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मुगल साम्राज्य की स्थापना एवं उत्कर्ष (बावर, हुमायूँ, शेरशाह व अकबर) | Establishment and flourishing of the Mughal Empire

बाबर के आक्रमण के समय भारत में राजनैतिक अस्थिरता थी। ऐसी केन्द्रीय सत्ता का अभाव था. जो राजनैतिक एकता को स्थापित कर सीमा सुरक्षा की व्यवस्था कर सके। भारत की उत्तर-पश्चिम सीमा असुरक्षित थी और आक्रमणकारियों को रोकने वाली कोई शक्ति नहीं थी। इसके अतिरिक्त राजनैतिक वैमनस्यता, षडयंत्र और शत्रुता व्यापक रूप से फैली हुई थी। दिल्ली पर लोदी वंश के इब्राहिम लोदी का शासन था, जिसने अपने दुर्व्यवहार से अफगान अमीरों को अपना शत्रु बना लिया था। इन परिस्थितियों में परस्पर संघर्षरत राज्य किसी भी शक्तिशाली आक्रमणकारी का सरलता से शिकार बन सकते थे।

बाबर

जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर भारत में मुगल साम्राज्य का संस्थापक था। वह तैमूर का वंशज था। 'सामान्य रूप से उसे मुगल कहा गया है। सन् 1494 में बाबर को विरासत में फरगाना (मध्य एशिया में) का छोटा-सा राज्य मिला। वहाँ अपनी स्थिति सुदृढ़ बनाने एवं राज्य विस्तार के उद्देश्य से उसने पाँच बार भारत के विभिन्न स्थानों पर आक्रमण किया। अपने पाँचवे आक्रमण में उसने दिल्ली के अफगान शासक इब्राहीम लोदी को अप्रैल 1526 ई. में पानीपत के प्रथम युद्ध में परास्त किया। इस समय उत्तर भारत की राजनैतिक शक्ति राजपूतों और अफगानों के बीच विभाजित थी। तत्कालीन मेवाड़ के महानतम राजपूत शासक राणा साँगा को बाबर ने 16 मार्च, 1527 ई. को आगरा के निकट खानवा के युद्ध में परास्त किया। 1528 में चन्देरी के युद्ध में मेदिनीराय को एवं 1529 ई. में बाबर ने अफगानों को घाघरा के युद्ध में हराया। अब भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना का कार्य सरल हो गया। 26 दिसम्बर 1530 ई. को आगरा से बाबर की मृत्यु हो गई। बाबर की आत्मकथा 'तुजुक-ए-बाबरी (बाबरनामा) है, जो तुर्की भाषा मे लिखी गई थी।

हुमायूँ

बाबर की मृत्यु के बाद उसका बड़ा पुत्र हुमायूँ दिल्ली की गद्दी पर बैठा। हुमायूँ के तीन भाई थे कामरान, अस्करी एवं हिन्दार। बाबर ने मुगल वंश की स्थापना तो कर दी, किन्तु शत्रुओं से उसको सुरक्षित बनाने के लिए अधिक समय तक जीवित नहीं रहा। इसलिए हुमायूँ को गढ़ी पर बैठने के बाद अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। हुमायूँ के प्रमुख प्रतिद्वन्दी अफगान सरदार थे, इनमें शेरशाह मुख्य था। सन् 1539 ई. में शेरशाह ने हुमायूँ को चोसा के युद्ध में परास्त कर उसे दिल्ली की गद्दी छोड़कर ईरान भागने पर मजबूर कर दिया।

