भारत और विश्व | India and world
इतिहास के अध्ययन को तीन भागों में बाँटा जाता है-
1. प्राचीनकाल
2. मध्यकाल
3. आधुनिक काल।
विभाजन क्यों और कैसे किया गया-
इस बात को जानना बहुत आवश्यक है। किसी देश या स्थान विशेष में मानव सभ्यता के विकास की जो प्रक्रिया चलती रहती है, उसमें जब आर्थिक, राजनीतिक, प्रशासनिक और सामाजिक क्षेत्रों में ऐसे परिवर्तन आते हैं जो पूर्व की स्थिति को बदल देते हैं, तब एक नये काल का आरंभ माना जाता है। संक्षेप में कहें तो इतिहास का तीन कालों में किया गया विभाजन मानव की प्रगति व परिवर्तन की सीढ़ियाँ या सोपान हैं। महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि विश्व के सभी स्थानों में यह परिवर्तन एक ही समय हुए हों, यह कहा नहीं जा सकता है। भारत में मध्यकाल का आरंभ सामान्यतः आठवीं शताब्दी से माना जाता है, जबकि यूरोप के देशों में मध्यकाल का आरंभ पाँचवी शताब्दी से माना गया है।
भारत के मध्यकाल को भी पुनः दो भागों में विभाजित किया जाता है-
1. पूर्व मध्यकाल (आठवीं से बारहवीं शताब्दी तक)
2. उत्तर मध्यकाल (तेरहवीं से अठारहवीं शताब्दी तक)।
मध्यकालीन भारत का इतिहास प्राचीन भारत के इतिहास से अनेक प्रकार से भिन्न है। मध्यकाल के आरंभ में भारतीयों का संपर्क एक अन्य धार्मिक मत के अनुयायियों से हुआ। इस संपर्क के परिणामस्वरूप समाज में कुछ परिवर्तन आए। वर्तमान काल में बोली जाने वाली कुछ भाषाओं का विकास इसी काल में हुआ और भित्र प्रकार के वस्त्र तथा खाद्य पदार्थ लोकप्रिय हुए। इस काल के संबंध में हमारा ज्ञान अधिक है क्योंकि ऐसे अनेक साधन अथवा स्रोत उपलब्ध हैं, जो हमें तत्कालीन इतिहास की स्पष्ट जानकारी देते हैं।
मध्यकालीन इतिहास के स्रोत
आपको स्मरण होगा कि प्राचीनकाल का इतिहास जानने के दो मुख्य स्रोत - साहित्यिक और पुरातात्विक है। ठीक ऐसे ही साधन हमें मध्यकाल का इतिहास जानने में सहायता देते हैं। पूर्व मध्यकाल के साहित्यिक साधनों के रूप में ताइपत्रों और भोजपत्रों पर लिखा गया विवरण तथा पुरातात्विक साधनों में अभिलेखों अथवा ताम्रपत्रों पर उत्कीर्ण किए गए लेखों से प्राप्त होता है। 13वीं शताब्दी से कागज का उपयोग शुरु हो गया और उन पर लिखी जानकारी जैसे तत्कालीन शासकों का जीवनवृत्त, उनके विभिन्न कार्य, राज्य विस्तार आदि प्रामाणिक स्रोतों के रूप में प्रयुक्त किए जाते हैं। इस काल में तुर्क आक्रमणकारियों के साथ कुछ विदेशी लेखक भी भारत में आए, जिन्होंने सुल्तानों और मुगल साम्राज्य के विषय में विवरण लिखा। इनमें इब्नबतूता मार्केर्कोपोलो अल्चरुनी, बर्नी निकोलोकोटी, अब्दुलरज्जाक, बर्नियर तथा टैवर्नियर प्रमुख हैं।
पन्द्रहवीं से अठारहवी शताब्दी तक भारत के अधिकांश भाग पर मुगलों का शासन रहा। कुछ मुगल शासकों ने अपने जीवन, शासन और घटनाओं के विषय में आत्मकथाएँ लिखीं। कुछ अन्य लेखकों ने अपने शासकों के विषय में लिखा है। इनमें बाबरनामा हुमायूँनामा अकबरनामा, वज़ुक-ए-जहाँगीरी, बादशाहनामा इत्यादि प्रमुख ग्रन्थ है। तत्कालीन शाही फरमान तथा शाही पत्राचार भी मध्यकाल के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्रोत है।
