
पुण्यकर्म क्या है? इनकी परिभाषा | पुण्यकर्म कहाँ आड़े आते हैं? ― BK आस्था दीदी | What is virtuous action? Its definition
मानव के द्वारा किये जाने वाले ऐसे कर्म जिसमें प्राणी व प्रकृति के कल्याण के भाव निहित हों, जो श्रेष्ठ हों जिससे आत्मशक्ति में वृद्धि हो, जिससे आंतरिक सुख की अनुभूति हो, सम्मुख खड़े व्यक्ति की ओर से उस कार्य के प्रति आशीष मिले, ऐसे सभी कार्य पुण्य कर्म कहलाते हैं।
प्यासे को पानी, भूखे को भोजन, जो दुखी हों उन्हें खुश कर देना भी पुण्य कर्म की श्रेणी में आता है।
सकारात्मक बातें करके थके हुए, हारे हुए, उदास लोगों का सहयोग करना जिससे वे आत्मसुख को प्राप्त कर प्रसन्न हो जाएँ तो हमारे ऐसे कर्मों को पुण्य कर्म कहा जाता है।
पुण्य कर्मों की परिभाषा कुछ इस तरह दे सकते हैं― "भूतकाल में किए गए ऐसे कर्म जिसके भविष्य में श्रेष्ठ परिणाम प्राप्त हों पुण्य कर्म कहलाते हैं।" पाप और पुण्य दो चीजें हैं― पाप शुरू में या कहे वर्तमान में हँसाता है अर्थात सुख प्रदान करता है। पाप कर्म करते समय व्यक्ति को इस बात का भान नहीं होता कि इससे दूसरों को पीड़ा हो रही है। परंतु भविष्य में इन्हीं कर्मों की वजह से रोना पड़ता है अर्थात अनेकानेक तकलीफों का परेशानियों का सामना करना है। इसके विपरीत पुण्य कर्म जिन्हें करने से हमें वर्तमान में ज्यादा कुछ सुखकारक फल की प्राप्ति या खुशी प्राप्त नहीं होती बल्कि थोड़े कष्टों का सामना करना पड़ सकता है किंतु बाद में उसका परिणाम हमें हमेशा के लिए सुखद होता है। सदैव खुशियाँ प्रदान करता है।
कर्ता के द्वारा किया गया ऐसा कर्म जिसमें स्वयं कर्ता को तो लाभ प्राप्त हो किंतु सामने वाले अन्य व्यक्ति का नुकसान हो या दूसरे शब्दों में कहा जाये कर्ता के कृत्यों से उसे स्वयं खुशी मिले परन्तु अन्य व्यक्ति को उस से दुख प्राप्त हो रहा हो तब ऐसा कर्म पाप की श्रेणी में आयेगा। अर्थात कर्ता का यदि कर्म मानव धर्म के विरुद्ध है तो सच में वह पाप कर्म ही है।
पुण्य कर्म कहाँ आड़े आते हैं? यदि हम जब कभी किसी बड़ी विकट परिस्थिति में फँसने के बावजूद उस परिस्थिति से चुटकियों में निकल आते हैं जहाँ से निकलना असंभव था। या यूँ कहें हम एक बड़े संकट में थे जो पल में टल गया जबकि हमें तनिक भी विश्वास न था इस संकट से निकल पाएंगे और फिर भी हम आसानी से निकल जाते हैं तो लोगों के द्वारा यही कहा जाता है कि तुम्हारे कोई पुण्य कर्म रहे होंगे जो कि तुम बच गए या कहा जाता है तुम्हारा भाग्य अच्छा था जिसकी वजह से इतनी बड़ी अनहोनी में भी तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ पाया। निश्चित ही ऐसी ही घोर विपत्तियों में पुण्य कर्म आड़े आते हैं।
दान करना, औरों की मदद करना ये हमारे जीवन का एक अंग होना चाहिए। ये आगामी भविष्य के लिए बड़े फलदाई होते हैं जो आत्मा को इहलोक और परलोक दोनों में सुख प्रदान करते हैं। कर्म का सिद्धांत कुछ इस तरह है―
जिस तरह एक गेंद को दिवार पर मारने से वह हमारी ओर ही वापिस आती है ठीक उसी तरह हम जो भी कर्म करते हैं वे कर्म फल रूप में हम तक अवश्य वापिस आते हैं। अच्छा करने पर वे सद्कर्म हमारे सहायक बनते हैं और गलत कृने पर वे दुष्कर्म हमारे दुःख का कारक बनते हैं। कहा गया है― "कर भला तो हो भला कर बुरा तो हो बुरा।"
BK आस्था दीदी
आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।
(I hope the above information will be useful and important. )
Thank you.
R. F. Tembhre
(Teacher)
pragyaab.com
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