शेरशाह सूरी

शेरशाह बिहार की एक छोटी-सी जागीर के अफगान सरदार का पुत्र था। उसके बचपन का नाम फरीद था। उसने निहत्थे एक शेर का शिकार किया था, इसलिए वहाँ के शासक ने उसे शेरखाँ की उपाधि दी थी। बाबर के हाथों पानीपत और घाघरा के युद्धों में परास्त होने पर भी अफगानों की शक्ति पूर्ण रूप से नष्ट नहीं हुई थी। शेरशाह ने उन्हें पुनः संगठित कर उनमें एक नई जान फूंक दी। उसने अपनी प्रतिभा और साहस के बल पर हुमायूँ को अपदस्थ करके दिल्ली के राजसिंहासन पर अधिकार कर लिया। हुमायूँ को लगभग 15 वर्ष निर्वासित जीवन व्यतीत करना पड़ा। इस अवधि में शेरशाह और उसके उत्तराधिकारियों ने उत्तर भारत पर शासन किया। शेरशाह के अल्पकालीन शासन का भारतीय इतिहास में प्रमुख स्थान है, क्योंकि उसने अफगानों की खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित किया और प्राचीन शासन व्यवस्था को पुनर्जीवित कर उसमें मौलिक सुधार किए जिसने भविष्य के लिए आधार स्तंभ का कार्य किया।
1. 1539 में चौसा के युद्ध में एवं 1540 में कन्नौज के युद्ध में शेरशाह ने हुमायूँ को परास्त किया।
2. निर्वासित जीवन के दौरान 15 अक्टूबर 1542 ई. को अमरकोट के राजा वीरसाल के महल में हुमायूँ को अकवर के रूप में पुत्र रत्न प्राप्त हुआ।

शेरशाह का शासन प्रबन्ध

शेरशाह मध्यकालीन भारत का महान शासक था। उसने शासन में जनता के हितों को सर्वोपरि रखा। जिस कुशल प्रशासन तंत्र की शेरशाह ने नींव रखी, उसका लाभ मुगलों को मिला। शेरशाह ने सैनिक प्रशासन, न्याय व्यवस्था और भू-राजस्व के क्षेत्र में अनेक कार्य प्रारंभ किए, जिनका अनुसरण बाद में अकबर ने किया। शेरशाह ने अपने साम्राज्य को प्रान्तो में और प्रान्तों को सरकारों में विभाजित किया, जिन्हें पुनः परगनों में विभाजित किया गया। सरकारों और परणनों के अधिकारियों को समय-समय पर स्थानांतरित किया जाता था। उसने समान न्याय व्यवस्था लागू की तथा मुद्रा व्यवस्था में सुधार किया। उसके द्वारा चलाया गया चाँदी का सिक्का जो "रूपया" के नाम से जाना जाता था, वह मुगलकाल में तथा उसके बाद 1835 तक प्रचलित रहा। उसने यात्रियों के लिए कुओं और सरायों की व्यवस्था की एवं वृक्षारोपण करवाया। शेरशाह ने मौर्यकाल में निर्मित कलकत्ता से पेशावर को जोड़ने वाले पुराने राजमार्ग ग्रॉन्ड ट्रंक रोड़ का पुनर्निर्माण ( वर्तमान जी.टी. रोड) करवाया।

आगरा से राजस्थान एवं गुजरात तक तथा दक्षिण में बुरहानपुर तक सड़कों का निर्माण करवाया। उसने झेलम नदी के तट पर रोहतासगढ़ एवं दिल्ली के निकट शेरगढ़ नामक नगरों का निर्माण करवाया। बिहार के सासाराम नामक स्थान पर उसके द्वारा निर्मित मकबरा उसके महान व्यक्तित्व तथा कला का अप्रतिम उदाहरण है। शिक्षा के क्षेत्र में उसने मदरसों का निर्माण करवाया। प्रशासन के क्षेत्र में उसे अकवर का पूर्वगामी कहा जाता शेरशाह केवल पाँच वर्ष ही शासन कर सका। सन् 1545 में जब उसने कालिंजर के किले का घेरा डाला था, तभी बारूद के एक ढेर में आग लगने से वहीं खड़े शेरशाह की मृत्यु हो गई।
1. शेरशाह द्वारा बनवाई सड़के राज्य की नसें कहलाती थीं।
2. वह केन्द्रीय शासन में विश्वास करता था तथा विधायी, प्रशासनिक तथा न्याय की शक्तियाँ सम्राट के हाथों में थीं। कर्मचारियों को नगद वेतन देने की व्यवस्था थी।
3. समस्त भूमि की माप करवाई गई।
4. गुप्तचर व्यवस्था सुदृढ़ थी।

