हिमालय की प्राकृतिक वनस्पतियाँ | Natural Vegetation of Himalayas
हिमालय की प्राकृतिक वनस्पतियाँ निम्नलिखित है।पश्चिमी हिमालय की अभिलाषा पूर्वी हिमालय का औसत तापमान ज्यादा होने के कारण सभी प्रकार की प्राकृतिक वनस्पतियों का ज्यादा ऊँचाई तक विशाल हुआ है। उदाहरण के लिए पश्चिमी हिमालय में शंकुधारी और टुंड्रा वनस्पति कम ऊँचाई से ही मिलने लगती हैं तथा 4,000 मीटर से अधिक ऊँचाई वाले पर्वतीय क्षेत्रों में अत्यंत कम तापमान हो जाने के कारण टुंड्रा वनस्पति का विकास भी नहीं हो पाता है, जबकि पूर्वी हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों में 4,000 मीटर से भी ज्यादा ऊँचाई पर टुंड्रा वनस्पति का उन्नति हुआ है। और हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों में समुद्र जलस्तर से लगभग 900 मीटर की ऊँचाई तक प्राकृतिक वनस्पति के प्रगति को तापमान की अपेक्षा वर्षा की मात्रा ज्यादा निश्चित करती है, इसलिये 900 मोटा की ऊँचाई तक पूर्वी हिमालय से पश्चिमी हिमालय की ओर जाने पर वर्षा की मात्रा में कमी आती जाती हैं, जिसके कारण उष्णकटिबंधीय वनस्पति का विकास क्रमशः बारहमासी वन से लेकर कँटीले वन एवं सवाना वन तक हुआ है।
पश्चिमी हिमालय की अभिलाषा पूर्वी हिमालय की निम्न अक्षांशीय भौगोलिक अवस्थिति के साथ विषुवत रेखा एवं समुद्र से पास होने के कारण न केवल औसत तापमान अधिक रहता है, परन्तु वर्षा भी अधिक मात्रा में होती है। यही कारण है कि पश्चिमी हिमालय की अपेक्षा, पूर्वी हिमालय में प्राकृतिक वनस्पतियों की सघनता, जैवभार और जैव-विविधता ज्यादा है। चीड़ के वृक्ष से 'लीसा' मिलता है, जिससे 'तारपीन का तेल' बनाया जाता है। इसका उपयोग साबुन, पेंट बनाने एवं कागज उद्योग में किया जाता है।
3,000 मीटर से ज्यादा ऊँचाई पर अल्पाइन वनों तथा चरागाह भूमियों का संक्रमण पाया जाता है। 3,000 से 4,000 मीटर की ऊँचाई पर सिल्वर फर, जूनिपर, पाइन, बर्च तथा बुरूंश (रोडोडेंड्रॉन) आदि वृक्ष मिलते हैं। ऋतु प्रवास करने वाले समुदाय, जैसे-गुज्जर, बकरवाल गद्दी और भूटिया इन चारागाहों का भरपूर उपयोग करते हैं। 1,000 से 2,000 मीटर की ऊँचाई के बीच, आर्द्र शीतोष्ण प्रकार के ऊँचे एवं घने वन पाये जाते हैं। ये मुख्यतः शंकुल आकार की गहरी हरी भू-दृश्यावली का निर्माण करने वाले वनों की धारियों के रूप में पाये जाते हैं। यहाँ बारहमासी ओक (बांज) एवं चेस्टनट के वृक्ष प्रमुख रूप से मिलते हैं। 2,000 मीटर से 3,000 मीटर की ऊँचाई पर आई शीतोष्ण वनों का विस्तार मिलता है। इन वनों में देवदार भोजपत्र, चीड़. सिल्वर फर स्प्रूस आदि वृक्ष प्रमुख हैं। 1,500 से 1,750 मीटर की ऊँचाई पर चीड़ के वन काफी विकसित रूप में पाये जाते हैं और ये आर्थिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं।
प्राकृतिक वनस्पति का अर्थ है वह वनस्पति जो मनुष्य द्वारा विकसित नहीं की गयी है । यह मनुष्यों से मदद की जरूरत नहीं है और जो कुछ भी पोषक तत्व इन्हें चाहिए, प्राकृतिक वातावरण से ले लेते है। जमीन की ऊंचाई और वनस्पति की विशेषता के बीच एक सम्बधं है। ऊंचाई में परिवर्तन के साथ जलवायु परिवर्तन होता है और जिसके कारण प्राकृतिक वनस्पति का रुप बदलता है।
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(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
pragyaab.com
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