कबीर जयंती विशेष 22 जून | कबीर दास का जन्म, रचनाएँ व उका प्रभाव, कबीर पंथ
कबीर दास कौन थे?
कबीर दास 15 वीं शताब्दी के एक प्रसिद्ध रहस्यवादी कवि, संत और समाज सुधारक थे। उन्हें उत्तर भारत के भक्ति और सूफी आंदोलन के सबसे प्रसिद्ध कवियों में से एक माना जाता है। कबीर दास जी को उनकी महान शिक्षाओं के लिए जाना जाता है जिन्होंने दोहों के माध्यम से संसार को उपदेश दिया।
जैसे―
निंदक नियेरे राखिये, आंगन कुटी छवायें।
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाय।।
जंत्र मंत्र सब झूठ है, मति भरमो जग कोये।
सार शब्द जानै बिना, कागा हंस ना होये।।
उक्त जैसे हजारों दोहों के माध्यम से उन्होंने समाज सुधार का उपदेश दिया।
कबीर दास का जन्म
ऐसा माना जाता है कि संत कबीर दास का जन्म उत्तर प्रदेश में एक मुस्लिम परिवार में हुआ था जो एक जुलाहे का कार्य करते थे। उन्होंने कम उम्र में ही आध्यात्मिकता में रुचि को प्रदर्शित किया वे अपने समय के सभी धर्मों का समान रूप से आदर करते थे।
कबीर की रचनाएँ
भक्ति आंदोलन उनके कार्यों से अत्यधिक प्रभावित था। उनके कुछ प्रसिद्ध लेखन में 'अनुराग सागर', 'कबीर ग्रंथावली', 'बीजक', 'साखी' ग्रंथ आदि शामिल हैं। कबीर दास की महान कविताएँ और रचनाएँ 'परमात्मा' की सुसंगतता और विशालता को दर्शाती हैं। कबीर दास जी के दोहे या कविताएँ अपने बौद्धिक और आध्यात्मिक संदेशों के लिए प्रसिद्ध हैं जो शांति, सद्भाव और सभी धर्मों के बीच सामंजस्य का समर्थन के साथ साथ उन्होंने अपने दोहों के माध्यम से जातिगत विभाजन, ब्राह्मणों के वर्चस्व, मूर्ति पूजा, अनुष्ठानों और समारोहों के खिलाफ़ उपदेश भी दिया। लोग उनकी लिखी महान कविताओं/ दोहों को पढ़ना या सुनना पसंद करते हैं। आज बहुत सारे संगीतकारों एवं गायकों के द्वारा उनकी रचनाओं / दोहों को संगीत बद्धकर जन-जन तक पहुँचाने का कार्य किया है।
कबीर की रचनाओं का प्रभाव
कबीर दास ने जीवन के सच्चे अर्थ को लिखने और व्यक्त करने के लिए बहुत ही सरल एवं सहज भाषा का प्रयोग किया। उन्होंने दोहों के लेखन हेतु हिन्दी भाषा प्रयोग में लाई जो समझने में बहुत आसान हैं। उनके द्वारा लिखे गए दोहे न केवल कला का एक आदर्श नमूना हैं अपितु जीवन जीने के गूढ़ रहस्यों को भी उजागर करते है। कबीर दास जी ने लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए दोहे लिखना शुरू किया था जोकि आज भी बहुत अधिक प्रचलन में हैं। यहाँ तक कि उनकी कविताओं और दोहों को विद्यालयीन पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है।
कबीर पंथ
कबीर पंथ कबीर दास जी के द्वारा स्थापित एक आध्यात्मिक समुदाय है। आज, इस समुदाय के बहुत से अनुयायी हैं जिन्हें कबीर पंथी कहा जाता है, जो पूरे भारत देश में फैले हुए हैं। उनके अनुयायियों का मानना है कि कबीरदास आज भी उनके दिलों में जीवित हैं।
सिक्खों के पांचवें गुरु, गुरु अर्जुन देव ने इस महान कवि की रचनाओं को एकत्र किया और उन्हें सिखों के धर्मग्रंथ में समाहित भी किया।
संत कबीर जयंती उत्सव
कबीरदास जी की जयंती इस वर्ष 22 जून 2024 को उनकी 647 वीं वर्ष गाँठ के रूप में मनाया जा रहा है। उन्होंने समाज में फैले अंधविश्वास, रूढ़िवादी परंपराओं और पाखंड का विरोध करते हुए इंसानियत को सबसे ऊपर रखा है। उनकी जयंती मनाने का सबसे बड़ा कारण उनकी शिक्षाओं, आध्यात्मिकता और सामाजिक समरसता, सद्भाव हेतु उनके योगदान को स्वीकार करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष उनकी जयंती मनाई जाती है। कबीर की कविताओं और शिक्षाओं में आंतरिक आध्यात्मिकता, प्रेम, समानता और सामाजिक और धार्मिक अड़चनों को अस्वीकार करने के मूल्यों, आदर्शों पर जोर दिया गया है। सभी धर्मों और संस्कृतियों के लोग उनकी शिक्षाओं से प्रेरित होकर उनकी शिक्षाओं का अनुशरण करते हैं।
पूरे देश में कबीरपंथी लोग इस दिन उनकी याद में बिताते हैं। आम तौर पर हिमाचल प्रदेश और पंजाब राज्यों में इनकी जयंती को धूमधाम से मनाया जाता है। इसके अलावा अन्य राज्यों में भी जयंती मनाई जाती है। कई स्थानों पर उनकी स्मृति एवं अनुपम शिक्षाओं के लिए सभाएँ आयोजित की जाती हैं। इस महान संत कवि की जन्मस्थली वाराणसी में इस दिवस बड़े धूमधाम एवं भव्यता के साथ से मनाया जाता है। लोग इस धार्मिक गुरु की अद्भुत शिक्षाओं का प्रचार करते हैं।
'कबीर सत्संग' के नाम से विशेष कार्यक्रमों का आयोजन होता है जहाँ लोग कबीरदास जी की कविताओं को गाते और सुनाते हैं। इन सभाओं में अक्सर भजन अर्थात भक्ति संगीत, आध्यात्मिक भाषण और कबीर की शिक्षाओं पर चर्चाएँ करते हैं।
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(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
pragyaab.com
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