शेरशाह के उत्तराधिकारी अयोग्य सिद्ध हुए। इससे उत्तरी भारत के राज्य की स्थिति दुर्बल हो गई। प्रमुख सरदार और अधिकारी आपस में लड़ने लगे। हुमायूँ ने इस स्थिति का लाभ उठाया। उसने ईरान के शाह की सहायता से कंधार और काबुल को जीत लिया। सन् 1555 में हुमायूँ ने पंजाब को जीतकर दिल्ली और आगरा पर कब्जा कर लिया। इस प्रकार भारत में फिर से मुगल शासन की स्थापना हो गई। सन् 1556 में अपने महल के पुस्तकालय की सीढ़ियों से फिसल कर गिरने से उसकी मृत्यु हो गई। उसका पुत्र अकबर उसका उत्तराधिकारी बना।

अकबर

अक्कबर का जन्म सन् 1542 में अमरकोट (सिंघ) के हिन्दू राजा वीरसाल के महल में हुआ था। उस समय हुमायूँ शेरशाह से परास्त होकर हिन्दू राजा की शरण में था। हुमायूँ के पश्चात् सन् 1556 में जब अकबर को बादशाह घोषित किया गया तब उसकी आयु केवल 13 वर्ष को थी। चूँकि अभी वह बहुत छोटा था इस कारण बैरमखों को उसका संरक्षक नियुक्त किया गया। राज्यारोहण के समय भारत में अकबर की स्थिति मजबूत नहीं थी। आदिलशाह सूर ने अपने प्रधानमंत्री हेमू विक्रमादित्य के नेतृत्व में मुगलों को परास्त कर आगरा एवं दिल्ली पर अधिकार कर लिया था। पंजाब भी सिकन्दरशाह सूर के अधिकार में था। राज्य की आर्थिक स्थिति भी बिगड़ी हुई थी।

1556 ई. में हेमू विक्रमादित्य एवं वैरमखों के बीच पानीपत के मैदान में धमासान युद्ध हुआ। इसे पानीपत का द्वितीय युद्ध कहा जाता है। इसमें हेमू परास्त हुआ और आगरा एवं दिल्ली अकबर के नियंत्रण में आ गए। आगरा को मुगल साम्राज्य की राजधानी बनाया गया। अगले चार वर्षों तक बैरमखाँ प्रधानमंत्री एवं बादशाह के संरक्षक के रूप में सर्वोच्च स्थान पर रहा। 1560 ई. में बैरमखाँ को हज के लिए मक्का भेज दिया गया, किन्तु रास्ते में ही गुजरात में उसकी हत्या हो गई। अब शासन की बागड़ोर अकबर के हाथों में आ गई। अकबर ने विजय तथा साम्राज्य के सुदृढ़ीकरण की नीति अपनाई। जौनपुर, ग्वालियर, अजमेर, मालवा पर उसने अधिकार कर लिया।

मालवा और गोड़वाना राज्य विजय

इन दिनों दो महत्वपूर्ण राज्य थे- मान्डू और गोंडवाना गोंडवाना गोंड़ राजाओं का राज्य था। अकबर के समय यहाँ रानी दुर्गावती शासन कर रही थी। आसफखाँ ने गोंड़वाना राज्य पर आक्रमण कर दिया। रानी दुर्गावती ने स्वयं तलवार लेकर शत्रुओं का डटकर मुकाबला किया, किन्तु जब विजय की कोई आशा नहीं रही तो उसने स्वयं अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। अपनी स्थिति मजबूत करने के उद्देश्य से अकबर ने राजपूतों से वैवाहिक संबंध की नीति अपनाई। मेवाड़ अकेला ऐसा राजपूत राज्य था, जिसने अन्त तक मुगलों की सत्ता स्वीकार नहीं की।

हल्दीघाटी का युद्ध

1576 ई. में हल्दीघाटी के मैदान में मेवाड़ के शासक महाराणा प्रताप और मुगल सेना के बीच घमासान युद्ध हुआ। जिसमें मुगल विजयी रहे। महाराणा प्रताप और उनके साथी सैन्य एकत्रीकरण के उद्देश्य से सुरक्षित स्थान पर चले गये। हल्दीघाटी में परास्त होने पर भी महाराणा प्रताप ने मुगलों से अपनी मातृभूमि को मुक्त कराने का संकल्प नहीं छोड़ा। अनेक कठिनाइयों के होते हुए भी चित्तौड़, अजमेर और मण्डलगढ़ को छोड़कर वे सारे मेवाड़ को जीतने में सफल रहे। सार राजस्थान उनके यश से गुंजायमान है। स्वयं अकबर भी महाराणा प्रताप की प्रशंसा करता था। सन् 1597 में यह महान राजपूत सेनानी स्वर्ग सिधार गया।

