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गुरू पूर्णिमा का महत्व एवं पारंपरिक गुरू-शिष्य संस्कृति | प्राचीन काल में प्रचलित गुरूकुल व्यवस्था एवं उसका भारतीय संस्कृति पर प्रभाव

मध्यप्रदेश शासन स्कूल शिक्षा विभाग का आदेश

मध्यप्रदेश शासन स्कूल शिक्षा विभाग मंत्रालय वल्लभ भवन, भोपाल के आदेश क्रमांक / 1166/2152561/2024/20-2/ संशोधित निर्देश के अनुसार दिनांक 21 जुलाई 2024 "गुरु पूर्णिमा" के अवसर पर प्रदेश के विद्यालयों में 'गुरू पूर्णिमा' कार्यक्रम आयोजित किया जाना है।
राज्य शासन द्वारा निर्णय लिया गया है कि प्रदेश के समस्त शासकीय/अशासकीय विद्यालयों में "गुरू पूर्णिमा" के अवसर पर दिनांक 20 एवं 21 जुलाई, 2024 को निम्नानुसार दो दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किए जाए ऐसा पत्र में कहा गया है―

1. विद्यालयों में गुरू पूर्णिमा उत्सव में आयोजित किए जाने वाले कार्यक्रम
(अ) 20.07.2024 को
(i) प्रार्थना सभा के पश्चात प्रार्थना स्थल पर शिक्षकों द्वारा 'गुरू पूर्णिमा के महत्व' एवं पारंपरिक गुरू-शिष्य संस्कृति पर प्रकाश।
(ii) प्राचीन काल में प्रचलित गुरूकुल व्यवस्था एवं उसका भारतीय संस्कृति पर प्रभाव पर निबंध लेखन।

(ब) 21.07.2024 को (i) विद्यालयों में वीणा वादिनी माँ सरस्वती वंदना, गुरु वंदना एवं दीप प्रज्जवलन एवं माल्यार्पण।
(ii) गुरूजनों एवं शिक्षकों का सम्मान।
(iii) शिक्षकों और विद्यार्थियों द्वारा गुरू संस्मरण पर संभाषण।

2. प्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग में पूर्व से प्रचलित "कुलपति" नाम को परिवर्तित कर "कुलगुरू" रखा गया है. इसकी जानकारी दी जाए।

3. विद्यालयों में आयोजित किए जाने वाले गुरू पूर्णिमा उत्सव कार्यक्रम में सेवानिवृत्त शिक्षकों, गुरूजन / शिक्षाविदों को आमंत्रित कर समारोह पूर्वक सम्मानित किया जाए।

4. कार्यक्रम में जिले के प्रबुद्ध नागरिक गणमान्य व्यक्तिगण एवं गुरूजनों को आमंत्रित किया जाए।
उपरोक्तानुसार दो दिवसीय कार्यक्रम सम्पन्न कर प्रतिवेदन उपलब्ध कराना सुनिश्चित करें।

गुरू पूर्णिमा से संबंधित जानकारी
गुरू पूर्णिमा का महत्व

भारत के महानतम पर्वों में से यह गुरु पूर्णिमा पर्व सबसे महत्वपूर्ण पर्व है। यह गुरूओं के लिए समर्पित एक महापर्व है। यह शुभ दिन गुरु की पूजा और उनका सम्मान करने के लिए समर्पित है, जो ज्ञान और आत्मज्ञान के मार्ग पर व्यक्तियों का मार्गदर्शन करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारत में प्राचीन काल से ही गुरुओं की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही है, चाहे प्राचीन कालीन सभ्यता हो या आधुनिक दौर, समाज के निर्माण में गुरुओं की भूमिका का कोई मूल्य नहीं है।
हम सब मनुष्यों के जीवन निर्माण में गुरुओं की अहम भूमिका होती है इसलिए अपने गुरुओं के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करने का दिवस है। गुरु पूर्णिमा भारत में अपने आध्यात्मिक एवं अकादमिक गुरुओं के सम्मान में, उनके वंदन और उनके प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए मनाया जाने वाला पर्व है। यह पर्व जीवन में गुरू के महत्व को बताता है। इस दिन गुरूजनों का आभार व्यक्त कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना एक शिष्य के लिए गौरव की बात होती है।

