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प्रतिदिन की पूजा का आरंभ कहाॅं से करना चाहिए? संस्कृत शुद्धि मंत्रों का हिन्दी में अनुवाद

प्रतिदिन की पूजा का आरंभ स्व-पवित्रीकरण से करना चाहिए। स्व-पवित्रीकरण कैसे किया जाए यह ध्यातव्य है। जैसे हम अपने शरीर को स्नान करके स्वच्छ करते हैं; घर गंदा होने पर पोछा-झाड़ू लगाकर या पुताई-लिपाई करके स्वच्छ करते हैं; इसी तरह हमारे तन-मन की अशुद्धता को दूर करने के लिए पूजा आरंभ करने से पूर्व हमें स्नान-ध्यान करना होता है। स्नान-ध्यान व स्वच्छ वस्त्र धारण करने के पश्चात स्वच्छ आसान बिठाकर ईश्वर के सम्मुख पूर्वाभिमुख (पूर्व की ओर मुँह करके) होकर बैठ जाना चाहिए। ध्यान यह रहे कि हमारा मुख ईश्वर की ओर रहे। हमनें स्नान करके शरीर को तो शुद्ध कर लिया है किन्तु पूजन आरंभ करने से पहले मन की शुद्धि भी आवश्यक है। मन की शुद्धि मंत्रोच्चार एवं शुद्ध जल शरीर पर छिड़ककर किया जाता है‌।

पवित्रीकरण एवं पूजन हेतु कुआँ, बावली से ताजा जल बाल्टी से खींचकर पूजाघर में रख लेना चाहिए। फिर बाएँ हाथ में जलपात्र लेकर या कुशा इत्यादि के माध्यम से निम्न मंत्र को बोलते हुए स्वयं के उपर जल छिड़कना चाहिए।

ऊॅं अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः।।
ऊॅं पुण्डरीकाक्षः पुनातु।
ऊॅं पुण्डरीकाक्षः पुनातु।
ऊॅं पुण्डरीकाक्षः पुनातु।

हिन्दी अनुवाद — कोई भी मनुष्य जो पवित्र हो, अपवित्र हो या किसी भी स्थिति को प्राप्त क्यों न हो, वह भगवान पुण्डरीकाक्ष (श्री हरि) का स्मरण करता है तो वह बाहर और भीतर से हर प्रकार से पवित्र हो जाता है।
मैं उन्हीं पुण्डरीकाक्ष (विष्णु) भगवान का स्मरण करता हूँ।
भगवान पुण्डरीकाक्ष मुझे भी पवित्र करें।
भगवान पुण्डरीकाक्ष मुझे भी पवित्र करें।
भगवान पुण्डरीकाक्ष मुझे भी पवित्र करें।

टीप— सनातन धर्म में पुण्डरीकाक्ष भगवान विष्णु के लिए प्रयुक्त किया जाता है। ऊँ अपवित्रः पवित्रो मंत्र को बोलने से व्यक्ति अपनी मानसिक और आध्यात्मिक स्थिति को शुद्ध कर सकता है। यह मंत्र व्यक्ति के आत्मा को उच्चतम सात्त्विकता (पवित्रता) की ओर ले जाता है और नवीन ऊर्जा के साथ अपने जीवन को आगे बढ़ा सकता है।

इसके पश्चात आत्म शुद्धि के लिए बाएँ हाथ में जलपात्र या कुशा से दाहिने हाथ में जल लेकर निम्न मंत्र बोलते हुए तीन बार पीना चाहिए।

ऊॅं केशवाय नमः।
ऊॅं नारायणाय नमः।
ऊॅं माधवाय नमः।

हिन्दी अनुवाद — भगवान केशव (कृष्ण) को नमस्कार।
भगवान नारायण (विष्णु) को नमस्कार।
भगवान माधव (कृष्ण) को नमस्कार।

इस तरह से ईश्वर का नाम लेते हुए जल पीने को आचमन अर्थात आत्म शुद्धि कहा जाता है। निश्चित ही मनुष्य सर्वप्रकारेण पवित्र हो जाता है।
तीन बार आचमन (आत्मशुद्धि) करने के पश्चात निम्न मंत्र पढ़कर हाथ धोना चाहिए।
ॐ हृषीकेशाय नमः।। हस्तम्‌ प्रक्षालयामि।
हिन्दी अनुवाद — हृषिकेश अर्थात सभी इंद्रियों के भगवान आपको नमस्कार। मैं अपने हाथ धो धोता/धोती हूँ।

तत्पश्चात तीन बार प्राणायाम करना चाहिए। अर्थात वायु को दोनों नासा छिद्रों से अन्दर खींचे एवं बाहर करें। यह क्रिया तीन बार करें।
इसके पश्चात आसन पवित्रीकरण किया जाता है, इस बारे में अगले लेख में पढ़ें।
BK आस्था दीदी
सिवनी, मध्यप्रदेश

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I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
pragyaab.com

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