गुजरात को जीतकर अकबर ने उसे अपने साम्राज्य में मिला लिया। गुजरात विदेशी व्यापार एवं वाणिज्य का प्रमुख केन्द्र था। 1595 ई. में अकबर ने कश्मीर, सिन्ध, उड़ीसा तथा बंगाल पर विजय प्राप्त कर उत्तर भारत में अपनी स्थिति सुदृढ़ बना ली। संपूर्ण भारत पर अपना आधिपत्य स्थापित करने के उद्देश्य से उसने दक्षिण की ओर कूच किया। खानदेश, अहमदनगर, बीजापुर और गोलकुण्डा के राज्यों को मुगल साम्राज्य में मिला लिया। उन दिनों अहमदनगर राज्य पर चाँद बीबी अपने अवयस्क भतीजे की संरक्षिका के रूप में शासन कर रही थी। उसने मुगल सेना का बड़ी वीरता से सामना किया और अन्त तक हार नहीं मानी। चाँद बीबी की मृत्यु के बाद अहमदनगर का राज्य मुगल साम्राज्य में मिला लिया गया।

अकबर की राजपूत नीति

अपने साम्राज्य का विस्तार करने के प्रयत्नों से अकबर ने समझ लिया था कि हिन्दुओं के सहयोग से ही साम्राज्य को स्थिरता प्राप्त होगी। अकबर ने राजपूतों की ओर मित्रता का हाथ बढ़ाया, उनसे वैवाहिक संबंध स्थापित किये। अपने अधीन राजपूत राजाओं से उसने उदार व्यवहार किया और उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाई। अकबर ने राज्य के उच्च पदों पर राजपूतों को नियुक्ति दी। अकबर की इस नीति का प्रभाव कुछ राजपूत राजाओं पर पड़ा। आश्वस्त होकर वे मुगलों की सेवा में आ गए। परिणामस्वरूप मुगल शासन को अनेक वीर राजपूतों की सेवाएँ प्राप्त हो गईं।

अकबर की धार्मिक नीति

अकबर ने उदारता तथा सहिष्णुता की नीति अपनाई। उसने हिन्दुओं के प्रति सहिष्णुता की नीति अपनाते हुए जजिया कर समाप्त कर दिया, गौ हत्या पर रोक लगा दी। साथ ही बलपूर्वक मुस्लिम बनाने तथा तीर्थयात्रा कर पर भी रोक लगा दी। उसने सभी धर्मों के विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिये फतेहपुर सीकरी में एक पूजागृह (इबादत खाना) का निर्माण करवाया। वहाँ पर अकबर सभी धर्मों (हिन्दू, मुस्लिम, पारसी, जैन, बौद्ध) के विद्वानों के साथ सत्संग करता था। वह इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि सभी धर्मों के मूल सिद्धांत एक से हैं। सभी धमों के अच्छे सिद्धांतों में सामंजस्य स्थापित करने के उद्देश्य से अकबर ने दीन-ए-इलाही नामक एक समूह बनाया। दीन-ए-इलाही का शाब्दिक अर्थ था- "ईश्वर का धर्म"।