कब मनाया जाता है? ― गुरु पूर्णिमा भारतीय संस्कृति की अद्भुत गौरवशाली परंपरा है। यह पर्व गुरु के प्रति सम्मान और आभार प्रकट करने के लिए हर वर्ष आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है।

‘गुरु’ शब्द का अर्थ― ‘गुरु’ शब्द का अर्थ होता है - अज्ञान के अंधकार को दूर करने वाला। 'गु' का आशय अंधकार एवं 'रू' का आशय प्रकाश अर्थात अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला। गुरु अपने ज्ञान से शिष्य को सही मार्ग पर ले जाते हैं और उनकी उन्नति में सहायक बनते हैं। इस लोक में सामान्यतः दो तरह के गुरु होते हैं। प्रथम तो शिक्षा गुरु और दूसरे दीक्षा गुरु। शिक्षा गुरु बालक को शिक्षित करते हैं और दीक्षा गुरु शिष्य के अंदर संचित विकारों को निकाल कर उसके जीवन को सत्यमार्ग की ओर अग्रसित करते हैं।

गुरुकुल परम्परा

प्राचीन काल में आज की तरह विद्यालय नहीं हुआ करते थे बल्कि शिष्य अपने गुरु के आश्रम में जाकर, वहीं रहकर गुरू की सेवा करते हुए नि:शुल्क शिक्षा ग्रहण करते थे। जब शिक्षा पूरी हो जाती थी तब शिष्य (विद्यार्थी) अपने गुरु की श्रद्धाभाव से प्रेरित होकर गुरु पूजा किया करते थे और उन्हें यथाशक्ति दक्षिणा अर्पित करते थे। गुरू शिष्य संबंधों, शिक्षार्जन, गुरू आज्ञा जैसे कई क्षेत्रों के प्रसंग हमें आज भी पढ़ने को मिलते हैं। यथा―
एकलव्य की गुरू भक्ति― गुरु द्रोणाचार्य को एकलव्य के द्वारा गुरु दक्षिणा के रूप में अपना अंगूठा काटकर दे देना।
आरूणि की गुरू भक्ति― गुरू आज्ञा से खेत का पानी न बहे इस हेतु मेढ़ में स्वयं लेट जाना।
भगवान राम, भगवान कृष्ण की गुरू सेवा― ऐसे अनेक उदाहरण देखने को मिलते हैं जो गुरु शिष्य के आत्मिक संबंधों एवं गुरु सेवा की प्रेरणा देते हैं।
गुरु के बिना ज्ञान की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। गुरु की कृपा से सब संभव हो जाता है। गुरु व्यक्ति को किसी भी विपरित परिस्थितियों से बाहर निकाल सकते हैं।

पारंपरिक गुरू-शिष्य संस्कृति

भारतीय संस्कृति में गुरु देवता को तुल्य माना गया है। गुरु को हमेशा से ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान पूज्य माना गया है। वेद, उपनिषद और पुराणों का प्रणयन करने वाले वेद व्यास जी को समस्त मानव जाति का गुरु माना जाता है।
गुरु अपने शिष्य का सृजन करते हुए उन्हें सही राह दिखाता है। इसलिए गुरु पूर्णिमा के दिन लोग अपने ब्रह्मलीन गुरु के चरण एवं चरण पादुका की पूजा अर्चना करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन गुरुओं का आर्शीवाद लेने से जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। शास्त्रों में गुरु को परम पूजनीय माना गया है।
जीवन में गुरु का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान होता है। धर्म शास्त्रों में भी कहा गया है कि बिना गुरु के ईश्वर नहीं मिलता। इसलिए जीवन में गुरु का होना अत्यंत आवश्यक है।

