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केन्द्र की सरकार | central government

भारत राज्यों का संघ है। यहाँ केन्द्र एवं राज्यों की अलग-अलग सरकारें हैं। केन्द्र सरकार के तीन अंग है-
(1) व्यवस्थापिका (संसद)
(2) कार्यपालिका (संघीय मंत्रिपरिषद्)
(3) न्यायपालिका (सर्वोच्च न्यायालय)

व्यवस्थापिका संसद

भारत में संसदीय लोकतंत्र है। केन्द्रीय व्यवस्थापिका को संसद कहते हैं। संसद ही सारे देश के लिए कानून बनाती है। संसद के दो सदन हैं।
1. लोकसभा
2. राज्यसभा।

लोकसभा

भारतीय संसद के प्रथम वा निचले सदन को लोकसभा कहते हैं। भारतीय संविधान द्वारा लोकसभा का सदस्य बनने के लिए कुछ अर्हताएँ निर्धारित हैं। ये अर्हताएँ निम्नांकित है-
1. वह भारत का नागरिक हो तथा मतदाता सूची में उसका नाम हो।
2. उसकी आयु 25 वर्ष या उससे अधिक हो।
3. न्यायालय द्वारा पागल या दिवालिया घोषित न हो।
4. शासकीय अथवा स्वायत्त शासन संस्थाओं में लाभ के पद पर न हो।
5. न्यायालय द्वारा उसे अयोग्य घोषित न किया गया हो।

लोकसभा के सदस्यों का निर्वाचन वयस्क मताधिकार के आधार पर जनता द्वारा किया जाता है। संविधान द्वारा मतदाता की योग्य निर्धारित की गई है। ये योग्यताएँ निम्नांकित है-
1. वह भारत का नागरिक हो एवं 18 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो।
2. जिस लोकसभा क्षेत्र में जहाँ मतदान करता है वहाँ की मतदाता सूची में उसका नाम हो।
3. न्यायालय द्वारा पागल या दिवालिया घोषित न किया गया हो।
4. किसी कारणवश उसे न्यायालय द्वारा मतदान से वंचित न किया गया हो।
लोकसभा के सदस्यों की संख्या 545 निर्धारित है। यदि सदन में आंग्ल भारतीय (एंग्लो इंडियन) मूल के प्रतिनिधि चुनकर न आए तो राष्ट्रपति उस समुदाय से निर्धारित योग्यता रखने वाले 02 नागरिक को लोकसभा में सदस्य नामांकित कर सकता है। लोकसभा का कार्यकाल 5 वर्ष निर्धारित है। लोकसभा के सदस्य अपने बीच से ही अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष का चुनाव करते हैं। अध्यक्ष को स्पीकर एवं उपाध्यक्ष को डिप्टी स्पीकर कहते हैं। स्पीकर लोकसभा की बैठकों की अध्यक्षता करता है। सदन की गतिविधियों एवं कार्यों का संचालन स्पीकर द्वारा किया जाता है। उनकी अनुपस्थिति में डिप्टी स्पीकर (उपाध्यक्ष) सदन की कार्यवाही संचालित करता है।

राज्यसभा

राज्यसभा भारतीय संसद का द्वितीय या उच्च सदन है। राज्यसभा में 250 सदस्य होते है। 238 सदस्यों का चुनाव राज्य विधानमंडलों के सदस्य (विधायक) करते हैं। 12 सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किया जाता है। ये सदस्य सामान्यतः समाज सेवा, साहित्य, कला और विज्ञान आदि क्षेत्रों में अपने विशेष योगदान के लिए जाने जाते हैं। राज्यसभा का सदस्य होने के लिए न्यूनतम 30 वर्ष की आयु होनी चाहिए। शेष, लोकसभा सदस्य हेतु निर्धारित अर्हताएँ ही राज्यसभा सदस्य की अर्हताएँ हैं। राज्यसभा एक स्थायी सदन है। यह सभा कभी भंग नहीं होती है। प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष निर्धारित है। सदन के 1/3 सदस्य, जिनका कार्यकाल 6 वर्ष पूरा हो चुका होता है, उनके स्थान पर राज्य विधानमंडल 1 / 3 सदस्यों का चुनाव करते हैं। ये नये सदस्य अपने पद पर 6 वर्ष तक रह सकते हैं। इसी प्रकार, राष्ट्रपति अपने द्वारा मनोनीत 1/3 सदस्यों के 6 वर्ष के कार्यकाल पूर्ण होने पर नए सदस्यों को मनोनीत करते हैं। कोई भी सदस्य अपने कार्यकाल के पूर्व त्यागपर देकर पदमुक्त हो सकते हैं। भारत के उपराष्ट्रपति, राज्यसभा के पदेन सभापति होते हैं। राज्यसभा अपने बीच से ही एक उपसभापति का चुनाव करती है। सभापति (उनकी अनुपस्थिति में उपसभापति) राज्यसभा के समस्त कार्यों का संचालन एवं नियंत्रण करते हैं।