इसी प्रकार से स्थानीय शासकों के दरबारी लेखकों और अन्य साहित्यकारों ने कुछ ग्रन्थ लिखे जो तत्कालीन स्थानीय सामाजिक एवं राजनैतिक जीवन के विभिन्न पक्षों की जानकारी देते हैं। इन ग्रन्थों में कथा सरित्सागर, वृहत्कथा कोष, पृथ्वीराजरासो, राजतरंगिणी आदि प्रमुख हैं।साहित्य के अतिरिक्त संपूर्ण देश के विभिन्न भागों में मंदिर, मस्जिद, मकबरे, मीनारें और भव्य भवन बनाए गए थे, जो मध्यकाल के पुरातात्विक साधनों के रूप में उस काल की कला तथा स्थापत्य की प्रगति के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं। सिक्के, चित्र और अभिलेख भी इतिहास के महत्वपूर्ण स्रोत है।
1. इतिहास का काल विभाजन आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक स्थितियों में होने वाले आमूल परिवर्तनों के आधार पर किया जाता है।
2. भारत के मध्यकाल का आरंभ आठवी शताब्दी से माना जाता है।
3. मध्यकाल के इतिहास को जानने के लिए प्राचीन काल की तुलना में अधिक और प्रामाणिक स्रोत उपलब्ध हैं।
पूर्व मध्यकाल के आरंभ में भारत की राजनैतिक स्थिति
पूर्व मध्यकाल के आरंभ में उत्तर भारत में अनेक छोटे-छोटे राज्य थे, जिनमें राज्य विस्तार के लिए परस्पर संघ चलते रहते थे। दक्षिण भारत में भी अनेक राज्यों का अस्तित्वमा जिनमें सबसे शक्तिशाली चोल राज्य था। आरंभ में इनका राज्य कोरोमण्डल और मद्रास (चैन्नई) तक था। बाद में नवीं शताब्दी में बोल नरेशों ने पाठ्य राजाओं से तंजीर जीतकर उसे अपनी राजधानी बनाया। चोल राजाओं ने व्यवस्थित शासन प्रबंध के लिए साम्राज्य को विभिन्न इकाइयों में विभाजित किया, आर्थिक व्यवस्था सुदद की और साहित्य तथा स्थापत्य कला को संरक्षण दिया। उनकी सामुद्रिक श बहुत बढ़ी हुई थी। चोल नरेश राजेन्द्र प्रथम ने ई सन् 1025 में मलाया तथा सुमात्रा होपों पर विजय प्राप्त की। यह अभियान किसी भारतीय शासक द्वारा पहला समुद्र पार अभियान था(बोल राज्य के व्यापारिक संबंध चीन तथा दक्षिण एशिया के अन्य देशों से थे।
यूरोप में मध्यकाल
पाँचवी शताब्दी में यूरोप के शक्तिशाली रोमन साम्राज्य का पतन आरंभ हुआ। अनेक स्थानों पर छोटी-छोटी प्रादेशिक सत्ताओं का उदय हुआ। ये छोटे-छोटे शासक अपनी सत्ता स्थिर रखने के लिए जिन लोगों से सैनिक सहायता लेते थे, उन्हें वेतन के बदले जमीन का एक टुकड़ा दे देते थे। लेटिन भाषा में जमीन के ऐसे टुकड़े को फ्यूडम (Feudam) कहा जाता था। ऐसी जमीन के प्राप्तकर्ता फ्यूडल्स (सामत) कहलाने लगे और एक नवीन व्यवस्था फ्यूडलिज्म (Feudalism) अथवा सामतवाद, अस्तित्व में आई सात लोग अपने भू-प्रदेश के सुदृढ़ सुरक्षा प्रबंध रखते थे। वे छोटे-छोटे किलों में रहते थे, जिन्हें कैसल (गढी) कहा जाता था। सामतों के पू-प्रदेशों के किसानों और श्रमिकों पर स्वामी की निरंकुश सत्ता रहती थी। सामत विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत करते थे और किसानों पर अत्याचार करते थे, गरीब किसान वशानुगत दास बने रहते थे। इन्हें सर्फ (भूदास) कहा जाता था। तत्कालीन यूरोपीय समाज में भू-दासों की संख्या बहुत अधिक थी। वे सामतों द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों के विरुद्ध आवाज नहीं उठा सकते थे और दयनीय जीवन जीने के लिए विवश थे।
