उत्तर में ऊँची-ऊँची हिमालयीन पर्वतमालाएँ हैं। तीन ओर से समुद्र द्वारा घिरा होने से पर्याप्त मात्रा में पवनों को आईता मिलती है।

(ii) धरातलीय स्वरूप-

उत्तर में हिमालय पर्वत दीवार की तरह पूर्व से पश्चिम तक फैला हुआ है। जो उत्तरी ध्रुव से आने वाली ठंडी हवाओं को उत्तर में ही रोककर भारत को ठंड से बचाता है वहीं दूसरी और आर्द्रता से लदी मानसूनी पवनों को रोककर भारत में वर्षा कराता है।

(iii) प्रचलित मौसमी पवनें-

यदि भारत में मौसम के अनुसार प्रचलित पवनों की दिशा नहीं बदलती तो यह एक शुष्क भू-भाग या मरुस्थल होता उत्तर में एशिया महाद्वीप में वायुदाब परिवर्तन होने से प्रचलित पवनों की दिशा में भी परिवर्तन होता रहता है।

भारत की ऋतुएं

भारतीय सर्वेक्षण विभाग द्वारा ऋतुओं का विभाजन इस प्रकार किया गया है।
1. शीत ऋतु
2. ग्रीष्म ऋतु
3. वर्षाऋतु
4. शरद ऋतु

शीत ऋतु - (15 दिरु बर से 15 मार्च)-

इस समय सूर्य दक्षिणी गोलार्द्ध में रहता है जिसके कारण उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित भारत में शीत ऋतु होती है। उत्तरी भारत में तापमान निम्न और वायुदाब उच्च रहता है। पवने उच्च दाब से निम्न दाब अर्थात स्थल से समुद्र की आर चलने लगती है। स्थल से चलने के कारण ये ठंडी और शुष्क होती है। इनकी दिशा उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर होती है। तापमान तेजी से नीचे लगता है। इस ऋतु की तीन विशेषताएं हैं-
1. सम्पूर्ण उत्तरी भारत शीत लहर की चपेट में आ जाता है।
2. उत्तर-पश्चिमी भारत में पश्चिमी चक्रवातों से थोड़ी वर्षा हो जाती है।
3. बंगाल की खाड़ी के ऊपर से लौटती हुई मानसून पवनों द्वारा तमिलनाडु के तट पर वर्षा होती है।
जब सामान्य तापमान 50 सेन्सियस से भी कम हो जाता है उस समय चलने वाली ठंडी हवा को शीत लहर कहते हैं।

ग्रीष्म ऋतु- (15 मार्च से 15 जून)

इस अवधि में सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध में तेज चमकने लगता है। तापमान में क्रमशः वृद्धि होने लगती है। सम्पूर्ण उत्तरी भारत गर्म हो जाता है। उत्तर-पश्चिमी भागों में तापमान 48" सेल्सियस तक पहुंच जाता है। दोपहर में गर्म और शुष्क हवाएँ चारों ओर चलने लगती है। दोपहर में चलने वाली इन हवाओं को 'लू' कहते है।

वर्षा ऋतु - (15 जून से 15 सितम्बर)

यह समय आगे बढ़ते हुए मानसून का होता है। इस समय भारत में हवाओं की दिशा दक्षिण पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर होती है। जून के प्रारंभ में दक्षिण-पश्चिम मानसून केरल के तट पर पहुंच जाता है। इसी के साथ वर्षाऋतु प्रारंभ होती है। आर्द्रता युक्त मानसूनी गर्म पवने मध्य जुलाई तक भारत के अधिकांश भागों में फैल जाती है। जिससे मौसमी दशाएँ पूर्णतः बदल जाती है। इन पवनों से संपूर्ण भारत में वर्षा होने लगती है।

शरद ऋतु- (15 सितम्बर से 15 दिसम्बर)

इस समय उत्तरी भारत के तापमान में गिरावट आने लगती है। अतः अधिक वायु दाब क्षेत्र बनता है। हवा की दिशा उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर होती है। स्थल से सागर की ओर चलने के कारण इन हवाओं से वर्षा नहीं होती। लौटती हुई मानसूनी पवनें बंगाल की खाड़ी से आर्द्रता ग्रहण कर तमिलनाडु के पूर्वी तट पर वर्षा करती है।

भारतीय जलवायु को प्रमुख विशेषताएं

1. भारत की जलवायु पूर्णतः मानसूनी है।
2. अधिकांश वर्षा मात्र चार माह जून से सितम्बर में हो जाती है।
3. उत्तरी भारत में तापान्तर अधिक तथा दक्षिणी भागों में कम पाया जाता है। (अधिक और निम्न ताप के बीच का अंतर)
4. भारत में बाढ़ और सूखा के समाचार एक साथ आते हैं।
5. वर्षा का वितरण बहुत ही असमान है कहीं बहुत ज्यादा तो कहीं बहुत कम होती है।
6. जलवायु भारतीय जन जीवन को प्रभावित करती है।
7. देश के भीतरी भागों में महाद्वीप और तटीय भागों में सम जलवायु दशाएं पाई जाती हैं।
8. मानसून के पूर्व तथा उसके बाद चक्रवात आते हैं। जाड़े को ऋतु में भी चक्रवात आते हैं। ये चक्रवात वर्षा लाते हैं।

I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
pragyaab.com

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