महर्षि वेदव्यास जयंती

पौराणिक मान्यता के अनुसार गुरु पूर्णिमा को महाभारत के रचयिता वेद व्यास का जन्म दिवस माना जाता है। उनके सम्मान में इस दिन को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। शास्त्रों में यह भी कहा जाता है कि गुरु पूर्णिमा के दिन ही महर्षि वेदव्यास ने चारों वेद की रचना की थी और इसी कारण से उनका नाम वेद व्यास पड़ा।
इस तरह गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व महर्षि वेदव्यास की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है और इसे व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।

वेद व्यास के शिष्यों ने शुरु की थी यह परंपरा ― ऐसा माना जाता है कि इसी दिन वेदव्यास के अनेक शिष्यों में से पाँच शिष्यों ने गुरु पूजा की परंपरा का शुभारंभ किया था। पुष्पमंडप में उच्चासन पर गुरु यानी व्यास जी को बैठाकर पुष्प मालाएं अर्पित की थी और उनकी आरती कर अपने ग्रंथ अर्पित किए थे। जिस कारण हर साल इस दिन लोग व्यास जी के चित्र का पूजन और उनके द्वारा रचित ग्रंथों का अध्ययन करते हैं।

गुरु पूर्णिमा के दिन इन बातों का रखें ध्यान

गुरु पूर्णिमा के दिन शिष्यों/विद्यार्थियों को निम्न बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए―
1. गुरु पूर्णिमा के दिन अपने गुरु को उपहार देकर उनका आशीर्वाद लेना चाहिए। वैसे तो इस दिन गुरु दक्षिणा देने का भी विधान है।
2. शिष्यों को अपने शिक्षकों, गुरुओं को उनके अमूल्य मार्गदर्शन के लिए उनका आभार व्यक्त करना चाहिए।
3. प्रत्येक शिष्य (विद्यार्थी) को अपने गुरुओं से आशीर्वाद लेना चाहिए।
4. व्यक्ति को अपने गुरू की याद एवं उपकार हेतु उपवास व संयम का पालन करना चाहिए।
5. सत्संग, प्रवचन या किसी आध्यात्मिक सभा में शामिल होना चाहिए।
6. इस दिन भूलकर भी अपने गुरुओं का अनादर न करना चाहिए।
7. गुरु के समक्ष अपने ज्ञान और अहंकार को प्रकट करने से बचना चाहिए।
8. अपने गुरुओं और पूर्वजों द्वारा दी गई शिक्षाओं और ज्ञान को याद रखें और उनका सम्मान करना चाहिए।
9. यदि आपके जीवन में शिक्षकों के अलावा आपके माता-पिता, आपके जीवनसाथी या आपके दोस्तों ने भी आपको कोई अच्छी सीख दी है, तो उनको भी आभार व्यक्त करें। साथ ही उन्हें सम्मान प्रदान करें।
10. निम्न गुरु पूजन मंत्र से गुरू का सत्कार करना चाहिए― ॐ गुं गुरुभ्यो नम:।
गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर:।
गुरुर्साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नम:।।

ॐ परमतत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नम:।
ॐ वेदाहि गुरु देवाय विद्महे
परम गुरुवे धीमहि तन्नौ: गुरु: प्रचोदयात्।

गुरु को श्रेष्ठ दर्जा ― कबीरदास जी के दोहे

गुरु को श्रेष्ठ दर्जा बताते हुए कबीरदास जी ने अपने दोहे में गुरु की महिमा का वर्णन करते हैं―
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पांय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय।।

भावार्थ― गुरु और गोविंद (भगवान) एक साथ खड़े हों तो किसे प्रणाम करना चाहिए- गुरु को या गोविंद को?
अगली पंक्ति में उसका उत्तर देते हुए कहते हैं कि ऐसी स्थिति हो तो गुरु के चरणों में प्रणाम करना चाहिए, क्योंकि उनके ज्ञान से ही आपको गोविंद के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है।