अकबर की शासन व्यवस्था

अकबर की शासन व्यवस्था नई नहीं थी। उसने तुर्क अफगान शासन पद्धति विशेषतः शेरशाह की पद्धति को आंशिक परिवर्तनों के साथ अपनाया था। विशाल साम्राज्य 15 सूबों और सूबे जिलों में बँटे हुए थे। सूबेदार, दीवान (वित्त विभाग का अधिकारी), काजी (न्याय विभाग का अधिकारी), फौजदार (सैनिक अधिकारी), कोतवाल आदि महत्वपूर्ण अधिकारी होते थे।
अकबर के समय के भूमि सुधार महत्त्वपूर्ण है। इसका श्रेय अकबर के दीवान टोडरमल की है, जिन्होंने भूमि की नाप करवाई और भूमि की उर्वरा शक्ति के आधार पर लगान निर्धारित किया गया। राज्य की आय के दो मुख्य साधन थे - एक भूमि का लगान और दूसरा व्यापार पर कर। अकबर के काल में देश और विदेश में व्यापार प्रगति पर था। कपड़े बुनना, रंगना, दस्तकारी, कढ़ाई, युद्ध सामग्री निर्माण, कागज बनाना, विभिन्न धातुओं के बर्तन बनाना आदि उद्योग धंधे तथा सूती वस्त्र उद्योग विकसित थे। व्यवसायों में कृषि मुख्य था। मछली पकड़ना, नमक बनाना, अफीम और शराब बनाना भी महत्वपूर्ण व्यवसाय थे।

अकबर की मनसबदार व्यवस्था

अकबर साम्राज्यवादी शासक था। अतः उसने सुसंगठित सैन्य व्यवस्था की स्थापना पर विशेष जोर दिया। गुप्तचर व्यवस्था व डाक व्यवस्था को सुधारा गया। मुगल राज्य की सैन्य प्रकृति को देखते हुए, प्रशासनिक तंत्र को अब सैन्य स्तर पर संगठित किया गया। सरकारी सेवा करने वाले अधिकारियों को भी सैन्य पद दिए गए, जिन्हे 'मनसब' कहा जाता था। इस पद को प्राप्त करने वाला अधिकारी/सरदार 'मनसबदार' कहलाता था। अपने अन्तर्गत आने वाले सैनिकों की संख्या के अनुसार मनसब छोटा या बड़ा होता था। मनसब 1000 से 50000 तक के होते थे। सम्राट किसी भी मनसबदार की सेना का इच्छानुसार उपयोग कर सकता था। कुछ मनसबदारों को सेना के रखरखाव के लिये भूमि (जागीर) दी जाती थी, जबकि कुछ मनसबदारों को नकद वेतन भी दिया जाता था।

साहित्य और कला का विकास

अकबर के काल में साहित्य और कला का अच्छा विकास हुआ। अब्दुल रहीम खानखाना, रसखान, अबुल फजल, फैजी, 'सूरदास, तुलसीदास, केशवदास आदि प्रसिद्ध कवि और विद्वान इसी काल में हुए थे। अकबर ने संगीत तथा चित्रकला को भी संरक्षण दिया। विदेशों से चित्रकार आमंत्रित किये गये। चित्रकला में फारसी और भारतीय शैलियों का समन्वय होना शुरू हुआ।

वास्तुकला

इस काल में ही वास्तुकला में फारसी और ईरानी शैलियों के समन्वय से भवन बनाये गये। इलाहाबाद, आगरा तथा लाहौर में किले बनवाये गये। अकबर ने फतेहपुर सीकरी नामक शहर आगरा के निकट बसवाया। वहाँ सुन्दर इमारतें बनवायी गई। जिनमें दीवान-ए-आम दीवान-ए-खास, पंचमहल, जोधाबाई का महल, बीरबल का महल, जामा मस्जिद, शेख सलीम चिश्ती की दरगाह व बुलंद दरवाजा उल्लेखनीय हैं।
अकबर, कविदों, साहित्यकारों, चित्रकारों संगीत का संरक्षक था। उसके दरबार में गुणवत्ता को उच्च स्थान प्राप्त था।
ऐसा माना जाता है कि अकबर के दरबार में निम्नलिखित नौ रत्न थे -
1. अबुल फजल - विद्वान व सलाहकार
2. राजा मानसिंह - अनुभवी सेनापति
3. राजा टोडरमल - प्रसिद्ध भूमि सुधारक
4. तानसेन - संगीतकार
5. बीरबल - चतुर वाकपटु सलाहकार
6. हकीम हुक्काम - राजवैद्य
7. अब्दुल रहीम खानखाना - कवि
8. फैजी - कवि व दार्शनिक
9. मुल्ला दोप्याजा - मसखरा, मनोरंजनकर्ता।

I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
pragyaab.com

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