राज्य की सरकार | state government
भारत में 29 राज्य, 7 केन्द्र शासित प्रदेश एवं राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली है। इनसे ही भारत एक राजनीतिक इकाई एवं संघ राज्य बना है। 29 राज्यों, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली एवं केन्द्र शासित प्रदेश पाण्डिचेरी को विधान सभा गठित करने का अधिकार दिया गया है। केन्द्र शासित प्रदेश बहुत छोटे हैं, इन क्षेत्रों में स्थानीय शासन, केन्द्र शासन के नियमानुसार संचालित है। अपने -अपने राज्यों में राज्य की सरकारें शासन का संचालन करती हैं।
भारतीय संविधान के अनुसार कुछ सूचियाँ तय की गई हैं। इन सूचियों के आधार पर देश का शासन चलाया जाता है। ये सूचियों है-
1. संघ सूची
2. राज्य सूची
3. समवर्ती सूची
4. अवशिष्ट विषय
1. संघ सूची में 97 विषय रखे गए हैं। ये राष्ट्रीय महत्व के विषय है। इन विषयों में केवल केन्द्र सरकार ही कानून बना सकती है।
2. राज्य सूची में 62 विषय रखे गए हैं। इन विषयों पर केवल राज्य विधानमण्डल ही कानून बनाते है। इन "विषयों में संसद कानून नहीं बनाती।
3. समवर्ती सूची में 52 विषय रखे गए हैं। इन विषयों पर केन्द्र व राज्य सरकारें दोनों कानून बना सकती हैं। यदि किसी विषय पर मतभेद हो जाए तो, केन्द्र सरकार का कानून ही लागू होता है।
4. अवशिष्ट सूची में संख्या निर्धारित नहीं है। संविधान निर्माण के समय जो विषय निश्चित नहीं हुए, वे इस सूची में शामिल किए जाते हैं।
जैसे- कम्प्यूटर, साइबर, मोबाइल, टेलीफोन, दूरदर्शन एवं विभिन्न टी.वी. चैनल आदि। इन पर कानून बनाने का अधिकार केवल संघ सरकार को है।
विधानमण्डल
राज्य सूची में 62 विषय हैं, राज्य इन विषयों में कानून बनाने में स्वतंत्र हैं।
"जिस प्रकार विद्यालय संचालन के नियम विद्यालय पर तथा स्थानीय ग्राम पंचायत (अथवा निकाय) द्वारा बनाये गये नियम स्थानीय स्तर पर लागू होते हैं, वैसे ही राज्य विधानमण्डल द्वारा बनाये गये नियम राज्य की सीमा में लागू होते हैं। मध्यप्रदेश की सीमा में लागू होने वाले कानून मध्यप्रदेश की विधानसभा द्वारा बनाए जाते हैं। केन्द्र सरकार द्वारा बनाए गए कानून भी मध्यप्रदेश में लागू हैं।"
कुछ राज्यों में विधानमण्डल के दो सदन हैं।
1. विधानसभा
2. विधान परिषद् ।
मध्यप्रदेश में एक ही सदन है— विधान सभा। आइए अपने प्रदेश की विधान सभा के बारे में जानें।
मध्यप्रदेश की विधानसभा
संविधान द्वारा राज्यों की विधानसभा सदस्यों की संख्या निश्चित की गई है। यह संख्या अधिकतम 500 तथा न्यूनतम 60 है। सिक्किम तथा पांडिचेरी जैसे छोटे राज्यों में यह संख्या क्रमशः 40 व 30 है। मध्यप्रदेश की विधानसभा में यह संख्या 230 है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने से पूर्व यह संख्या 320 थी। संविधान के अनुसार प्रदेश में निवास करने वाली अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों हेतु स्थान आरक्षित है। विधानसभा सदस्य को विधायक या एम.एल.ए. (मेम्बर ऑफ लेजिस्लेटिव असेम्बली) कहा जाता है।
विधायक बनने के लिए अर्हताएँ
विधानसभा सदस्य बनने के लिए निम्नलिखित अलाएं होना चाहिए-
1. वह भारत का नागरिक हो।
2. वह 25 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो।
3. वह भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन लाभ के पद पर न हो।
4. दिवालिया अथवा पागल न हो।
विधानसभा के गठन हेतु विधायकों का चुनाव एवं प्रक्रिया
मध्यप्रदेश की जनसंख्या के अनुपात में विधानसभा हेतु 230 स्थान इस प्रकार निर्धारित है ताकि समान प्रतिनिधित्त्व हो सके। एक व्यक्ति एक ही क्षेत्र का विधायक हो सकता है। यदि कोई व्यक्ति एक से अधिक क्षेत्रों से चुन लिया गया हो तो एक को छोड़कर अन्य क्षेत्रों से त्यागपत्र देना होता है। यदि किसी प्रत्याशी (उम्मीदवार) के निर्वाचन के संबंध में कोई विवाद हो तो उच्च न्यायालय में चुनाव याचिका दायर की जा सकती है। इस याचिका के स्वीकार कर लिए जाने पर उच्च न्यायालय अपना निर्णय देता है। यह निर्णय उम्मीदवार के विरुद्ध भी हो सकता है। हारने वाला पक्ष उच्चतम न्यायालय जा सकता है। उच्चतम न्यायालय का निर्णय अंतिम होता है।
