मौलिक अधिकार एवं कर्त्तव्य | Fundamental Rights and Duties
हमारे मौलिक अधिकार
1. समता का अधिकार
2. स्वतंत्रता का अधिकार
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार
4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
5. संस्कृति और शिक्षा का अधिकार
6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार।
1. समता का अधिकार
सभी नागरिक बिना किसी भेदभाव के कानून के समक्ष समान हैं। शासकीय नौकरियों के चयन के लिए सभी को समान अवसर दिए गए हैं । शासन द्वारा जाति, धर्म, लिंग, भाषा एवं राज्य के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। सभी सार्वजनिक स्थानों जैसे- सड़कों, दुकानों, शैक्षणिक के संस्थाओं, नदी, तालाबों, पढ़ भोजनालयों, होटलों में प्रवेश से किसी को रोका नहीं जायेगा। छुआछूत (अस्पृश्यता) मानना एक अपराध है।
2. स्वतंत्रता का अधिकारइस अधिकार में हमें छः स्वतंत्रताएँ प्राप्त हैं-
विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता
भारत के सभी नागरिकों को विचार व्यक्त करने, भाषण देने और अपने तथा दूसरे व्यक्तियों के विचारों को जानने और प्रचार करने की स्वतंत्रता है। नागरिकों को समाचार-पत्र में लेख आदि लिखने की भी स्वतंत्रता है।
सम्मेलन करने की स्वतंत्रता
हमें अपने विचारों को स्वतंत्रता पूर्वक समझने, समझाने के लिए सभा करने या जुलूस निकालने की स्वतंत्रता है, लेकिन इस प्रकार के सम्मेलन या जुलूस में हथियार आदि नहीं ले जा सकते। जुलूस शांतिपूर्ण होना चाहिए। वे सभी व्यक्ति जो किसी बात पर एक समान विचार रखते हो. अपने अधिकारों के लिए इकट्ठे होकर संगठन बना सकते है।
भ्रमण की स्वतंत्रता
भारत के सभी नागरिकों को बिना किसी विशेष अधिकार पत्र के देश में कहीं भी आने जाने की स्वतंत्रता है।
निवास एवं बसने की स्वतंत्रता
भारत के सभी नागरिकों को अपनी इच्छानुसार स्थायी या अस्थायी रूप से भारत के किसी भी स्थान पर बसने एवं निवास करने की स्वतंत्रता एवं अधिकार है।
व्यापार व व्यवसाय की स्वतंत्रता
प्रत्येक नागरिक को कानूनी सीमा में रहकर अपनी इच्छानुसार कार्य तथा व्यवसाय करने की स्वतंत्रता है।
जीवन तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता
समस्त अधिकारों का महत्व केवल तब तक है जब तक कि व्यक्ति सुरक्षित एवं जीवित है। संविधान नागरिकों को जीवन व सुरक्षा का अधिकार प्रदान करता है। संविधान के अनुसार व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध जबरदस्ती को नहीं ले जाया जा सकता है।
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार
शोषण के विरुद्ध अधिकार बिना किसी भेदभाव के नागरिकों को शोषण से बचाता है। इस अधिकार का तात्पर्य है। कि किसी व्यक्ति से जोर जबरदस्ती से काम नहीं लिया जा सकता है, अर्थात् कोई व्यक्ति एक काम छोड़कर दूसरा काम करना चाहता है तो उसे रोका नहीं जा सकता) इसके अलावा उसे नियम से कम मजदूरी या खराब परिस्थितियों में जबरदस्ती काम करने पर मजबूर नहीं किया जा सकता। बंधुआ मजदूरी से शेषण के विरुद्ध मौलिक अधिकार का हनन होता है, क्योंकि उसे मजबूर होकर एक ही जमींदार या ठेकेदार के पास काम करना पड़ता है। 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से कारखानों, खदानों या ऐसे ही अन्य कोई खतरे वाले कार्य नहीं करवाए जा सकते है। इसी तरह बच्चों से गलीचे बनवाना, काँच की चूड़ी उद्योग माचिस उद्योग में काम कराना आदि भी गलत है।
4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
भारत के संविधान में सभी नागरिकों को अपने-अपने धर्म का पालन करने तथा उसका प्रचार करने का अधिकार है। किसी भी व्यक्ति को उसके धार्मिक रीति रिवाजों का पालन करने से रोका नहीं जा सकता है। सभी को अपने-अपने तरीके से उपासना करने की भी स्वतंत्रता है।