1. यूरोप के प्रारंभिक मध्यकाल की उल्लेखनीय विशेषता थी सामंतवाद अथवा फ्यूडलिज्म का विकास।
2. फ्यूडलिज्म के विकास का परिणाम हुआ भू-दास अथवा सर्फ वर्ग का उदय। तत्कालीन समाज का यह अघंकारपूर्ण पक्ष था।
अरबों का उदय
पश्चिम एशिया के अरब क्षेत्र के लोग अनेक छोटे-छोटे कबीलों में बँटे हुए थे। कोई केन्द्रीय सत्ता नहीं थी, इस कारण इन कबीलों में निरंतर संघर्ष चलते रहते थे। सातवीं शताब्दी में पैगम्बर मोहम्मद ने नवीन धर्म इस्लाम का उपदेश दिया तथा अरब जातियों को संगठित किया। शीघ्र ही उनका राजनैतिक समूह बन गया। उन्होंने पश्चिम एशिया एवं अफ्रीका के अनेक भागों जैसे- जॉर्डन, सीरिया, इराक, तुर्की, फारस और मिस्र आदि को जीत लिया। आगे चलकर उन्होंने उत्तरी अफ्रीका के कुछ क्षेत्र जीत लिए और स्पेन तक पहुँच गए। भारत की उत्तर-पश्चिमी सीमा तक उनका साम्राज्य फैल गया।
अरब लोग कुशल व्यापारी थे। राजनैतिक सत्ता स्थापित करने के साथ-साथ वे विश्व के विभिन्न भागो- भारत, चीन, यूरोप तथा पश्चिम अफ्रीका से व्यापार करने लगे। व्यापार से धनवान बने अरबों ने अपने धन का उपयोग कला, विज्ञान और साहित्य को प्रोत्साहन देने के लिए किया व्यापार के कारण जिन देशों के साथ उनका संपर्क बढ़ा, वहाँ के ज्ञान को अरबों ने एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाया। प्राचीन ग्रीक और प्राचीन भारतीय वैज्ञानिक ग्रंथों का अरबी में अनुवाद कराया गया। उल्लेखनीय है कि खगोलशास्त्र और गणित के विषय का उच्चकोटि का भारतीय ज्ञान अरबों के माध्यम से ही पश्चिमी देशों तक पहुँचा। चीन के नवीन आविष्कार जैसे- बारूद, कागज और कुतुबनुम (कंपास) का ज्ञान अरबों ने ही यूरोप के देशों में पहुँचाया था।
व्यापार के माध्यम से भारत का अरबों से निरंतर संपर्क बना रहा। यहाँ की संपन्नता और उच्च संस्कृति उत्तर-पश्चिम के शासकों के लिए आकर्षण का केन्द्र थी। सातवीं शताब्दी में अरब से भारत पर आक्रमण शुरु हुए। प्रारंभ में केवल धन-संपत्ति को लूटने का उद्देश्य लेकर आने वाले आक्रमणकारी कालान्तर में भारत में राज्य स्थापना के लिए प्रयत्न करने लगे। तुर्कों को इस काम में सफलता प्राप्त हुई और इसके साथ ही भारत के इतिहास का मध्यकाल आरंभ हुआ।
1. सातवीं शताब्दी में अरब में इस्लाम धर्म का उदय हुआ।
2. परस्पर संघर्षरत रहने वाले अरब के कबीले इस्लाम के प्रभाव से संगठित हुए और परिय उन्होंने विस्तृत साम्राज्य स्थापित किया।
3. अरब व्यापारियों के माध्यम से पूर्व के देशों का ज्ञान पश्चिम जगत में
4. भारतीय धन-संपदा के आकर्षण और इस्लाम के प्रचार के उद्देश्य से पश्चिम की ओर से भारत पर अरबों के आक्रमण आरंभ हुए।
5. तुकों ने भारत में राज्य स्थापित करने में सफलता प्राप्त की।
I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
pragyaab.com
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