गाँधी जयंती के अवसर पर दिए जा सकने वाले वक्तव्य / भाषण | गांधी जी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व
सम्माननीय महानुभाव,
गाँधी जयंती अर्थात गाँधी जी के प्रकटोत्सव के अवसर पर आप सभी का हार्दिक स्वागत वंदन है।
हम प्रतिवर्ष गाँधी जी की जयंती को हर्षोल्लास से मनाते आ रहे हैं। अब यह हमारी परंपरा में आ गया है। जिस प्रकार हमारे अन्य धार्मिक पर्वों को रीति रिवाज एवं संस्कार के अनुसार मानते हैं उसी तरह गाँधी जी के जन्मोत्सव को अब नियमित परंपरा अनुसार मनाया जा रहा है।
गाँधी जयंती हमारे लिए महत्वपूर्ण क्यों?
यदि हम गाँधी जी के कृतित्व और व्यक्तित्व पर नजर डालें तो निश्चित ही हर भारतीय उनके सम्मुख नतमस्तक होता है क्योंकि उन्होंने हमारे देश की आजादी में अपनी महती भूमिका तो निभाई साथ में समाज में ऐसे संस्कार डालने का प्रयास किया जिससे भारत में रामराज्य स्थापित हो सके।
उन्हें महात्मा के नाम से जाना जाता है। महात्मा का आशय महान आत्मा से है अर्थात ऐसा व्यक्तित्व जो अपने कर्म, वचन एवं धर्म से पूरे जीवन महानतापूर्ण कार्य किया हो जो सामान्य से हटकर उच्चतम दर्जे की हों।
महात्मा शब्द का प्रयोग हमारे उन ऋषि-मुनियों और साधु-संतों के लिए किया जाता है जिन्होंने अपने तपोबल से पुण्य अर्जन करते हुए शक्तियाँ प्राप्त की हों। गाँधी जी को भी महात्मा इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने देश के लिए ऐसे महान कार्य किए हैं जो उन्हें ऊँचाईयों पर स्थापित करते हैं।
गाँधी जी का जन्म और बचपन
गाँधी जी का नाम मोहनदास था। वे अपने नाम के साथ अपने पिता का नाम भी जोड़ा करते थे इस तरह पूरा नाम मोहनदास करमचंद गाँधी था। इनका जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को भारत के पश्चिमी तटीय वर्तमान गुजरात राज्य के शहर पोरबंदर में एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था।
उनका जन्म एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। गाँधी जी की माँ का नाम पुतलीबाई था जो एक सात्विक चरित्र, कोमल और ईश्वर की भक्तिन थी जिनकी छाप गाँधी जी के जीवन में देखी जा सकती है। उनके पिता का नाम करमचंद गाँधी था जो राजकोट में दीवान थे। गाँधी जी की प्राथमिक शिक्षा राजकोट में हुई थी। उन्होंने हाई स्कूल से मैट्रिक की शिक्षा प्राप्त करने के बाद सामलदास कॉलेज, भावनगर में दाखिला लिया। महात्मा गाँधी का विवाह मात्र 13 साल की उम्र में कस्तूरबा नामक सात्विक विचारों वाली महिला के साथ हुआ था।
विवाह के दो साल बाद गाँधी जी के पिता का निधन 1885 में हो गया।
कठिन परिस्थितियों से गाँधी जी ने डटकर मुकाबला किया और 1887 में अहमदाबाद से हाई स्कूल की डिग्री प्राप्त की। तथा कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद साल 1888 में उन्होंने लंदन जाकर वकालत की पढ़ाई करने का संकल्प किया।
गाँधी जी हुए आहत
1891 में वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद गाँधी जी भारत वापस लौटे किंतु अपनी नौकरी के कारण में उन्हें वापस दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। मात्र 23 साल की उम्र में वे दक्षिण अफ्रीका पहुँचे। वहाँ सप्ताह भर डरबन से प्रोटीरिया की यात्रा करते रहे इसी दरम्यान अन्यायपूर्ण नस्लीय भेद के चलते अंग्रेजों द्वारा धक्के मारकर बेईज्जत कर उन्हें ट्रेन से बाहर कर दिया गया था जबकि उनके पास फर्स्ट क्लास का टिकट था। इस घटना ने गाँधी जी को बुरी तरह आहत किया। यहीं से महात्मा गाँधी अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ होने हेतु अग्रसर हुए।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में गांधी जी का योगदान
जब गाँधी जी 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे तब उन्होंने अपने राजनीतिक गुरु गोपालकृष्ण गोखले के साथ इंडियन नेशनल कांग्रेस को ज्वॉइन कर लिया। इस दौरान भारत परतंत्रता की जंजीरों से जकड़ा हुआ था और किसी एक ऐसे व्यक्ति की नितांत आवश्यकता थी जो देश की स्वतंत्रता हेतु संघर्ष हेतु जनमानस को संगठित कर सके और स्वतंत्रता आंदोलन को एक नई दिशा दे सके और गाँधी जी ही वे व्यक्तित्व थे जो भारत को इस दिशा में ले जा सकते थे।
गाँधी जी ने देश की स्थिति को समझने के लिए भारत भ्रमण किया। उन्होंने असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन का भी नेतृत्व किया था। देश की स्वतंत्रता में गाँधी जी के योगदान को शब्दों में नहीं मापना संभव नहीं है। उन्होंने देश के क्रांतिकारियों, स्वतंत्रता सेनानियों के साथ अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने में अपनी महती भूमिका निभाई।
गाँधी जी की अहम नीति
गाँधी जी की सत्य और अहिंसा की हम नीति थी। उनकी इस विचारधारा से मार्टिन लूथर किंग और नेलसन मंडेला जैसे विश्व पटल के नेता भी काफी प्रभावित थे। उनके सत्य अहिंसा की नीति की जड़ें इतनी गहरी थी कि जन-जन यहाँ तक बच्चा-बच्चा तक उनके एक इशारे पर कुछ भी करने को तैयार था। इसी कारण अंग्रेजी हुकूमत को उनके सम्मुख नतमस्तक होना ही पड़ा और अंत में देश छोड़कर जाना पड़ा।
गाँधी जयंती मनाने की प्रासंगिकता
जिस प्रकार हमारे धार्मिक पर्व-त्योहार हमारी धार्मिक मान्यताओं, परंपराओं को अगली पीढ़ी तक हस्तांतरित कर पुष्ट करते हैं इसी तरह से गाँधी जी की जयंती मनाने से उनके व्यक्तिगत एवं कृतित्व को याद किया जाता है जिससे हमारी भावी पीढ़ी जान सके कि उनके पूर्व का इतिहास कितना महान था। कितने महान लोगों ने इस भारत की पावन भूमि पर जन्म लिया है। गाँधी जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के मुख्य अंश सत्य अहिंसा के मार्ग पर चलकर हमारे बच्चे हमारी पीढ़ियाँ देश को सच्चे अर्थों में आगे ले जाने में मदद कर सके।
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I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
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