संसद के कार्य एवं शक्तियाँ

संसद का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है, कानून बनाना। यह देश के लिए कानून बनाती है व संघीय सूची के समस्त विषयों पर कानून बना सकती है। साथ ही समवर्ती सूची के विषयों तथा अवशिष्ट विषयों पर भी कानून बनाती है। ऐसे कानून सारे देश में लागू होते हैं। संसद के कार्य एवं शक्तियाँ इस प्रकार है।

1. कानून बनाना

संसद को संघ सूची के 97 विषयों पर कानून बनाने का अधिकार है। वह समवर्ती सूची के सभी 52 विषयों पर भी कानून बना सकती है। साथ ही अवशिष्ट विषयों की सूची पर भी समय-समय पर कानून बनाती है।

2. संविधान संशोधन

संसद को संविधान में संशोधन करने का अधिकार है। हमारा संविधान 26 जनवरी 1950 से सारे देश में लागू हुआ है। विगत वर्षों में सारे विश्व में बहुत परिवर्तन हुए है। भारत भी इससे अछूता नहीं रहा है। अतः समयानुकूल वर्तमान राष्ट्रीय आवश्यकताओं को ध्यान में रख कर संविधान में संशोधन की आवश्यकता महसूस की जाती रही है। हमारे संविधान निर्माताओं द्वारा भावी परिवर्तनों को ध्यान में रखते हुए संविधान में संशोधन की प्रक्रिया तय की गई है। भारतीय संसद निर्धारित प्रक्रिया से संविधान में संशोधन करती है। संविधान में अब तक 92 संशोधन किए जा चुके हैं।

3. मंत्रि-परिषद् पर नियंत्रण

केन्द्रीय मंत्रि-परिषद् का गठन संसद के सदस्यों के बीच से ही किया जाता है। संसद ही इस मंत्रि-परिषद् पर नियंत्रण रखती है। यह नियंत्रण सदन में प्रश्न पूछकर काम रोको प्रस्ताव, विधेयकों पर बहस एवं अस्वीकृति, निदा तथा ध्यानाकर्षण प्रस्ताव अविश्वास प्रस्ताव द्वारा किया जाता है।

4. वित्तीय कार्य

संसद देश की वित्तीय व्यवस्था पर नियंत्रण रखती है। वह हर वर्ष आय के स्त्रोत एवं राजकीय कार्य संचालित करने हेतु व्यय नीति बनाती है। इसके साथ ही बजट निर्धारित कर उसे स्वीकृत करती है। ऐसे विधेयक जिनका संबंध वित्तीय व्यवस्था से है, उसे वित्त (धन) विधेयक कहते है। वित्त विधेयक राष्ट्रपति की अनुमति से ही लोकसभा में प्रस्तुत किया जाता है।

5. संसद का अधिवेशन

संसद के दोनों सदनों (राज्यसभा एवं लोकसभा) के प्रतिवर्ष दो अधिवेशन होने अनिवार्य हैं। दोनों अधिवेशनों के बीच छः माह से अधिक का अन्तर नहीं होना चाहिए। राष्ट्रपति को अधिकार है कि वह कभी भी संसद का अधिवेशन बुला सकते हैं। वे संसद के सत्र को समाप्त भी कर सकते हैं।

6. गणपूर्ति

गणपूर्ति से आशय है संसद के किसी भी सदन की बैठक के लिए सदन में न्यूनतम कितने सदस्यों का उपस्थित होना आवश्यक है। संविधान के अनुसार संसद के दोनों सदनों में बैठक के लिए कुल सदस्य संख्या की 1/10 (10%) सदस्यों की उपस्थिति अनिवार्य है।

कानून निर्माण की प्रक्रिया

संसद द्वारा संघ सूची, समवर्ती सूची पर कानून बनाया जाता है। किसी विषय पर कानून बनाने से पहले मंत्रि-परिषद् एक प्रस्ताव तैयार करती है। इस प्रस्ताव को विधेयक कहते हैं। विधेयक दो प्रकार के होते है।
1. साधारण विधेयक
2. वित्त विधेयक।

साधारण विधेयक

साधारण विधेयक का प्रस्ताव मंत्रि-परिषद् का कोई सदस्य स्वयं किसी भी सदन में प्रस्तुत कर सकता है। यह सरकारी विधेयक होता है। संसद का कोई भी सदस्य अपनी ओर से भी किसी श्री सदन में विधेयक प्रस्तुत कर सकता है, इसे निजी विधेयक कहते हैं। ये विधेयक सदन के अध्यक्ष/ सभापति की अनुमति से सदन में प्रस्तुत किए जा सकते हैं।

वित्त विधेयक

वित्त विधेयक राष्ट्रपति की अनुमति से वित्तमंत्री लोकसभा में ही प्रस्तुत कर सकता है।