5. संस्कृति और शिक्षा का अधिकार
भारत में विभिन्न भाषा बोलने वाले लोग रहते है। उनकी अपनी-अपनी संस्कृति है हमारा संविधान इन सभी को अपनी संस्कृति भाषा और लिपि को सुरक्षित रखने का अधिकार देता है। धर्म या भाषा पर आधारित अल्पसंख्यक ऐसा धर्म मानने वाले या भाषा बोलने वाले जिनकी संख्या कम है। वर्गों को भी अपनी शिक्षण संस्थाएँ खोलने का अधिकार है। इस तरह की विभिन्न संस्थाओं को सरकारी सहायता बिना किसी भेदभाव के प्राप्त होती है।
6. संवैधानिक उपचार का अधिकार
भारत का संविधान समस्त नागरिकों को मौलिक अधिकारों की गारंटी देता है। अतः संविधान में इसके लिए पर्याप्त एवं प्रभावपूर्ण सुरक्षा दी गई है। इससे सरकार या कोई भी नागरिक दूसरे व्यक्ति के अधिकार का हनन नहीं कर सकता। संवैधानिक उपचार के अधिकार के अन्तर्गत नागरिक अपने अधिकारों के हनन होने पर न्यायालय जा सकते हैं। न्यायालय उनके मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है। संकटकालीन स्थिति में सरकार मौलिक अधिकारों को स्थगित कर सकती है।
महिलाओं हेतु विशेष प्रावधान
भारतीय संविधान द्वारा महिलाओं के लिए निम्नलिखित ये प्रावधान है-
1. कानून के समक्ष महिलाओ की समानता।
2. महिलाओं के विकास हेतु राज्य सरकारों को सकरात्मक विभेद का प्रावधान है जैसे राज्य सेवा आयोग में आयु सीमा की छूट, रोजगार के समान अवसर एवं समान काम के लिए समान वेतन, पंचायत और नगरपालिकाओं में सीटों का आरक्षण।
3. कार्य के लिए उपयुक्त और मानवीय वातावरण प्रदाय करना और प्रसूति लाभ सुनिश्चित करना।
4. महिलाओं के सम्मान के विरुद्ध गतिविधियों को रोकना।
5. सार्वजनिक स्वास्थ्य की सुविधाएँ बेहतर बनाना और पोषण के स्तर में सुधार लाना।
6. कमजोर वर्ग की महिलाओं के शैक्षणिक व आर्थिक हितों को बढ़ावा देना।
मूल कर्तव्य
अधिकारों के साथ-साथ हमारे कुछ कर्तव्य भी है। अपने कर्तव्य का निर्वाह करने से ही अधिकार सुरक्षित रहते है। हमारे कर्तव्य है-
1. प्रत्येक नागरिक द्वारा संविधान, राष्ट्र के आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रीय गान का आदर करना।
2. अपनी स्वतंत्रता को सुदद रखने के लिए राष्ट्रीय आन्दोलनों को प्रेरित करने वाले आदर्श का पालन करना।
3. भारत की संप्रभुत्ता और अखंडता की रक्षा करना तथा उसे एकता के सूत्र में बाँधना।
4. सभी देशवासीयो को धर्म, भाषा, जाति एवं वर्ग से ऊपर उठकर राष्ट्रभक्त बनना।
5. भाईचारे एवं एकता की भावना का विकास करे। संस्कृति और परम्पराओं का महत्व समझें तथा उनकी रक्षा करना।
6. प्राकृतिक संपदा जल, नदी, तालाब, वन्य प्राणियों की रक्षा करें तथा उन्हें संरक्षण प्रदान करना।
7. वैज्ञानिक दृष्टिकोण एवं मानवता की भावना को उत्तरोत्तर बढ़ाना।
8. हिंसा से दूर रहकर सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा करना ।
9. राष्ट्रहित में बढ़-चढ़कर भाग लेना।
10. इसके अतिरिक्त भी हमारे कुछ कर्तव्य हैं-
1. ईमानदारी को बढ़ाना व भष्ट्राचार को रोकना।
2. कानून का पालन करना।
3. मताधिकार का उचित प्रयोग करना।
4. सार्वजनिक पदों का जनता के हित में सदुपयोग करना।
5. अपने ग्राम, नगर के सार्वजनिक हित के कार्यों में सहयोग प्रदान करना तथा असहाय लोगों की मदद करना।
इस प्रकार हमें प्राप्त अधिकारों से हमारा विकास होता है और विकास के रास्ते खुलते हैं। परन्तु हमारा कर्तव्य है कि हम दूसरों को प्राप्त अधिकारों का हनन न करें।
I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
pragyaab.com
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