अगले दोहे में कबीरदास ने गुरु की महिमा समझाया है। वे कहते हैं―
गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिलै न मोष।
गुरु बिन लखै न सत्य को, गुरु बिन मिटै न दोष।।

भावार्थ― कबीरदास जी कहते हैं– आम लोगों से कहा है कि गुरु के बिना ज्ञान का मिलना असंभव है। जब तक गुरु की कृपा प्राप्त नहीं होती, तब तक कोई भी मनुष्य अज्ञान रूपी अधंकार में भटकता हुआ माया मोह के बंधनों में बंधा रहता है, उसे मोक्ष (मोष) नहीं मिलता। गुरु के बिना उसे सत्य और असत्य के भेद का पता नहीं चलता, उचित और अनुचित का ज्ञान नहीं होता।

शास्त्रों में गुरु की महिमा

गुरु की महिमा अनंत और अपरंपार है। वे ज्ञान के प्रकाश स्तंभ होते हैं जो अज्ञानता के अंधकार को दूर करते हैं। भारतीय संस्कृति में गुरु को सर्वोच्च स्थान दिया गया है और उनके बिना ज्ञान की प्राप्ति असंभव मानी गई है। वेदों में गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश का स्वरूप बताया गया है। जैसा कि उपर श्लोक वर्णित है―
''गुरू ब्रह्मा गुरू विष्णु, गुरु देवो महेश्वरः।
गुरु साक्षात पारब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः'।।

अर्थात गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है। गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूँ।

आध्यात्मिक स्तर पर गुरु-शिष्य के सम्बन्धों में तो अनुशासन और भी गहरा एवं अनिवार्य हो जाता है। गुरु शिष्य को अपने पुण्य, प्राण और तप का एक अंश देता है। वह अंश पाने की पात्रता, धारण करने की सामर्थ्य और विकास एवं उपयोग की कला एक सुनिश्चित अनुशासन के अन्तर्गत ही सम्भव है। वह तभी निभता है, जब शिष्य में गुरु के प्रति गहन श्रद्धा विश्वास तथा गुरु में शिष्य वर्ग की प्रगति के लिए स्नेह भरी लगन जैसे दिव्य भाव हों। गुरु पूर्णिमा पर्व गुरु- शिष्य के बीच ऐसे ही पवित्र, गूढ़ अन्तरङ्ग सूत्रों की स्थापना और उन्हें दृढ़ करने के लिए आता है।

गुरू पूर्णिमा से जुड़े तथ्य

1. पौराणिक कथाओं के मुताबिक जगत गुरु भगवान शिव ने इसी दिन से सप्तऋषियों को योग सिखाना शुरू किया था।
2. आधुनिक दौर में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपने अध्यात्मिक गुरु श्रीमद राजचंद्र को श्रद्धांजलि देने के लिए भी गुरु पूर्णिमा का दिन ही चुना था।
3. गुरु पूर्णिमा का त्योहार भारत ही नहीं बल्कि नेपाल और भूटान में भी बड़े पैमाने पर मनाया जाता है।
4. नेपाल में गुरु पूर्णिमा को शिक्षक दिवस के तौर पर मनाया जाता है, हालांकि भारत में शिक्षक दिवस गुरु पूर्णिमा के दिन नहीं बल्कि प्रत्येक वर्ष पांच सितंबर को मनाया जाता है।
5. बौद्ध धर्म को मानने वाले गुरु पूर्णिमा भगवान बुद्ध की याद में मनाते हैं। इनकी मान्यता के मुताबिक भगवान बुद्ध ने इसी दिन उत्तर प्रदेश के सारनाथ में अपना पहला उपदेश दिया था। मान्यता है कि इसके बाद ही बौद्ध धर्म की शुरुआत हुई थी।

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I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
pragyaab.com

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