चुनाव प्रक्रिया
भारत का चुनाव आयोग केन्द्र व राज्य सरकार से परामर्श करके एक अधिसूचना जारी करता है, जिसमें चुनाव की तिथियाँ घोषित की जाती हैं। इन तिथियों में प्रत्याशियों द्वारा नामांकन फार्म भरे जाने, नाम वापस लिए जाने, मतदान एवं मतगणना की तिथि आम जनता को बताई जाती है। चुनावों का संचालन चुनाव आयोग की देख-रेख में होता है। जब चुनाव आयोग सभी चुने हुए विधायकों को सूची घोषित कर देता है, तो विधानसभा गठित हुई मान ली जाती है।
विधानसभा का कार्यकाल
विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है। किसी संकटकालीन स्थिति में राज्यपाल अपने विवेक से निर्णय लेकर राष्ट्रपति को विधानसभा भंग करने को अनुशंसा कर सकते हैं। राज्य की मंत्री परिषद् भी राज्यपाल को विधानसभा भंग करने की अनुशंसा कर सकती है।
विधानसभा में दो पदाधिकारी होते है-
1. अध्यक्ष
2. उपाध्यक्ष।
अध्यक्ष राज्य विधानसभा का कार्य संचालन करते है। विधानसभा की बैठकों में अनुशासन बनाए रखना इनकी जिम्मेदारी में आता है। अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष उनके दायित्व को पूर्ण करते हैं।
विधानसभा के कार्य व शक्तियाँ
विधानसभा के दो प्रमुख कार्य हैं।
1. कानून बनाना
2. बजट को स्वीकृति प्रदान करना
किन्तु उसका एक और महत्वपूर्ण कार्य है— विभिन्न माध्यमों से जनहित के कार्यों, सरकारी योजनाओं, विभागीय कार्यवाहियों आदि के संबंध में जानकारियाँ प्राप्त करना। विधानसभा के सदस्य यह कार्य प्रश्नों की प्रक्रिया के अन्तर्गत करते हैं। सत्ता पक्ष अथवा विपक्ष के सदस्य नियमों के अन्तर्गत कोई प्रश्न करते हैं तब सरकारी पक्ष अर्थात् शासन/ सरकार को उनका उत्तर देना होता है।
विधानसभा सरकारी विभागों द्वारा किए गए कार्यों पर नियंत्रण रखती है, ताकि सरकार जनता के किसी वर्ग के विरुद्ध निरंकुश न हो जाए अथवा जनहित के विरोध में कोई कदम न उठा ले। यह कार्य विधानसभा सदस्य विभिन्न प्रस्तावों के माध्यमों से करते है। ऐसे प्रस्ताव काम रोको प्रस्ताव, ध्यानाकर्षण, प्रश्न पूछना, बजट में कटौती प्रस्ताव आदि हैं। यदि कोई गंभीर स्थिति उत्पन्न हो जाए तो सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव भी पेश किया जा सकता है।
कानून बनाना
विधानसभा को राज्य सूची में वर्णित सभी 62 विषयों पर कानून बनाने का अधिकार है। वह राज्य की आवश्यकतानुसार इन विषयों पर कानून बनाती है। सरकार द्वारा प्रस्तुत विधेयक पर सदन में विस्तृत चर्चा होती है। विचार विनिमय के पश्चात् सदन उस विधेयक को पारित करता है। पारित होने के बाद विधेयक को राज्यपाल की अनुमति हेतु भेजा जाता है। राज्यपाल उसे राष्ट्रपति के पास भी (यदि आवश्यक हो तो) भेज सकते हैं। राज्यपाल अथवा राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हो जाने के उपरान्त विधेयक अधिनियम का रूप ले लेता है। अधिनियम तब तक लागू रहते हैं जब तक कि उच्च अथवा उच्चतम न्यायालय किसी वाद अथवा याचिका के तहत् (सम्पूर्ण रूप से या अंशतः) भारत के संविधान से असम्मत होने के कारण अवैध घोषित न कर दे।
वित्तीय कार्य
विधानसभा राज्य की वित्तीय व्यवस्था पर नियंत्रण रखती है। शासन द्वारा संचालित योजनाओं, कार्यों को पूरा करने के लिए धन की आवश्यकता होती है। इसके लिए प्रतिवर्ष विधानसभा में राज्य की आय-व्यय विधेयक, जिसे बजट कहते है, प्रस्तुत होता है। विधानसभा द्वारा पारित होने पर राज्यपाल के हस्ताक्षर होते हैं। इसके पश्चात् ही सभी वित्तीय कार्य संचालित होते हैं। वित्त विधेयक, वित्त मंत्री द्वारा विधानसभा में प्रस्तुत किया जाता है।
विधान परिषद्
जिन राज्यों में व्यवस्थापिका के दो सदन हैं, उनमें राज्यपाल विधानपरिषद् तथा विधानसभा तीनों को संयुक्त रूप से विधानमण्डल कहते हैं। वर्तमान में बिहार, कर्नाटक, उत्तरप्रदेश, जम्मू कश्मीर और महाराष्ट्र में विधानमण्डल के दोनों सदन है। मध्यप्रदेश में यह सदन गठित नहीं है। विधानसभा को प्रथम (या निम्न) सदन तथा विधान परिषद् को द्वितीय (या उच्च) सदन कहा जाता है।
I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
pragyaab.com
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