विधेयक का प्रथम वाचन

सभापति की अनुमति से मंत्रि-परिषद् का कोई सदस्य या सासद सदन में विधेयक प्रस्तुत करता है। विधेयक प्रस्तुत करने वाले सदस्य प्रस्ताव का शीर्षक पढ़ते हैं। इस प्रस्ताव की प्रति उपस्थित सभी सदस्यों को वितरित की जाती है। इस प्रस्ताव का केन्द्रीय सरकार के शासकीय गजट में प्रकाशन होता सामान्यतः इस पर बहस नहीं होती है, यह विधेयक का प्रथम वाचन है।

द्वितीयं वाचन

द्वितीय वाचन के समय विधेयक पर विचार विमर्श होता है। सरकारी पक्ष एवं विपक्ष द्वारा इस विधेयक की उपयोगिता या अनुपयोगिता पर बहस होती है। विधेयक के प्रत्येक बिन्दु एवं मुझे तथा निहित सिद्धांतों पर परिचर्चा होती है। विधेयक में संशोधन के प्रस्ताव भी रखे जाते हैं। संशोधनों पर मत विभाजन होता है। विधेयक में संशोधन हेतु बहुमत के आधार पर निर्णय होता है। संशोधन सहित तैयार विधेयक के पश्चात् द्वितीय वासन समाप्त होता है।

तृतीय वाचन

द्वितीय वाचन के पश्चात् विधेयक का प्रारूप निश्चित हो जाता है। तृतीय वाचन के समय विधेयक का प्रस्तावक सदन में एक प्रस्ताव रखता है। इस प्रस्ताव में वह सदन से विशेष को स्वीकृत किए जाने का प्रस्ताव करता है। इस समय विधेयक में संशोधन नहीं किए जाते। सदन विधेयक को स्वीकार अथवा अस्वीकार भी कर सकता है। विधेयक पर मतदान के पश्चात् तृतीय वाचन पूर्ण हो जाता है। यदि विधेयक स्वीकृत जाता है तो उसे दूसरे सदन में स्वीकृति हेतु भेजा जाता है। दूसरे सदन में भी विधेयक का प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय वाचन होता है। यदि विधेयक दूसरे सदन में भी स्वीकृत हो जाता है तो उस विधेयक को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजा जाता है। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के पश्चात् वा कानून बन जाता है। इस कानून का संघ सरकार के राजकीय गजट में प्रकाशन किया जाता है।
यदि दूसरा सदन विधेयक को अस्वीकृत कर दे अथवा 6 माह तक उस पर विचार न करे तो विकट स्थिति बन जाती है। ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन बुलाते है। इस संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता लोकसभा के अध्यक्ष (स्पीकर) करते हैं। दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन में विधेयक पारित होने के पश्चात् उसे राष्ट्रपति की स्वीकृति हेतु भेजा जाता है। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के पश्चात् विधेयक कानून बन जाता है।

संघ सूची, राज्य सूची एवं समवर्ती सूची

संघ सूची

इस सूची में 97 विषय हैं. इन पर पूरे देश में एक जैसा कानून होता है। इन विषयों पर संसद ही कानून बनाती है। दर्शाए गए चार्ट के माध्यम से इसके अन्तर्गत आने वाले विविध मुख्य विषयों एवं क्षेत्रों को समझा जा सकता है-
केन्द्र/संघ सरकार के विषय- संयुक्त राष्ट्र संघ, सेना, बैंक, प्राचीन इमारत, मुद्रा, बीमा, समुद्र यातायात, खनिज क्षेत्र, जनगणना, रेल, डार्कतार, दूरसंचार, निर्वाचन, अन्तर्राष्ट्रीय संधियाँ/ समझौते।

राज्य सूची

इस सूची में 62 विषय हैं। जिन पर राज्य की व्यवस्थापिका ही कानून बना सकती अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग कानून हो सकते हैं दर्शाए गए चार्ट से राज्य सूची के अन्त आने वाले विविध विषयों एवं क्षेत्रों को समझा जा सकता है।
राज्य/प्रांतीय सरकार के विषय- न्याय, सड़के, स्थानीय शासन, स्वास्थ्य, ओल, पुलिस, मनोरंजन, कृषि, सिंचाई, पशु चिकित्सा।

समवर्ती सूची

समवर्ती अर्थात् जिसमें संघ एवं राज्य को बराबर अधिकार हो। समवर्ती सूची में 92 विषय इन विषयों पर संघ तथा राज्य दोनों ही कानून बनाने का अधिकार रखते हैं।
केन्द्र/राज्य सरकार के विषय- सिंचाई, बिजली, वन पर्यावरण, उद्योग, मजदूर, औद्योगिक विवाद, मूल्य नियंत्रण, विवाह और विवाह विच्छेद, अखबार, शिक्षा, दत्तक एवं उत्तराधिकार,दण्ड विधि।
यदि दोनों के कानून बनाने में मतभेद है, तो ऐसी स्थिति में संसद द्वारा बनाए गए कानून ही मान्य किए जाते हैं।

I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
pragyaab.com

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